टीएन. शेषन वृद्धाश्रम में जी रहे हैं गुमनामी भरी जिंदगी

Publsihed: 11.Jan.2018, 08:46

श्याम सिंह रावत /

देश में निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा और हनक कायम करने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन. शेषन आज बुढ़ापे में संकट-भरा जीवन गुजार रहे हैं। एक वृद्धाश्रम में उनकी जिंदगी गुमनाम शख्स की तरह कट रही है। 

उन्होंने निर्वाचन आयोग का ऐसा रुतबा कायम किया था कि 90 के दशक में एक मजाक बहुत प्रचलित था कि भारत के नेता या तो खुदा से डरते हैं या फिर टीएन. शेषन से। जब 1955 में आइएएस टॉपर रहे टीएन. शेषन ने 1990 में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला तो स्थितियां बहुत खराब थीं। चुनावों में बूथ कैप्चरिंग के लिए बिहार बदनाम था। हिंसा और बड़े पैमाने पर गड़बडी़ होती थी, लेकिन टीएन. शेषन ने कठोर कदम उठा कर वह सब बंद कराया। इसके लिए उन्होंने बिहार में कई चरणों में चुनाव कराये। इसके अलावा एक रणनीति के तहत कई बार चुनाव तिथियों में फेरबदल भी किया। बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए पहली बार उन्होंने देश में केंद्रीय सुरक्षा बलों की निगरानी में चुनाव कराया। वर्ष 1997 में शेषन राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं, हालांकि उन्हें केआर. नारायणन से हार का सामना करना पड़ा।

एनबीटी. की एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनावों में पारदर्शिता लाने वाले शेषन आज चेन्नई में गुमनामी भरी जिंदगी जी रहे हैं। वे भूलने की बीमारी के भी शिकार हैं। स्वस्थ महसूस करने पर कभी अपने घर आ जाते हैं, तो कभी 50 किमी. दूर वृद्धाश्रम में रहने के लिए चले जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 85 वर्षीय टीएन. शेषन साईं बाबा के भक्त रहे। उनका 2011 में निधन हुआ तो उन्हें सदमा पहुंचा। फिर भूलने की बीमारी हो गई। इस हाल में नजदीकी रिश्तेदारों ने एक वृद्धाश्रम में भर्ती करा दिया। उन्होंने करीब तीन साल वृद्धाश्रम में बिताए, बाद में स्वस्थ हुए तो घर लौट आए। अब भी वे कभी-कभी वृद्धाश्रम चले जाते हैं। 

तमिलनाडु काडर के आइएएस अफसर टीएन. शेषन ने 12 दिसंबर 1990 को देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पदभार संभाला था। इस पद पर वे 11 दिसंबर 1996 तक रहे। उन्होंने 1995 में पहली बार बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराकर इतिहास रच दिया। सख्ती के कारण  कई नेताओं से उनका विवाद भी हुआ। इससे पहले 1992 के उप्र. विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी आइएएस-आइपीएस अफसरों को दो टूक कह दिया था कि किसी भी तरह की गड़बड़ी होने पर वे ही जिम्मेदार होंगे। साथ ही 50 हजार अपराधियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि या तो वे खुद को तुरंत पुलिस के हवाले कर दें या फिर अग्रिम जमानत लें, नहीं तो बख्शे नहीं जाएंगे। इसका यह असर हुआ कि उस समय उप्र. में भी शांतिपूर्वक और पारदर्शिता के साथ चुनाव हुए।

देश के निर्वाचन आयोग की भूमिका के विषय में टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले तक देश की जनता को कुछ विशेष मालूम न था लेकिन जब टीएन. शेषन ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला तो देश की चुनाव-प्रक्रिया में क्रान्तिकारी सुधार हुए। उन्होंने न केवल चुनावों में होने वाली तमाम तरह की धांधलियों पर अंकुश लगाया, बल्कि कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों को भी अपने सांगठनिक चुनाव कराने पर विवश कर राजनीतिक दलों के भीतर भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने पर जोर दिया।

आपकी प्रतिक्रिया