पांच राज्यो के नतीजे तय करेंगे भाजपा की अंदरुनी राजनीति

Publsihed: 25.Dec.2016, 18:07

2017 की पहली तिमाही में तय होगा कि भाजपा पर नरेंद्र मोदी और अमितशाह की जोडी का वर्चस्व बना रहेगा या पार्टी पर पकड ढीली पडेगी और संसद के बीते सत्र में शुरु हुई सुगबुगाहट कोई गम्भीर रूप ले लेगी. इन चुनाव नतीजो का असर राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के मध्य 2017 में होने वाले चुनावो पर भी पडेगा.

अगर यूपी,उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में भाजपा हारती है तो राष्ट्रपति पद पर लाल कृष्ण आडवाणी की दावेदारी और उप-राष्ट्रपति पद पर मुरली मनोहर जोशी की दावेदारी मजबूत होगी, जिसे जदयू , बीजू जद, शिवसेना और समाजवादी पार्टी तक का समर्थन मिल सकता है. इन चारो राज्यो के चुनाव नतीजे ही तय करेंगे कि  भाजपा 2018 तक राज्यसभा में कांग्रेस को पछाड कर आगे निकल पाएगी या नहीं.

असम का चुनाव जीत कर भाजपा ने अपना झंडा गाडे रखा था, असम के विधानसभा चुनावों की जीत उसके लिए सबसे बड़ी कामयाबी रही. लेकिन, नए साल की शुरुआत में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के दिमाग में एक बात जरूर होगी कि मोदी का नोटबंदी का फैसला यूपी समेत कई राज्यों में होने वाले चुनावों में पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा या नुकसानदायक ?

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए साल 2015 और 2016 कई तरह के उतार-चढ़ावों से भरा रहा है. एक तरफ उनके नेतृत्व में पार्टी को दिल्ली से लेकर बिहार तक के चुनावों में हार झेलनी तो वहीं लालकृष्ण आडवाणी जैसे बुजुर्ग नेताओं ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर इशारों ही इशारों में सवाल खड़े किए. हालांकि भगवा पार्टी ने पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया, जहां उसे परंपरागत रूप से कमजोर माना जाता रहा है. इसके अलावा बीजेपी ने असम, मध्य प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में हुए उपचुनावों और राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है.

महाराष्ट्र में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन और चंडीगढ़ निकाय चुनावों में जीत को बीजेपी नोटबंदी को मिले समर्थन का नतीजा मान रही है. यह नतीजे ऐसे वक्त में आए हैं, जब विपक्ष एकजुट होकर मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले की आलोचना कर रहा है. हालांकि नोटबंदी के फैसले का पूरा आकलन होना बाकी है, क्योंकि स्थानीय स्तर के नतीजे नहीं, बल्कि राजनीतिक परिणाम 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों में सामने आएंगे.

अगले साल राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं. सीधे तौर पर इन चुनावों में नोटबंदी भी एक बड़ा मुद्दा होगा. विपक्षी दल नोटबंदी के बाद देशभर में लगी लंबी लाइनों और आम लोगों को हो रही परेशानी के मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटे हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा बीजेपी के लिए पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी काफी कुछ दांव पर होगा. इनमें से दो राज्यों में वह सत्ता में है। मणिपुर में बीजेपी कभी सत्ता में नहीं रही है, लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर उसने मजबूत गठजोड़ बनाया है।

पंजाब और गोवा में 'आप' की चुनौती
पंजाब और गोवा दोनों ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी सत्ता में है। ऐसे में यहीं बीजेपी का काफी कुछ दांव पर होगा। लेकिन दिल्ली में करारी मात दे चुकी आम आदमी पार्टी भी यहां अपनी मजबूत पकड़ बनाने में जुटी है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस और 'आप' के साथ बीजेपी को त्रिकोणीय मुकाबले में उतरना पड़ सकता है।

80 लोकसभा सीटों वाला यूपी सबसे अहम
भले ही राजनीतिक दृष्टि से अन्य राज्य कम महत्वपूर्ण न हों लेकिन यूपी के चुनावी नतीजे बीजेपी के लिए खास मायने रखेंगे। इस सूबे में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जबकि 4 अन्य राज्यों में कुल 22 सीटें ही हैं। यही वजह है कि बीजेपी यूपी को केंद्र में रखकर ही अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है।

इन राज्यों में पकड़ बनाने पर ध्यान दे रहे शाह
जनवरी में बीजेपी की दोबारा कमान संभालने के बाद अमित शाह ने राज्यों की यूनिट्स को मजबूत करने पर जोर दिया है और इसी बहाने 2019 के आम चुनावों की बिसात बिछाना शुरू किया है। उनका मानना है कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल और पूर्वोत्तर जैसे राज्यों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन से वह 2019 में भी 2014 की कामयाबी को दोहरा पाएंगे। पार्टी का मानना है कि अकेले पश्चिमी राज्यों में बड़ी जीत के भरोसे वह 2014 की कामयाबी को दोहरा नहीं पाएगी। इसके लिए यूपी और बिहार में मजबूत प्रदर्शन जरूरी है.

( एजेंसी के इनपुट के साथ )

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