अजय सेतिया / भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने 2016 में बाल श्रम रोकने के लिए बने नए क़ानून की नियमावली जारी कर दी है | साल भर पहले जब क़ानून पास होने की प्रक्रिया चल रही थी, तब बच्चों के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ के साथ श्रम मंत्री की एक बैठक हुई थी | इस बैठक से पहले बिल संसद में पेश हो चुका था, इस बिल पर कार्यकर्ताओं को दो बड़ी आपत्तियां थीं, पहली यह कि जब किशोर न्याय अधिनियम में बच्चे की आयु 18 वर्ष तय की गई है, तो नए क़ानून में सिर्फ 14 वर्ष की आयु तक के बच्चे को बाल श्रम निषेध के कानूनी दायरे में क्यों रखा जा रहा | दूसरी आपत्ति यह थी कि बच्चो को अपने पारिवारिक कार्य में सहयोग की इजाजत दे कर बाल श्रम का एक दरवाजा खुला क्यों छोड़ा जा रहा है | मंत्री के पास इन दोनों ही आपत्तियों का संतोषजनक जवाब नहीं था , सिवा इस के कि कुटीर उद्योगों में परिवार के सभी सदस्य काम करते और सीखते हैं, उन परिवारों के काम धंधे बंद हो जाएंगे |
जब मंत्री क़ानून में परिवार शब्द बनाए रखने के पक्ष में दलीलें दे रहे थे तो स्पष्ट था कि सरकार किसी दबाव में है | उस बैठक में अंतत: मैंने एक सुझाव रखा था कि अगर परिवार शब्द हटाना संभव नहीं हो, तो परिवार की परिभाषा तय की जाए, परिवार को माता-पिता, सगे भाई-बहन तक ही सीमित किया जाए | मंत्री ने क़ानून में इसे शामिल करने पर विचार करने का वायदा किया था, लेकिन पूरा नहीं किया , क्योंकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की मदद से संसद में जो बिल पास हुआ यह जस का तस ही था | क़ानून में एक और आपत्तिजनक बात यह है कि 14 से 18 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को गैर जोखिम भरे कामों में श्रमिक लगाए जाने की छूट दी गई है, लेकिन पहले जोखिम भरे कामों की सूची में 83 काम शामिल थे, जिसे घटा कर अब फेक्ट्री एक्ट में शामिल कार्य, माईनिंग और विस्फोटक ही शामिल रखे गए हैं |
इस साल के शुरू में नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों से राष्ट्रपति भवन में बच्चो के भविष्य पर हुई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एक संगोष्टी में श्रम मंत्री ने वायदा किया था कि वह क़ानून की नियमावली में शिकायतें दूर कर देंगे | अभी इस सप्ताह नियमावली जारी कर दी गई है | जिस की आशंका थी वह तो हो ही गया, सुझाव यह था कि परिवार की परिभाषा में माता पिता और और सगे भाई-बहन तक सीमित किया जाए , लेकिन नियमावली में बच्चे का चाचा-ताया-बुआ-फूफा और मामा-मासी सब शामिल कर लिए गए है | भारत में बाल श्रम खत्म करने में यही तो सब से बड़ी समस्या है , आप कहीं भी बाल श्रमिक को देखेंगे और पूछताछ करेंगे, तो वह नियोक्ता को मामा-चाचा ही बताता है, जो उस को सिखाया गया होता है | यहाँ तक कि श्रम अधिकारी ही नियोक्ता तो बता आते हैं कि कोई पूछने आए तो बच्चा नियोक्ता को अपना चाचा-ताया ही बताए | बदले में श्रम अधिकारी को अपना महीना मिल जाता है |
हाँ अगर श्रम अधिकारी बेईमानी न करें तो नए क़ानून और नियमावली से फेक्टरियों और उद्योगों में 14 साल से कम उम्र वाले बच्चों के काम करने पर जरुर ब्रेक लग गई है | जिन बच्चो को अपने परिवार के साथ काम करने की छूट दी गई है, उन पर भी कुछ शर्तें लगाई गई हैं, लेकिन हम सब जानते हैं कि क़ानून का उलंघन करने वाले शर्तों का तोड़ निकालने के कितने माहिर होते है | शर्तों में कहा गया है कि बच्चे अपनी पढाई को प्रभावित किए बिना अपने परिवार के कार्यों में मदद कर सकते हैं , लेकिन परिवार का काम जोखिम भरे कार्यों की सूची में नहीं होना चाहिए | यहाँ हम ने ऊपर बताया कि जौखिम भरे कामों की सूची ही घटा दी गई है | नई सूची में ईंट भट्टे जोखिम भरे कामों की सूची में नहीं हैं | बच्चा स्कूल के समय और शाम 7 बजे से सुबह आठ बजे तक पारिवारिक काम में भी सहयोग नहीं देगा | वह ऐसे किसी कार्य में शामिल नहीं किया जाएगा, जिस से उस के शिक्षा के अधिकार का हनन होता हो या उस के होम वर्क या एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी को प्रभावित करती हों | उस से ऐसा कोई कोई काम नहीं लिया जा सकता, जिस से उसे थकावट होती हो | बच्चे को लगातार तीन घंटे से ज्यादा काम में नही लगाए रखा जाएगा | अपने परिवार में भी बच्चे से काम करवाते समय उसे किसी किशोर या व्यस्क की जगह पर काम पर नहीं लगाया जाएगा | उस से इस तरह का भी कोई काम नहीं लिया जाएगा, जिस से किसी अन्य क़ानून का उलंघन होता हो | नियमावली के अनुसार बच्चा मेन्युफेक्चरिंग ,उत्पादन, सप्लाई या ऐसी किसी रिटेल चेन में काम नहीं करेगा, जिस से बच्चे या बच्चे के परिवार को मेहनताना मिलता हो |
जब से टेलीवीजन की दुनिया शुरू हुई है, तब से बच्चों का ध्यान पढाई से हट कर टीवी आर्टिस्ट बनने की ओर आकर्षित हुआ है | बड़ी तादाद में बच्चे कलाकार बनाने के लिए टीवी मुकाबलों में हिस्सा ले रहे हैं , जिस की ट्रेनिंग और रिहर्सल में उन से दिन-रात मेहनत करवाई जाती है, अनेक बच्चों की पढाई तक छूट रही है | नियमावली में यह एक अच्छी बात जोड़ी गई है कि अगर कोई बच्चा बिना अनुमति के 30 दिन से ज्यादा स्कूल से गैरहाजिर रहता है तो यह स्कूल की जिम्मेदारी होगी कि वह सम्बंधित अधिकारी को अवगत करवाएगा | बच्चा कलाकार के तौर पर काम कर सकता है, लेकिन दिन में ज्यादा से ज्यादा पांच घंटे और उस में भी लगातार तीन घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकता | जहां कहीं भी बच्चों से कलाकार के तौर पर काम करवाया जा रहा होगा , प्रोड्यूसर को वहां के मजिस्ट्रेट से पहले अनुमति लेनी होगी | इस सम्बन्ध में नियमावली के साथ एक फ़ार्म नत्थी किया गया है, जिसे प्रोड्यूसर को भर कर मजिस्ट्रेट को देना होगा, इस में माँ-बाप या गार्जियन की सहमती, अनुमति और उस शख्स का नाम होगा, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा | जिस फिल्म या टीवी प्रोग्राम में बच्चों का इस्तेमाल किया गया होगा, उस प्रोग्राम में स्पष्टीकरण दर्शाना होगा कि प्रोग्राम बनाते समय बच्चे का किसी तरह का शोषण नही किया गया | प्रोड्यूसर को बच्चे की बिना बाधा शिक्षा, समय पर भोजन, आराम, नींद सब बातों का ध्यान रखना होगा और बच्चे की ओर से कलाकार के तौर पर कमाए गए पैसे में से कम से कम 20 प्रतिशत राशि बच्चे के फिक्स्ड अकाऊंट में जमा करवानी होगी |
( लेखक बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष हैं )
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