रोहित वेमूला की जांच से मीडिया की भी साख गिरी

Publsihed: 20.Aug.2017, 14:24

अजय सेतिया / जब राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल, सीताराम येचुरी और मायावती ने हैदराबाद में आत्महत्या करने वाले रोहित वेमूला को दलित बता कर नरेंद्र मोदी को बदनाम करने का देशव्यापी अभियान शुरू किया था , तब मुख्यधारा के मीडिया ने विपक्षी दलों की ओर से झूठ पर आधारित अभियान चलाने में न सिर्फ मदद की थी , अलबत्ता जमीनी पत्रकारों की उन रिपोर्टों को दबा दिया गया था, जिन में राजनीतिक दलों के आरोपों को बेबुनियाद बताया गया था | विजुअल मीडिया आने के बाद देश के प्रिंट मीडिया की  ऐसी दुर्दशा हो गई है कि बड़े न्यूज चेनलों से प्रभावित हो कर ख़बरें लिखी जाने लगी हैं | खासकर देश की राजधानी के अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों ने खुद मेहनत करना छोड़ दिया है, क्योंकि उनकी रिपोर्ट की कोई अहमियत नहीं रह गई है | अखबार का सम्पादक तब तक रिपोर्टर की खबर से सहमत नहीं होता, जब तक न्यूज चेनेल पर आई खबर से मेंल न खाती हो | रोहित वेमूला इस का जीता जागता सबूत है केंद्र सरकार के मंत्री थावर चाँद गहलोत ने 2016 के बजट सत्र में वे सारे दस्तावेज दिखाए थे, जिन से साबित होता था कि रोहित वेमूला के दलित होने का सर्टिफिकेट गलत तरीके से बनवाया गया था , इस के बावजूद ज्यादातर अखबार और सारे न्यूज चेनेल उसे दलित बताते रहे | संसद में बाकी सभी विपक्षी दल भी वामपंथियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर झूठ को सच साबित करने में जुटे रहे | 
वामपंथी दलों ने दादरी में गौ मांस के नाम पर की गई अखलाक की ह्त्या के साथ ही रोहित वेमूला की आत्महत्या को जोड़ कर देश में असहिष्णुता का कोहराम मचा दिया था , जिसमें राहुल गांधी का शामिल होना मजबूरी हो गई थी | असल में मोदी विरोध के नाम पर वामपंथी दलों ने समृद्ध इतिहास वाली कांग्रेस को भी अंधा बना दिया है कि वह सच और झूठ की पहचान किए बिना अंध विरोध में शामिल हो गई है | इसी लिए देश की आजादी की अगुआ पार्टी का उपाध्यक्ष उस रैली में जाने में भी गुरेज नहीं करता , जिस में भारत के टुकडे करने के नारे लगाए जा रहे हों | हैदराबाद का कथित दलित आत्महत्या का मामला एक ऐसा ही मामला था , जिसे देश के सारे मीडिया ने बिना तथ्यों की पड़ताल किए एकतरफा ही प्रसारित प्रकाशित किया | इस की पृष्ठभूमि भी जेएनयूं में लगे भारत विरोधी नारों से मिलती जुलती थी | असल में 1993 के मुम्बई विस्फोटों के लिए जिम्मेदार आतंकवादी याकूब मेमन को फांसी दिए जाने के खिलाफ वामपंथी छात्रों ने जैसे जेएनयूं में प्रदर्शन किया था | वैसे ही अंबेडकर स्टडी एसोसिएशन के बैनर तले हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी प्रदर्शन किया था | रोहित वेमूला इसी संगठन से जुडा था , प्रदर्शन के सिलसिले में उन की विद्यार्थी परिषद के छात्रों से भिडंत हो गई थी , जिस में विद्यार्थी परिषद का एक छात्र गंभीर रूप से घायल हुआ | उसी की शिकायत स्थानीय सांसद बडारू दतात्रे के माध्यम से मानवसंसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को भिजवाई गई | जख्मी बच्चे की मां हाई कोर्ट भी गई | 
हाई कोर्ट और मानव संसाधन मंत्रालय  ने विश्वविध्यालय से रिपोर्ट माँगी थी | हाईकोर्ट और मंत्रालय के दबाव में ही रोहित वेमूला और चार अन्य छात्रों को हास्टल से निलंबित किया गया | हास्टल से अपने निलम्बन के दौरान ही 17 जनवरी 2016 को रोहित वेमूला ने हास्टल में ही आत्महत्या कर ली | जबकि  अपने सुसाईड नोट में उस ने न विश्वविध्यालय की कार्रवाई का जिक्र किया है, न दलित होने के कारण किसी भेदभाव का जिक्र किया है, न निलम्बन का जिक्र किया है , उस ने नोट में पारिवारिक एंव व्यक्तिगत कारणों को आत्महत्या का जिम्मेदार माना था | उस ने अपने बचपन में हुई अनदेखी की व्यथा भी लिखी थी इस के बावजूद वामपंथियों ने सारे तथ्यों को दरकिनार कर देश भर में ऐसा वातावरण बनाया कि जैसे दलित होने के कारण उसे निलम्बित किया गया और भेदभाव के कारण उस ने आत्महत्या की | राहुल गांधी तो दो बार खुद हैदराबाद जा कर वामपंथी छात्रों के साथ धरने पर बैठे | यहां तक कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने भी इस मुद्दे पर फेसबुक में सनसनीखेज बात कही | उन्होंने कहा कि रोहित वेमूला ने आत्महत्या नहीं की, अलबत्ता उनकी हत्या की गई है | नरेंद्र मोदी केबिनेट की मंत्री स्मृति ईरानी और हैदराबाद के सांसद एंव मंत्री बडारू दतात्रे को इस हत्या का जिम्मेदार बताया गया था | 
अब रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश अशोक कुमार रूपनवाल की अध्यक्षता वाली न्यायिक जांच समिति की रिपोर्ट पिछले सोमवार 14 अगस्त को सार्वजनिक की गई तो वह सभी बातें सच निकली , जिन का जिक्र संसद के भीतर थावर चंद गहलोत कर रहे थे , केंद्र के मंत्री के बयानों और दस्तावेजों को चुनौती देने और उन्हें गलत साबित करने की बजाए  देश भर का मीडिया उन सभी तथ्यों को छुपा कर भ्रांतिपूर्ण रिपोर्टिंग कर रहा था | अब न्यायिक जांच रिपोर्ट से राजनीतिक दलों के साथ साथ मीडिया की भी साख गिरी है | राजनीतिक दल तो अभी भी अपने राजनीतिक एजेंडे पर काम करते हुए जांच रिपोर्ट को यह कह कर खारिज कर सकते हैं कि यह जांच तो केंद्र सरकार ने गठित की थी | लेकिन मीडिया तो ऐसा नहीं कह सकता | मीडिया को इस से सबक लेना चाहिए कि किसी राजनीतिक दल की और से परोसी गई सामग्री को आँख कां बंद कर के भरोसा नहीं किया जाना चाहिए | उस पर वाजिब सवाल खड़े किए जाने चाहिए, जैसे वेमूला गोत्र जब ओबीसी का होता है तो वह दलित कैसे था | न्यायिक जांच रिपोर्ट में न सिर्फ रोहित के दलित होने को खारिज किया गया है, बल्कि यह भी कहा गया कि रोहित वेमुला ने बिना किसी के उकसावे के अपनी मर्जी से आत्महत्या की थी | 
रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे की घटनाओं के लिए तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी और  बंडारू दत्तात्रेय को जिम्मेदार नहीं माना गया है | रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद विश्वविद्यालय की ओर से वेमुला और चार अन्य छात्रों को हॉस्टल से निकाला जाना वेमुला को आत्महत्या के लिए उकसाने की वजह नहीं था | अलबत्ता वेमुला घरेलू समस्याओं में घिरा हुआ शख्स था और कई कारणों से असंतुष्ट था  | जांच रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि  'ऑन रेकॉर्ड मौजूद उनका सूइसाइड नोट बताता है कि रोहित वेमुला की अपनी दिक्कतें थीं और वह दुनिया में चल रहे मामलों से खुश नहीं था | वह उन कई कारणों से हताश था , जिनके बारे में वही बेहतर जानता था  | वह बचपन से अकेलेपण का शिकार था , उस की उपेक्षा हुई, लेकिन कभी तारीफ नहीं की गई | उससे भी उनकी निराशा जाहिर होती है  | रिपोर्ट में लिखा है,कि अगर वेमूला विश्व विद्यालय के फैसले से नाराज हो कर आत्महत्या कर रहा होता तो शर्तिया तौर पर अपने सुसाईड नोट में वह इसके बारे में लिखता या इस ओर इशारा करता ,लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया | इस से स्पष्ट है कि विश्व विद्यालय की कार्रवाई उसकी आत्महत्या की वजह नहीं थी | 
वामपंथियों ने देश में मुसलमानों और दलितों के लिए असहिष्णुतापूर्ण वातावरण का दोष मढने के लिए अखलाक के साथ रोहित वेमूला का नाम जोड़ा था | वेमुला की जाति को लेकर रिपोर्ट में लिखा है, 'रेकॉर्ड में मौजूद सबूत बताते हैं कि वह (वेमुला की मां वी राधिका) वढेरा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए रोहित वेमुला को मिला अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र असली नहीं कहा जा सकता और वह अनुसूचित जाति से नहीं था  | रोहित वेमूला ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखता था  , उस की मां का तलाक हो गया था और तलाक के बाद उस ने सरकार की आर्थिक सहायता पाने के लिए अपने बच्चों को दलित बता कर अनुसूचित जाति के झूठे प्रमाणपत्र बनवाए थे | 

 

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