डूबते को तिनके का सहारा होता है। कांग्रेस की हालत और राहुल का अयोध्या जाकर मत्था टेकना। इस पर बीजेपी की चिंता स्वाभाविक है ! गांधी परिवार अयोध्या से परहेज कर्ता रहा है ! राजीव गांधी के बाद गांधी परिवार से कोई भी अयोध्या नहीं गया ! राजीव गांधी ने भी 1991 के चुनाव में दांव लगाया था! क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर बनाने का सपना बीजेपी नेताओं का है, और उत्तरप्रदेश के इस बार के चुनाव कांग्रेस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो गये हैं ! इस लिए राहुल ने भी अपने पिता की तरह दांव लगा दिया है ! बीजेपी वालों को कांग्रेस की यह चाल बिल्कुल समझ से परे है। कांग्रेस क्या कोई भी धर्मनिरपेक्ष ताकत अयोध्या जाए तो भी बीजेपी को चिंता सताने लगती है लेकिन अब राहुल गांधी का अयोध्या जाने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का राम मंदिर बनाने का राग बीजेपी के लिए आगे चुनाव में मुसीबत पैदा करेगा। मैं यह नहीं कह रहा हुँ कि राहुल गांधी राम मंदिर को मुद्दा बना सकते हैं। लेकिन यह बात सत्य है कि भारत का एक समुदाय अयोध्या में राम मंदिर देखना चाहता है और वह समुदाय इस वक्त बीजेपी के साथ खड़ा हुआ है। सुनने में यह भी आया है कि राम मंदिर की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने राहुल के कदम की सराहना की है। जो संगठन आर एस एस का घटक कहा जाता हो उसी के नेता राहुल की तारीफ करें (मंदिर में मत्था टेकने को लेकर) तो बीजेपी व आर एस एस को चिंता होना स्वाभाविक है। आम चुनाव में कांग्रेस भी दुर्दशा पहले ही हो चुकी है धीरे-धीरे करके वह राज्यों से भी सिमटती जा रही है। ऐसे में राहुल गांधी का अयोध्या जाना कहीं मास्टर स्ट्रोक तो नहीं क्योंकि भारत का अल्पसंख्यक समुदाय जानता है कि पार्टियां और नेता उसको सिर्फ वोट बैंक ही समझते हैं। यह बात अब कांग्रेस को भी समझ आने लगी है कि सिर्फ अल्पसंख्यक किसी चुनाव में जीत नहीं दिला सकते हैं ऐसे में बहुसंख्यकों के साथ खड़ा ही होना पड़ेगा। वहीं पिछले काफी समय से बहुसंख्यक समाज कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ वोट करता ही आ रहा है। उत्तर प्रदेश चुनाव में बहुसंख्यकों साध कर ही कांग्रेस का कल्याण संभव है। अब देखना यह है कि बीजेपी व कांग्रेस में कौन पहले अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए ईटें भिजवाता है?
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