अमर उजाला अखबार के पत्रकार युसुफ किरमानी लिखते हैं : "ईद का मौका है, लेकिन बगदाद के उन 200 घरों में मातम है....ढाका के तमाम घरों में मातम है...तुर्की में मातम है....उनके घरों में अब अच्छी वाली ईद कभी नहीं आएगी...अब जरूरत आ पड़ी है...उस आतंकवादी मानसिकता वालों से लड़ने की, जो इस्लाम की जड़ों को खोखला करना चाहते हैं. "
बहुत अच्छा लिखा है. लेकिन यह समझ नहीं आया कि इस से इस्लाम को खतरा कंहा से पैदा हो गया. इस्लाम की जडों को खोखला कौन कर रहा है. आतंकवाद के कारण इस्लाम खतरे में है या इस्लाम को खतरा है इस लिए आतंकवाद है. मैने युसुफ किरमानी के कई पोस्ट और प्रतिक्रियाएं पढीं, तो इस नतीजे पर पंहुचा कि वह दुनिया भर में फैले मुस्लिम आतंकवाद को इस्लाम के खिलाफ साजिश बता रहे हैं.
कई जगह उन्होंने स्पष्ट करने की कोशिश की कि यह जो दुनिया भर में आतंकवाद फैल रहा है, इस के पीछे अमेरिकी साजिश है. यानि न्यूयार्क, फ्रांस, स्पेन, बगदाद, ढाका, तुर्की, मुंबई, दिल्ली, जयपुर, हैदराबाद की सारी आतंकवादी वारदातें अमेरिका करवा रहा है. और इन वारदातों को सरअंजाम देने वाले असल में मुस्लिम नहीं, अमेरिकी ईसाई हैं. ओसामा बिन लादेन, अब्बू हमजा, हाफिज सईद और इस्लाम का टेलीविजन प्रचारक जाकिर नाईक असल में या तो ईसाई हैं या हिंदू हैं या यहूदी हैं, पर मुसलमान नहीं हैं. वह एक अन्य जगह पर लिखते हैं :
" क्या कोई मुसलमान मस्जिद-ए-नबवी को उड़ाना चाहेगा...मदीना में जहां स्यूसाइड अटैक हुआ, वहां से मस्जिद-ए-नबवी और पैगंबर की मज़ार नजदीक है। ...उनकी नजर अब काबा पर है...मस्जिद-ए-नबवी वो जगह है, जहां पैगंबर नमाज़ पढ़ा करते थे....ईद से ठीक पहले हुई यह घटना बहुत बड़ी साजिश है...आतंकियों के निशाने पर इंसान ही नहीं हर वो चीज है जिनसे इस्लाम आज भी मज़बूती के साथ खड़ा है और उस के नैतिक मूल्यों का पता चलता है।
...आतंकी या वो ताकतें उन सारी चीजों को निशाना बना रहे हैं, जिनसे लोग इस्लाम नामक धर्म से नफरत करें...ये लोग कौन हो सकते हैं...ये मुसलमान तो नहीं होने चाहिए जो अपने ही पैगंबर की निशानियों को मिटा दें......इससे पहले सऊदी अरब ने जन्नतुल बकी पर इसी तरह का अटैक किया था...कुछ दिनों पहले करबला में इसी तरह का अटैक हुआ....आतंकवादियों ने..दरअसल इस्लाम के खिलाफ संगठित लड़ाई छेड़ दी है...इसके पीछे कौन है...उसके क्या इरादे हैं...इस पर आम मुसलमान को अब सोचने की जरूरत है..."
यानी कुल मिला कर एक मुस्लिम पत्रकार यह मानने को तैयार नहीं कि बीमारी घर में पैदा हुई है, ये जो मुसलमानों मे इस्लाम का प्रचार करने के लिए बाकी सभी धर्माविलंबियों को काफिर और काफिर का कत्ल जायज ठहराने की बीमारी है , उसी ने मुसलमानों युवाओं में आतंकी मानसिकता पैदा की है. इस्लाम को शांति का धर्म बता कर वाहाबिज्म को अपनाना दोहरा चरित्र है. कब तक दुसरों पर दोष मढ कर सच्चाई का सामना करने से बचते रहेंगे. सच में मुस्लमानों को सोचने की जरूरत है कि उन का समुदाय दुनिया भर में आतंकवादी वारदातें क्यों कर रहा है. जब दुनिया भर के मुसलमान ओसामा बिन लादेन को उचित ठहराते रहेंगे तो दुनिया उन्हें आतंकवादी समझेगी ही. मुसलमान सिर्फ यह कह कर बरी नहीं हो सकते कि आतंकवादी वारदातें करने वाला मुसलमान हो ही नहीं सकता,,सच तो यही है कि बगदाद, बांग्लादेश , तुर्की, स्पेन, फ्रांस, अफ्गानिस्तान , सऊदी अरब सब जगह आतंकी वारदातें करने वाले मुसलमान ही तो हैं.
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