बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान वापसी ने परवेज मुशर्रफ की मुश्किलें कम करने की बजाए बढ़ा दी हैं। तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई का समर्थन करके परवेज मुशर्रफ ने पाकिस्तान में अपनी हकूमत की मियाद तो बढ़ा ली। लेकिन परवेज मुशर्रफ की अपनी साख लगातार घट रही है। पाकिस्तान समेत दुनियाभर का आम मुसलमान अमेरिका को इस्लाम विरोधी मानता है और जो भी मुस्लिम नेता अमेरिका का साथ देता है, उसे इस्लाम विरोधी मानने लगता है। यह धारणा अब परवेज मुशर्रफ के बारे में भी बन चुकी है, इसीलिए इस्लामिक कट्टरवादियों ने उन पर तीन बार कातिलाना हमला किया।
पाकिस्तान का आम मुसलमान हालांकि अमन पसंद है, लेकिन परवेज मुशर्रफ आम मुसलमान की आंख में खटकने लगा है। इस हकीकत को जानने के बावजूद बेनजीर भुट्टो ने परवेज मुशर्रफ और अमेरिका के साथ हाथ मिलाकर पाकिस्तान में अपने भविष्य को दांव पर लगा दिया है। यह ठीक है कि बेनजीर भुट्टो और उनके पिता जुल्फिकार अली खां भुट्टो कट्टरपंथी सैनिक शासकों से टक्कर लेते रहे हैं, इसलिए भुट्टो परिवार की उदारवादी लोकतांत्रिक छवि बनी थी। बेनजीर भुट्टो अगर परवेज मुशर्रफ की मुखालफत करते हुए ही पाकिस्तान में लौटतीं तो हकूमत तक पहुंचने का उनका रास्ता बहुत आसान होता। बेनजीर भुट्टो के आठ साल पाकिस्तान से बाहर रहने के दौरान देश के हालात काफी बदल चुके हैं और अब आम जनता की सहानुभूति सैनिक शासकों के साथ कतई नहीं। परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तानी आवाम का शुरू में काफी समर्थन मिला था, लेकिन अफगानिस्तान में अमेरिका का मददगार बनकर मुशर्रफ ने आवाम में अपनी स्थिति बेहद नाजुक कर ली है। ऐसे में जो व्यक्ति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोलने की स्थिति में होगा, आवाम उसी के साथ होगा। परवेज मुशर्रफ भी मन से नहीं चाहते थे कि बेनजीर भुट्टो चुनावों से पहले पाकिस्तान में लौटें। इसलिए भले ही ऊपर से परवेज मुशर्रफ कितना ही मीठा बोलें, अंदर से वह बेनजीर से खार खाते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि अमेरिका बेनजीर भुट्टो को पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ का विकल्प बनाने की रणनीति अपना रहा है। अमेरिका की कूटनीति को समझने वाले जानते हैं कि परवेज मुशर्रफ का जनविरोध होने के कारण अमेरिका बेनजीर भुट्टो को ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। अमेरिका पहले मुशर्रफ को राष्ट्रपति के तौर पर लोकतांत्रिक मान्यता दिलवाने के लिए बेनजीर भुट्टो का उनके राजनीतिक विरोधी के तौर पर इस्तेमाल करेगा। बाद में धीरे-धीरे सत्ता पर बेनजीर का नियंत्रण कर दिया जाएगा। मुशर्रफ और उनके बल पर सत्ता सुख भोगने वाले सभी लोग जानते हैं कि बेनजीर उनके लिए मददगार नहीं, अलबत्ता नुकसानदायक साबित होगी। इसलिए बेनजीर पर हुए आतंकी हमले के पीछे सरकार में शामिल लोगों की मिलीभगत भी मानी जा रही है। बेनजीर भुट्टो अगर अमेरिका और मुशर्रफ के साथ समझौता करके पाकिस्तान न लौटतीं, तो वह सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरती। लेकिन अब जिस तरह वह पाकिस्तान में लौटी हैं उससे सभी अमेरिका विरोधी ताकतें बेनजीर के खिलाफ एकजुट हो गई हैं। जिनमें तालिबान, अलकायदा समर्थक और आईएसआई भी शामिल है, पाकिस्तान की फौज जिया उल हक के जमाने से ही भुट्टो परिवार के खिलाफ है। दूसरी तरफ परवेज मुशर्रफ के कट्टर विरोधी नवाज शरीफ की लोकप्रियता में बेहद इजाफा हुआ है। यह एक अजीब-ओ-गरीब स्थिति है कि दुनियाभर में लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाला अमेरिका पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार का तख्ता पलटने वाले सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ के साथ है और चुने हुए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ। तख्ता पलटे जाने के वक्त 1999 में नवाज शरीफ की लोकप्रियता में गिरावट आ रही थी, लेकिन अब उनके अमेरिका विरोधी रुख के कारण उनकी लोकप्रियता में कई गुना ज्यादा इजाफा हो चुका है। पाकिस्तान, खासकर पंजाब में आम लोगों का मानना है कि परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका की शह पर ही नवाज शरीफ को पिछले महीने इस्लामाबाद हवाई अड्डे से वापस भेज दिया था, जबकि अब अमेरिका के इशारे पर ही बेनजीर भुट्टो को लौटने दिया है। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौर बस यात्रा का न्यौता देकर कट्टरपंथियों की आंख में किरकिरी बने नवाज शरीफ अब अचानक उनकी आंख का तारा बन गए हैं। नवाज शरीफ एक बार फिर पाकिस्तान लौटने की कोशिश करने का एलान कर चुके हैं और माना जा रहा है कि इस बार सऊदी अरब शासक भी परवेज मुशर्रफ के साथ नहीं हैं। सब जानते हैं कि पिछले महीने परवेज मुशर्रफ को दस साल के निर्वासन का वादा निभाने के लिए राजी करने में सऊदी अरब शासक की भी अहम भूमिका थी। लेकिन बेनजीर को पाकिस्तान में लौटने की इजाजत देने और नवाज शरीफ को हवाई अड्डे से वापस लौटने के परवेज मुशर्रफ के फैसले से अब सऊदी अरब शासक भी खफा हैं। इसलिए इस बार अगर नवाज शरीफ पाकिस्तान वापस लौटते हैं तो न सिर्फ उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट से भी राहत मिल सकती है, जहां अदालत की अवमानना का केस पहले से लंबित है। बेनजीर भुट्टो पर हुए आतंकी हमले के बाद नवाज शरीफ ने उनसे फोन पर बात करके स्वस्थ लोकतांत्रिक माहौल को तैयार कर लिया है, इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर बेनजीर भुट्टो भी उनकी वापसी का समर्थन करें।
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