दुनिया की बदलती खेमेबंदी में भारत 

Publsihed: 25.Jul.2017, 22:20

अजय सेतिया  / भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस महीने जब इस्रायल गए तो भारत के मुसलमान बेहद खफा हुए | इस की झलक सोशल मीडिया पर देखी गई , जो प्रिंट और विजुअल मीडिया के बाद भारत में एक सशक्त माध्यम बन चुका है | पूर्व की सभी सरकारें इस्राईल को लेकर मुस्लिम विरोध की वजह से कूटनीतिक सम्बन्ध बढाने से परहेज करती रहीं थी | नरसिंह राव दो वजहों से भारतीय मुसलमानों की नजर में हिन्दू समर्थक प्रधानमंत्री बन गए थे | उन के कार्यकाल में बाबरी ढांचा टूटने के अलावा भारत ने  इस्राईल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध भी स्थापित किए थे | बाद के दिनों में सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इसीलिए नरसिंह राव से दूरी बना ली थी , क्योंकि उन्हीं की वजह से मुसलमान कांग्रेस से छिटक गए थे | मनमोहन सिंह सरकार ने उनकी समाधि भी दिल्ली में नहीं बनने दी , जबकि उस से पहले सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का डाह संस्कार दिल्ली में हुआ और सरकार ने समाधि के लिए जमीन भी अलाट की थी | 
जहां अपने मुस्लिम वोट बैंक के लिए कांग्रेस हमेशा से फलीस्तीन का समर्थन करती रही है, वहीं आरएसएस और भाजपा हमेशा से इस्राईल को आदर्श देश मानते रहे हैं | संघ की शाखाओं में भी इस्राईल की बहादुरी के किस्से सुनाए जाते रहे हैं | जब से भारत में आतंकवाद शुरू हुआ है, भारतीय जनता पार्टी के नेता आतंकवाद से मुज्काब्ला करने के गुर इस्राईल से सीखने की बात करते रहे हैं | इस के बावजूद भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खुद इस्राईल नहीं गए क्योंकि वह अपनी व्यक्तिगत उदारवादी छवि को दाव पर नहीं लगाना चाहते थे | हालांकि उन्होंने अपने कार्यकाल में इस्राईल के  प्रधानमन्त्री एरियल शैरोन ने भारत का दौरा किया था , और यह इस्राईल के प्रधानमंत्री का भारत में पहला दौरा था | भारत के  मुस्लिम संगठनों और वामपंथी दलों ने देश भर में प्रधानमन्त्री एरियल शैरोन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए | लालकृष्ण आडवाणी ने पांच दिन का इस्राइल दौरा कर के संघ परिवार का दिल जरुर जीता था, लेकिन उन्होंने अपनी सारी कमाई पाकिस्तान में जिन्ना की तारीफ़ कर के गवां ली | वाजपेयी ने अपने विदेशमंत्री जसवंत सिंह को भी इस्राईल भेजा था |
इस्राईल हमारा स्वाभाविक मित्र देश है, क्योंकि भारत और इस्राईल दोनों एक ही  तरह के आतंकवाद का शिकार हैं | इस्राईल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद ने सत्तर के दशक में भारत को जानकारी उपलब्ध करवाई थी कि पाकिस्तान चीन की मदद से परमाणु बम बना रहा है | पहले मोरारजी देसाई ने 1977 में और बाद में इंदिरा गांधी ने 1984-85 में इस्राईल के सहयोग से पाकिस्तान के परमाणु संयंत्र को उड़ाने की योजना बनाई थी | लेकिन दोनों घरेलू राजनीति के कारण इस्राईल के साथ संबंधों को छुपा कर रखना चाहते थे | मोरारजी देसाई के कार्यकाल में इस्राईल के विदेशमंत्री ने भारत का गोपनीय दौरा भी किया था , लेकिन वह अपनी सरकार की अस्थिरता के कारण पाकिस्तान का परमाणु संयंत्र उड़ाने का आपरेशन नहीं कर पाए और दुर्भाग्य से इंदिरा गांधी भी असमय मौत (ह्त्या) के कारण आपरेशन नहीं कर पाईं | आखिरकार 1998 में चीन के सहयोग से पाकिस्तान परमाणु सम्पन्न देश बन गया | 
सत्तर के दशक में शुरू हुए पाकिस्तान-चीन के नए गठबंधन ने भारत को अपनी कूटनीति बदलने को विवश किया है | पाकिस्तान ने दुश्मन का दुश्मन दोस्त बनाने के फार्मूले पर काम किया और अमेरिका के साथ घनिष्ट संबंधों को बनाए रखते हुए चीन के साथ भी उतने ही घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित कर लिए | भारत के सामने अब पाकिस्तान के साथ साथ चीन का बड़ा खतरा मंडरा रहा है | पिछले तीस साल भारत ने इस दिशा में तैयारी करना तो दूर , सही दिशा में कदम भी नहीं उठाए | शीत युद्ध के दौर में भारत गुटनिरपेक्ष देशों में होने के बावजूद अमेरिका-इस्राईल विरोधी कम्युनिस्ट देशों सोवियत संघ और चीन के साथ था | जबकि ये तीनों देश पाकिस्तान के साथ भी थे | हमें अपनी कूटनीति को बदलना चाहिए था , लेकिन हम सोवियत संघ के साथ खड़े रहे , जब कि सोवियत संघ हमें सिर्फ हथियारों के ग्राहक की तरह इस्तेमाल करता रहा | 
अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में भारत की अमेरिका के साथ नजदीकी बढनी शुरू हुई थी, जिसे मनमोहन सरकार ने परमाणु समझौता कर के और गति दी | अब नरेंद्र मोदी सधी हुई लाईन पर चल रहे हैं, जो बात 30 साल पहले हो जानी चाहिए थी ,वह अब शुरू हुई है | उन्होंने पाकिस्तान को अलग थलग करने के लिए कड़ी म्हणत की है, जिस के नतीजे दिखाई देने शुरू हो गए हैं | ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अमेरिका के साथ रिश्तों में और ज्यादा सुधार हुआ है, जिस कारण अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ स्टेंड लेना शुरू कर दिया है | इसी कूटनीति को और गहरा करने के लिए नरेंद्र मोदी ने इस्राईल की यात्रा की और वह इस्राईल जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए | अपनी इस्राईल यात्रा से ठीक पहले भाजपा ने उत्तरप्रदेश के चुनाव में एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दे कर भविष्य की कूटनीति, राजनीति और रणनीति तय कर ली थी | अपने इस्राईल दौरे के समय संतुलन बनाने के लिए मोदी ने फलीस्तीन का दौरा भी नहीं किया , इस तरह मोदी ने पूर्व सरकारों की फलीस्तीन समर्थक कूटनीति को पूरी तरह बदल दिया है | 
भारत की तरह चीन भी मुस्लिम फलीस्तीन को समर्थन देता रहा है | सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो अमेरिका, चीन, इस्राईल और पाकिस्तान के नए गठबंधन ने अफगानिस्तान के मुजाहिद्दीनों की मदद की |  सोवियत संघ से गठबंधन टूटने के बाद 1979 में चीन ने अमेरिका और इस्राईल के साथ रिश्ते बनाए और 1992 में विधिवत कूटनीतिक संबंध स्थापित किए | चीन जो हथियार अमेरिका और रूस से हासिल नहीं कर पाता उन्हें इस्राईल से खरीदता है , इस तरह इस्राईल चीन को दूसरा बड़ा हथियार स्पलायर है | इस्राईल चीन को फाल्कन बेचने ही वाला था कि अमेरिका को पता लग गया और उस ने इस सौदे को रद्द करवाया | 
अब नया कूटनीतिक गठबंधन आतंकवाद के समर्थक और आतंकवाद के विरोधी देशों में हो रहा है | बदले कूटनीतिक समीकरणों में अमेरिका ने चीन और पाकिस्तान से दूरी बना कर भारत को अपना मुख्य सहयोगी बनाना शुरू किया है | अमेरिका ने उत्तरी कोरिया और दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी योजना को रोक कर घेराबंदी शुरू की है, तो भारत ने सिक्किम सीमा पर भूटान में घुस कर चीन की विस्तारवादी योजना को रोका है | अमेरिका ने चीन के "दक्षिण चीन समुद्र" पर  दावे के खिलाफ जी-7 से  प्रस्ताव पास करवाने के बाद  वायुसेना के विमानॉन को उस समुद्री क्षेत्र पर उड़ाने भरवाना शुरू कर दिया है | वहीं अमेरिका ने चीन के नए कूटनीतिक सहयोगी पाकिस्तान को आतंकवादियों को पनाह देने वाला देश घोषित कर भारत के साथ सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है | बदली परिस्थितियों में इस्राईल अब न तो पाकिस्तान को समर्थन कर सकता है और न ही चीन को , इसलिए  इस्राईल और भारत की दोस्ती दोनों की  मजबूरी है | 

 

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