भावुक कर गई योगी के परिवार की साधगी

Publsihed: 20.Mar.2017, 08:25

-विनोद मुसान / हर कोई चाहता है कि समाज में साधु-संत धर्म का विस्तार करें। लेकिन सन्सासी उनके घर में पैदा हो, ऐसी चाहत किसी की नहीं होती। 
योगी आदित्य नाथ के पिता श्री आनंद सिंह बिष्ट से रिपोटर ने जब ये प्रश्न पूछा तो उनका भावुक होना स्वाभाविक था। रुआंसे गले से बोले, ये बात सच है। जब बेटा संन्यास लेने की बात कहे तो कोई भी माता-पिता इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे। 
लेकिन उनका बेटा संन्यासी जीवन जीते हुए जिस पथ पर चला, उन्हें आज उस पर गर्व है। 
सादगी देखिये, रिपोटर ने उलझाने वाला सवाल पूछा, योगी आदित्य नाथ हिन्दुत्व की बात करते हैं, मुसलमान उनसे डरते हैं, अब वह उत्तर प्रदेश का राज कैसे चलाएंगे?
इस पर आप का क्या कहना है। बोले- हां ये बात सही है, उनके गुरु भी इस राह पर चले थे, लेकिन बाद में उन्होंने सबको साथ लेकर चलने की बात कही। योगी भी पिछले दिनों गांव आए थे, मैंने उनसे इस बात का जिक्र किया, तब वो बोले-नहीं वक्त बदल गया है, हम विकास की बात करेंगे, आगे बढ़ने की बात करेंगे, सबकों साथ लेकर चलेंगे। भारत के संविधान के अनुसार, जो भी व्यक्ति कानून का पालन करेगा, अपने देश को सर्वप्रथम रखेगा, उसका कोई बुरा कर ही नहीं सकता। संप्रदाय नहीं, देश सर्वोपरि है।  
कोई लाक-लपेट नहीं, सीधा सा उत्तर दे दिया। माइक मां श्रीमती सावत्री देवी की तरफ घुमा तो, उनके मुख से शब्द न फूट पाए। इतना भर बोली, बेटा अच्छा करे, इससे बढ़कर मां-बाप के लिए और क्या हो सकता है। उसके बाद रुआंसी हो गई। 
किसी भी मां-बाप के लिए यह गौरव के क्षण हो सकते हैं। जब भारत के भीरत बसा एक देश उत्तर-प्रदेश का मुखिया उनका बेटा बन रहा हो।
घर का माहौल, रहन-सहन देखकर कल्पना नहीं की जा सकती, ये योगी आदित्य नाथ का घर है, जो उत्तर-प्रदेश का मुख्यमंत्री तो अब बना है, लेकिन मात्र 26 साल की आयु में सबसे कम उम्र का सांसद बन गया था। 
1998 से ही उत्तर-प्रदेश में उसकी तुती बोलती थी। सांसद न भी बना होता, वो तब भी एक ऐसे मठ का पुरोधा बन गया था, जहां दुनिया आकर माथा टेकती है। लेकिन, इस परिवार ने अपनी साधागी नहीं छोड़ी। वह आज भी ग्रामीण जीवन जी रहा है, वही रुखी-सूखी रोटी खा रहा है, जो वो कमा सकता है। 
छोटा भाई एक अखबार में रिपोटर है, लेकिन वह भी नियमित नहीं है। बड़ा भाई आज भी एक छोटी सी नौकरी में अपना जीवन व्यापन कर रहा है। दोनों से इस बाबत सवाल पूछे गए, लेकिन जवाब लाजवाब थे, बोले-हर आदमी का कर्म नियत होता है, आज हम यहां हैं, इसलिए आप हमारे पास आए हैं। हम वहां होते तो हमारा आज कहीं जिक्र भी नहीं होता। वो अपना कर्म कर रहे हैं, हम अपना। बताते हुए दोनों की आंख में आंसू आ गए। गर्व और जज्बात जब मिल जाते हैं तो आंखों से बहने लगते हैं, कुछ ऐसा ही नजारा था। 
अजय बिष्ट ने जब से सन्यास लिया, तभी यह नाम भी मर गया था। आज उनका परिवार भी यहां तक की मात्रा-पिता भी इस नाम से उन्हें संबोधित नहीं करते। भारत में संत-संयासियों की परंपरा का निर्वाहन करते हुए वे योगी महाराज ही संबोधित करते हैं। पिता के मुख से योगी के लिए-उन्हें, उनका, उन्होने, वे आए थे जैसे शब्द सुनकर पहले तो अटपटा लगा। 
लगा सामने कैमरे और माइक को देखकर हड़बड़ा गए हैं, लेकिन जब उनकी माता, बड़े भाई के मुख से भी यही शब्द सुने तो अचरज हुई। आखिर रिपोटर ने इस बाबत पूछ ही लिया। बड़े भाई बोले, हां उन्होंने मेरे हाथ की मार भी खाई है। लेकिन तब एक बड़े भाई ने छोटे भाई को मारा था। अब वह एक संत हैं, जिस दिन वे गददी पर विराजमान हुए, उसी दिन रिश्तों की परिभाषा भी बदल गई। कहने को रिश्ते में हमारे वे भाई हैं, लेकिन सांसारिक जीवन में हम से ज्यादा समाज का उन पर अधिकार है। 
अब ऐसे में कोई कहे, जो अपने उत्तराखंड का न हुआ, वो उत्तरप्रदेश का क्या होगा। तो इसे आप क्या कहेंगे। यही कहेंगे ऐसे लोगों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। कोई अपना घर की किस उददेश्य के लिए छोड़ रहा है, यह बड़ी बात है। 
ऐसे लोगों से मैं कहना चाहूंगा कि वे अपनी सोच बदले। गर्व करें, आपके बीच खाया-खेला एक लाल उत्तराखंड के गदेरों से निकलकर आज एक शीर्ष स्थान पर पहुंचा है। 
योगी ही नहीं, उसके परिवार ने साधगी की जो मिसाल कायम की है, उसे भी हम नमन करते हैं। नमन करते हैं इस देवभूमि को, जिसके संस्कार आज दुनिया में बोल रहे हैं, जिसने दुनिया के सामने उदाहरण पेश किया है। वरना गरीब की एक बेटी और उसके परिवार को उत्तर-प्रदेश में दुनिया ने पहले भी देखा है।

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