बच्चों की सुरक्षा में लापरवाह भारत 

Publsihed: 13.Sep.2017, 21:11

अजय सेतिया / केंद्र और राज्य सरकारों की लापरवाही के कारण भारत में बच्चे असुरक्षित हो गए | कोई दिन ऐसा नहीं बितता जब कहीं न कहीं से बच्चे के यौन शोषण , बच्चे की हत्या या बच्चे के साथ क्रूरता की खबर न आती हो | गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से चल रहे बाल गृह और स्कूल बच्चों के लिए सर्वाधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं | बच्चों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर के देशों को प्रोटोकाल जारी किया हुआ है, अगर सरकारें उस प्रोटोकाल का पालन कर और करवा लें तो बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाया जा सकता है | भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के प्रोटोकाल के अनुरूप क़ानून भी बनाए हैं , लेकिन उन कानूनों का न तो प्रचार है, न अनुपालन है | जिन्हें क़ानून का अनुपालन करवाना है, वे खुद क़ानून से अनभिज्ञ हैं | क़ानून को कितना ही सख्त कर लिया जाए, जब तब सरकारी अधिकारी जवाबदेह नहीं बनाए जाएंगे सुधार की उम्मींद नहीं रखी जा सकती | भारत सरकार ने पहले सन 2000 में किशोर न्याय अधिनियम बनाया और फिर उस की खामियां दूर करते हुए 2016 में नया किशोर न्याय अधिनियम बनाया है | लेकिन जिस तरह की शिकायतें आ रहीं हैं , वे मुद्दे 2000 के क़ानून में भी मौजूद थे | 
हरियाणा के गुडगाँव में महंगी फीस वाले रेयान स्कूल में सात साल के बच्चे के यौन शोषण और हत्या ने सारे देश का ध्यान आकृषित किया है | बच्चे की हत्या के बाद स्कूल की जो कमियाँ सामने आई हैं उस के लिए स्कूल को तो जिम्मेदार माना ही जाना है, लेकिन राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और शिक्षा विभाग भी उतने ही जिम्मेदार हैं , जिन्हें बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने और कमियों को दूर करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है | मुफ्त एंव अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह स्कूलों का समय समय पर निरीक्षण करे और कमियों को दूर करवाए | जैसे यह कमी सामने आई कि स्कूल का स्टाफ और कर्मचारी उसी वाशरूम का इस्तेमाल करते हैं ,जिसे बच्चे इस्तेमाल करते हैं | सवाल पैदा होता है कि शिक्षा विभाग ने एनओसी जारी करने से पहले इस कमीं को क्यों नहीं देखा था | 2009 से लागू मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा क़ानून के अंतर्गत एनओसी के बिना नया स्कूल नहीं खुल सकता , जो स्कूल क़ानून लागू होने से पहले खुल चुके थे , उन्हें नए मानकों के अंतर्गत दुबारा एनओसी लेना अनिवार्य था | नए मानकों में वे  सभी बातें आती हैं, जो बच्चे की सुरक्षा के लिए जरुरी है | 
किशोर न्याय अधिनियम में केंद्र और राज्यों के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे श्रम विभाग, शिक्षा विभाग, समाज कल्याण विभाग , बाल विभाग , स्वास्थ्य विभाग, यातायात विभाग, गृह विभाग, पुलिस के लिए दिशा निर्देश तैयार करें कि वे बच्चों की सुरक्षा के लिए किस तरह के मानकों का पालन करें | सरकारी स्कूलों और  गैर सरकारी स्कूलों में अभिभावक-अध्यापाक संस्थाओं का गठन और संचालन करवाया जाए , ताकि वे अपनी बैठकों में उन कमियों को स्कूल प्रशाशन और शिक्षा विभाग के सामने रख सकें | इसी तरह बाल गृहों की निगरानी की कमेटियां गठित की जाएं, चार साल पहले हरियाणा के ही एक बाल गृह में बच्चियों के शोषण का मामला सामने आया था | हाल ही में छतीसगढ़ में भी बाल गृह में बच्चियों के यौन शोषण का मामला सामने आया था  | न तो राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने दिशा निर्देश जारी किए, न राज्यों के बाल आयोगों ने कोई ठोस काम किया है | सुप्रीमकोर्ट ने बच्चे के पिता  की याचिका पर केंद्र सरकार , राज्य सरकार , सीबीएससी और सीबीअई को नोटिस जारी कर सुझाव मांगे हैं, लेकिन राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को नोटिस नहीं दिया गया | एनडीए सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्ष्ण आयोग को इतना कमजोर बना दिया है कि सुप्रीमकोर्ट तक का ध्यान भी उस की तरफ नहीं गया , जब कि बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना बाल आयोग की जिम्मेदारी है | 
रेयान स्कूल के मामले में जैसे दूसरी कमी यह सामने आई है कि स्कूल का सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था | क्या हरियाणा के राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस सम्बन्ध में कोई दिशा निर्देश जारी किए थे या क्या राज्य के शिक्षा विभाग ने इस तरह के दिशा निर्देश जारी किए थे कि हर स्कूल में सीसीटीवी लगाना अनिवार्य है | अब रेयान की घटना के बाद दिल्ली सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है कि दिल्ली के सभी स्कूलों के सभी कर्मचारियों की पुलिस वेरिफिकेशन और सीसीटीवी लगाना अनिवार्य किया गया है, उत्तराखंड सरकार ने भी स्कूलों की बसों की चालकों और परिचालकों का पुलिस वेरिफिकेशन अनिवार्य किया है | यह निर्देश सभी राज्य सरकारों को जारी करना चाहिए | दिल्ली सरकार ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि वे हर महीने स्कूलों के सीसीटीवी का निरीक्षण भी किया जाए | इसे सभी राज्यों को लागू करवाना चाहिए , बच्चों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए सभी राज्यों से सलाह ले कर राष्ट्रीय स्तर पर दिशा निर्देश तैयार होने चाहिए | ब्यूरोक्रेट की अध्यक्षता में चल रहे राष्ट्रीय आयोग से अपने आप तो उम्मींद नहीं की जा सकती , केंद्र सरकार को चाहिए कि रेयान स्कूल की घटना से सबक लेते हुए वह राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को निर्देश दे कि वह सारे देश में बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए दिशा निर्देश जारी करें |
किशोर न्याय अधिनियम 2016 की धारा 75 में कहा गया है कि बच्चा जिस किसी के संरक्षण में होगा बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी की होगी | जैसे रेयान स्कूल में हुई बच्चे की हत्या के मामले में बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल की थी | राज्य सरकारों को चाहिए कि स्कूलों को एनओसी जारी करते समय जो फ़ार्म भरवाया जाता है उस में अन्य शर्तों के साथ किशोर न्याय अधिनियम की इस धारा का भी उल्लेख किया जाए, ताकि स्कूल सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी को समझे | धारा 75 में कहा गया है कि बच्चा जिस के संरक्षण में है , अगर वह बच्चे को मारता पीटता है, उसका शोषण करता है, शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रताड़ित करता है तो उसे तीन साल तक की सजा या एक लाख रूपए तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं | इस की आशंका नहीं थी कि किसी संस्थान की लापरवाही से बच्चे की मौत भी हो सकती है , धारा 75 में सिर्फ इतना ही कहा गया कि अगर किसी संस्थान की लापरवाही से अगर बच्चे की जिन्दगी खतरे में पड जाती है , तो दस साल तक की कैद और पांच लाख तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं | रेयान स्कूल के मामले में स्कूल के मालिक और प्रिंसीपल के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम की इस धारा के अंतर्गत केस रजिस्टर्ड होना चाहिए | 
(लेखक राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं ) 

 

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