जेएनयू के नजीब विवाद का सच

Publsihed: 29.Oct.2016, 07:06

कम्युनिस्टों की सांप्रदायिक राजनीति का जीता जागता सबूत है, ताजातरीन " नजीब   विवाद " आइये नफरत के इन सौदागरों की असलियत समझने के लिये कुछ तथ्यों पर नजर डालते हैं -

1. #NajeebAhemad माही छात्रावास, कक्ष क्रमांक -106, जेएनयू में एमएससी जैव प्रौद्योगिकी प्रथम वर्ष का छात्र है।

2. 14 अक्टूबर को रात 11 बजे 3 छात्र विक्रांत, अंकित और सुनील जो मैस समिति और छात्रावास समिति के चुनाव के लिए खड़े हुए थे, होस्टल के प्रत्येक कमरे में चुनाव प्रचार के लिए घूम रहे थे, जब वे नजीब अहमद के कमरे में पहुंचे और उन्होंने खुद का परिचय दिया तो अचानक नजीब ने विक्रान्त को थप्पड़ मारा और पूछा कि वह अपनी कलाई पर लाल धागा क्यों पहने है, विक्रांत ने कहा कि यह तो कलावा है तो नजीब ने विक्रांत को और मारा तथा गाली- गलौच भी की, उसे जातिसूचक शब्दों से भी प्रताड़ित किया, यह होता देखकर बौखलाया अंकित दौड़कर तुरंत गया और सुरक्षा गार्ड को बुलाया, इतने में शोर शराबा सुनकर वार्डन भी वहाँ आ गए और नजीब को वार्डन कार्यालय ले जाया गया।

3. तीन छात्रावास वार्डनों अर्थात् वरिष्ठ वार्डन डॉ सुशील कुमार, वार्डन सोमजीत रे और वार्डन डॉ अरुण श्रीवास्तव, के साथ माही- माण्डवी छात्रावास अध्यक्ष श्री अलीमुद्दीन,  पूर्व छात्रावास उपाध्यक्ष दिलीप कुमार, जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित कुमार पांडे तथा नजीब के कक्ष में साथ रहने वाले मोहम्मद कासिम के समक्ष नजीब ने स्वीकार किया  कि उसने विक्रांत को थप्पड़ मारा था।

4. समिति ने नजीब को अनुशासनहीनता के लिए 21 अक्टूबर से छात्रावास से  निष्कासित करने का फैसला किया, जिस पर उपरोक्त सभी व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किए।

5. होस्टल वार्डन अरुण कुमार श्रीवास्तव ने 15 अक्टूबर दोपहर 12 बजे नजीब अहमद को JNU से  एक ऑटो में छात्रावास से बाहर जाते देखा। दोपहर बाद 2 बजे नजीब की माँ जिसे उसने वहां मिलने बुलाया था,जब आई, तो वह अपने छात्रावास में  नहीं था, उन्होंने यह भी देखा, कि वह कमरे में अपने मोबाइल छोड़ गया था।

6. वामपंथियों का कुचक्र प्रारम्भ हुआ, सम्पूर्ण जेएनयू केम्पस में नजीब के गायब होने की अफवाह षडयंत्र पूर्वक फ़ैलाई गई।
17  अक्टूबर को  जेएनयू छात्र संघ ने प्रशासनिक ब्लॉक के बाहर विरोध प्रदर्शन किया ।
18 अक्तूबर, जेएनयूएसयू से जुड़े आंदोलनकारियों द्वारा वसंत कुंज पुलिस स्टेशन के बाहर विरोध का नेतृत्व किया गया।
वसंत कुंज पुलिस स्टेशन से जेएनयू में गंगा ढाबे के रास्ते पर,  "मुस्लिम हितों का हनन हुआ तो, खून बहेगा सडकों पर" के विषैले,उत्तेजक और घोर सांप्रदायिक नारे लगाये गए।

7. 19 अक्टूबर की दोपहर में, जेएनयू छात्र संघ आंदोलनकारियों ने प्रशासनिक ब्लॉक की ओर से बाहर निकलने वाले सभी फाटकों को अवरुद्ध कर दिया तथा अगले 22 घंटों अर्थात 20 अक्टूबर को दोपहर तक के लिए अवैध रूप से कुलपति, रेक्टर-1, रेक्टर- 2, रजिस्ट्रार और जेएनयू के अन्य उच्च अधिकारियों को प्रशासनिक ब्लॉक छोड़ने की अनुमति नहीं दी। उन्हें फर्श पर सोना पड़ा और करवाचौथ के त्योहार पर उनके परिवारों से मिलने तक को नहीं जाने दिया गया। मधुमेह और अन्य बीमारी वाले अधिकारियों तक को घर जाने की अनुमति नहीं दी गयी। उनकी पत्नियाँ जो अपने पति से मिलने के लिए आईं, उन्हें प्रशासनिक ब्लॉक में प्रवेश करने से रोक दिया गया।मानवाधिकारों का इससे बड़ा और घनघोर हनन क्या हो सकता है?
भारी सुरक्षा कवर के बीच दोपहर 02:15 पर 19 अक्टूबर को, कुलपति और अन्य अधिकारियों को उनके शैक्षणिक परिषद की बैठक के लिए प्रशासनिक ब्लॉक से मुक्त किया गया।
23 अक्टूबर को 4:00 बजे के बाद जेएनयू छात्र संघ द्वारा कुलपति निवास से प्रशासनिक ब्लॉक तक एक मानव श्रृंखला के गठन के लिए आह्वान किया गया।
उस पोस्टर में जेएनयू छात्र संघ के छात्रों और यहां तक ​​कि बाहरी लोगों को भी नजीब के लापता होने के विरोध में मानव श्रृंखला में शामिल होने के लिए न्यौता दिया गया।

8. चारों ओर भय, आतंक और भ्रम का भयावह वातावरण बनाकर  भारत के सभी विश्वविद्यालयों को इस आंदोलन से जोड़ने की व्यापक योजनाओं के प्रसार के लिए वामपंथी रात- दिन एक कर रहे हैं।

9. पुलिस में शिकायत दर्ज होने के साथ ही प्राथमिकी दायर की गई है। कुलपति द्वारा भी पुलिस में शिकायत की गयी है। पुलिस ने नजीब के ठिकाने की खबर देने के लिये 50000 रुपये का इनाम देने की घोषणा की है। यहाँ तक कि केंद्रीय गृह मंत्री ने भी नजीब लापता मामले की खोज करने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स के रूप में करने के लिए पुलिस को निर्देश दिया है।

10. हालांकि, इस पूरे विवाद में, नजीब अहमद एक गौण मुद्दा बन गया है। कम्युनिस्टों की नफरत की राजनीति और पूरे मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने के लिए उनके प्रयत्न प्रमुख मुद्दा बन गया है।

11. इस मामले के 2 पहलू हैं। सबसे पहले, नजीब अहमद ने बिना किसी भी कारण और विक्रांत को थप्पड़ मारा था, तीन वार्डनों की समिति, जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित पांडे और हॉस्टल अध्यक्ष अलीमुद्दीन ने भी उसके निष्कासन ​​आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। दूसरा पहलू यह है कि नजीब अहमद, जेएनयू छात्र लापता है, जिसकी जाँच क़ानून द्वारा स्थापित पुलिस घटना की प्रक्रिया के तहत कर रही है।

हालांकि, कम्युनिस्टों द्वारा चलाया जा रहा कैम्पेन 'लापता नजीब' एक बहाना है, कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा करके, साम्प्रदायिक और समाज विभाजन के कुचक्रों द्वारा पूरे जेएनयू को पंगु  बना दिया गया है।
2016 में कम्युनिस्टों की नफरत की राजनीति "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी" द्वारा प्रयास किया गया कि भारतीय समाज को " रोहित वेमुला" के नाम पर जातियों में विभाजित किया जाये, इस बार समाज को सांप्रदायिक आधार पर  विभाजित करने के लिए कम्युनिस्ट शैतानों द्वारा इस मुद्दे को उठाया जा रहा है।
भारत और उसकी जनता को सम्पूर्ण विश्व में बदनाम करने के इस घृणित षडयंत्र को समझ कर कम्युनिस्टों के विभाजनकारी खेल का मुंहतोड़ जवाब दिया जाना आवश्यक है।

एडवोकेट मोनिका अरोड़ा जी की वॉल से साभार

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