दीपक शर्मा / जिस देश में ‘समृद्ध’ नेताओं की कमाई सरकारी दलाली पर निर्भर हो, जहाँ नौकरशाह रिश्वतखोर और उद्योगपति कर-चोर हों, उस देश के बारे में अगर डोनाल्ड ट्रम्प ये कहें कि भारत अरबों डालरों के दान और ग्रांट का भूखा है तो बुरा तो बहुत लगता है...लेकिन ट्रम्प की बात गलत नही है.
ट्रम्प मुहंफट हैं, बेधडक हैं, इसलिए किसी अबूझ या कुभाषी की तरह अक्सर नंगा सच बोल जाते हैं. उन्होंने पेरिस की पर्यावरण संधि के संदर्भ में कहा कि भारत को विकसित देशों से सिर्फ अरबो-खरबों की ग्रांट चाहिए. भले ही भारत अपने यहाँ प्रदूषण कम करे या ना करे लेकिन खरबों डालर की ग्रांट पर उसकी निगाह है. ट्रम्प के इस भारत विरोधी बयान की निंदा होनी चाहिए लेकिन इस ग्रांट का बड़ा हिस्सा लूटने वाले नेता-नौकरशाह-उद्योगपतियों पर हम पर्दा क्यूँ डालें ?..
आखिर कब तक महाशक्ति का सपना देखना वाला ये देश अंतर्राष्ट्रीय सहायता और दान के लिए हाथ पसारेगा ? क्या यही 1.30 अरब भारतियों का स्वाभिमान है ? क्या यही हमारी गैरत और आबरू है ? क्या देश को 2.60 अरब हाथ दुनिया से दान और भीख मांगने के लिए मिलें हैं ?
हमारे बराबर या हमसे कुछ ही ज्यादा जनसँख्या वाला चीन है ...जो तीन दशक पहले अर्थ व्यवस्था में हमसे पीछे था लेकिन आज वो दुनिया के आगे हाथ नही फैलाता है. आज, हमारा पडौसी चीन, अफ्रीका और कईं कमज़ोर एशियाई देशों का पेट पाल रहा है.
और एक हम है ...जो हमेशा दरिद्र पाकिस्तान को अपनी विदेश नीति के केंद्र में रखते हैं. कश्मीर हो आतंकवाद हो, नक्सल समस्या हो...पाकिस्तान सर्वविदित है. इधर घरेलू मामलों में हमारी राजनीति या यूँ कहें कि हर नीति, मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटबैंक पर केन्द्रित रहती है. नौकरी हो, सब्सिडी हो, कोई आयोग हो या बड़ा निर्णय हो, पिछड़े, दलित, मुस्लिम हम नही भूलते. क्यूंकि ये वोट की राजनीति में निर्णायक है. शायद यही वजह है कि हमारी सरकारें पाकिस्तान और वोटबैंक के जाल से कभी आगे बढ़कर इस देश को किसी बहुत ऊंचे लक्ष्य तक नही ले जा सकीं.
हमने अर्थ क्रांति को कभी देश के अजेंडे पर सबसे ऊपर रखा ही नही. हमने ओद्योगिक उत्पादन को राष्ट्रीय लक्ष्य कभी माना ही नही. हम 21वी शताब्दी में भी खुले में शौच करने वाले लोगों को गली-गली, गाँव-गाँव ढूंढ रहे हैं. महानायक अमिताभ बच्चन देश के बच्चों से कह रहे हैं कि लोटा लेकर चलने वालों को ढूंढो. गाँव-गाँव ढूंढो. ये अलग बात है कि आज हमे ढूँढना तो नये जमशेदजी टाटा, घनश्याम दास बिरला या जमना लाल बजाज को है...लेकिन हम ढूंढ किसी और को रहे हैं. हमे ढूंढना तो उन युक्ति और निर्माण पुरुषों को है जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेकर ब्रिटिश मिलों को पानी पिला दिया था. हमे ढूंढना तो उन्हें है जिन्होंने सौ बरस पहले देश में स्वदेशी कारखानों के नये मंदिर निर्माण किये थे.
कम लोग जानते हैं कि 1950 के दशक में भारत विश्व की सातवीं बड़ी ओद्योगिक शक्ति था जब चीन अपनी गरीबी से संघर्ष कर रहा था. लेकिन हम अपनी ताकत धीरे धीरे खोते चले गये. हमने अपने कारखानों को पूजना बंद कर दिया. हमारे नेताओं की रूचि स्टील कारखानों और मिलों से हटकर , चिट फंड कम्पनी और भ्रष्ट बिल्डरों में बढ़ने लगी. हमारी अर्थ व्यवस्था में जमशेदजी जैसों का महत्व जाता रहा. हमारी नई अर्थ व्यवस्था के मानक झुनझुनवाला जैसे शेयर दलाल हो गये जो आईपीओ की बड़ी बड़ी डील के कुबेर बने. जिस देश के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की सीईओ को ऑनलाइन ट्रेडिंग में कुछ दलालों को फायदा पहुंचाने का दोषी माना जाये उस देश के शेयर मार्किट का असली हाल क्या होगा ..ये कोई अर्थशास्त्री सहजता से समझ सकता हैं. जिस देश में फैक्ट्रियों की जगह शैल कम्पनियों के ज़रिये लाभ अर्जित करने की परम्परा हो वहां ओद्योगिक उत्पादन के श्रम और संकल्प में किसको दिलचस्पी होगी.
बहरहाल वक़्त अभी गुजरा नही. भारत को बड़े कारखाने, भारी उद्योग के नये प्रतीक चाहिए. हर प्रदेश को कोई जमशेदजी चाहिए. हर प्रदेश को विश्वकर्मा का अवतार चाहिए. लेकिन सच ये है कि आज हमारे प्रदेश सुब्रोतो रॉय, पोंटी चढ्ढा या आम्रपाली और सुपर टेक जैसे बिल्डर और चिट फंड मालिक खोज रहे हैं. शायद सत्ता को ज़रुरत धन सम्पनता की नही धन संचय करने वालों की है. यही वजह है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में उद्योग का बहुत बुरा हाल है. अगर नॉएडा/ग्रेटर नॉएडा छोड़ दें तो पूरे प्रदेश में 1989 के बाद से कोई भी बड़ी इंडस्ट्री नही आई. कानपुर से लेकर बनारस तक और आगरा से लेकर गोरखपुर तक भारी उद्योग के क्षेत्र में तीस वर्षों से अकाल है.
मित्रों, जिस समाज और सभ्यता में, हज़ारों वर्षों से युक्ति और निर्माण की अवधारणा रही हो वहां की दुर्दशा देख आज मन विचलित होता है. इसलिए भगवान् विश्वकर्मा का आज आशीर्वाद चाहिए. हे युक्ति, निर्माण और उपकरणों के देव विश्वकर्मा ! हे शिल्प शास्त्री ! हे उत्पादन और सम्पनता के जनक ...अब आप ही अवतरित हो जाईये . वर्ना पाकिस्तान की आढ़ में ये चीन हमें निगल जाएगा. .(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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