राष्ट्रपति भवन में सरसंघ चालक के जाने का मतलब

Publsihed: 18.Jun.2017, 17:39

अजय सेतिया / राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन और राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ की दूरी खत्म करने का रिकार्ड बनाया है | प्रणव मुखर्जी देश के पहले राष्ट्रपति बन गए हैं जिन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को राष्ट्रपति भवन में भोज पर आमंत्रित किया | वैसे मोहन भागवत पहले भी दो बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिल चुके हैं | यानी ये इन नेताओं की पहली मुलाकात नहीं थी |  

हालांकि देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दूसरी बार एक स्वय सेवक बैठा है, लेकिन राष्ट्रपति पद पर स्वय सेवक का बैठना तो दूर अब तक कोई आरएसएस प्रमुख राष्ट्रपति भवन ही नहीं गया था | प्रणव मुखर्जी सारी उम्र कांग्रेसी और आरएसएस विरोधी रहे हैं | हालांकि राजनीतिक हलकों में मोहन भागवत को प्रणव मुखर्जी को न्योता दी जाने को राष्ट्रपति चुनाव के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है , अटकलें हैं कि प्रणव मुखर्जी ने पद पर अपनी दूसरी अवधि की संभावना टटोलने के लिए यह कदम उठाया है |

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तो मोहन भागवत के करीब माना जाता ही है, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी उन की बात को वजन देता है | ऐसे में जबकि प्रधानमंत्री या भाजपा की तरफ से आख़िरी महीने में भी राष्ट्रपति पद के लिए कोई नाम सामने नहीं आया है | और यह भी माना जा रहा है कि भाजपा के पहली बार अपने बूते पर केंद्र सरकार बनने और 13 राज्यों में सरकारें होने के बाद राष्ट्रपति का उम्मीन्द्वार तय करने में संघ की अहम् भूमिका होगी | ऐसे में प्रणव मुखर्जी का संघ प्रमुख को टटोलना रणनीतिक दृष्टी से गलत नहीं |

अगर कोई और माहौल होता तो आरएसएस विरोधी वामपंथी मोर्चा अब तक राष्ट्रपति के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर चुका होता | याद है कि 1996 में जब राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया था , तो वामपंथियों और समाजवादियों ने राष्ट्रपति के निर्णय के खिलाफ जंतर मंतर से राष्ट्रपति भवन तक कूच किया था | उस की वजह सिर्फ 196 सीटों के बावजूद न्योते का विरोध नहीं था, बल्कि उन्हें पचा नहीं था कि संघ का कोईस्वय सेवक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कैसे बैठ सकता है | 

वामपंथी इतिहासकारों ने संघ और कांग्रेस की दूरी बनाए रखने के लिए इतिहास की प्रत्येक पुस्तक में दो झूठी बातें बार बार लिखीं | पहली तो यह कि आरएसएस आज़ादी का विरोधी था, इस लिए संघ ने आजादी के आन्दोलन में हिस्सा नहीं लिया | जबकि संघ के सैंकड़ों स्वय सेवक अपनी अपनी जगह पर आज़ादी के आन्दोलन में सक्रीय थे, अगर संघ आज़ादी का विरोधी होता तो संघ के स्वय सेवक, जो कि बहुत ही अनुशाषित होते हैं, उन्हें आज़ादी के आन्दोलन में हिस्सा लेने की इजाजत क्यों देता | दूसरी बात बार बार यह लिखी गई कि संघ ने महात्मा गांधी की हत्या करवाई | बावजूद इस के कि गांधी हत्याकांड में अदालत ने संघ पर कोई टिप्पणी नहीं की | गांधी हत्याकांड के बाद नघ पर लगा प्रतिबंध भी इसी कारण हटाना पडा था | 

अपने कार्यकाल में अब्दुल कलाम संघ की तारीफ़ कर चुके हैं | उन का चुनाव संघ की सहमती से अटल बिहारी वाजपेयी के शाशन काल में हुआ था ,लेकिन वह भी ऐसी हिम्मत नहीं कर पाए थे, जैसी प्रणब मुखर्जी ने की है | राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टिकरण विरोधी खेमे को भी शक्ति प्रदान की है , जो अपने अंतिम क्षत्रपों द्वारका प्रशाद मिश्र, कमलापति त्रिपाठी, नवल किशोर शर्मा , वीएन गाडगिल और नरसिंह राव के के बाद अनाथ हो गए हैं |  

प्रणब मुखर्जी ने सरसंघ चालाक को राष्ट्रपति भवन में न्योता दे कर यह महत्वपूर्ण सन्देश दिया है कि देश में हिन्दू हितों की बात करने वालों की उपेक्षा ठीक नहीं है | एक सन्देश यह भी है कि वक्त के साथ देश में संघ की स्वीकार्यता बढ़ गई है, जिसे उन्होंने स्वीकार किया | दूसरा सन्देश यह है कि सत्ता प्रतिष्ठानों में समुदाय या संगठन विशेष से छूआछूत और विद्वेष की भावना रख कर देश के लोकतांत्रिक और सेक्युलर होने का दावा करना निरर्थक है | पिछले 70 साल से देश के बुद्धीजीवी वामपंथियों नेजो किया और कांग्रेस से करवाया वह गलत था और मौजूदा हिंदुत्व का उभारई का परिणाम है | .

हालांकि संघ के सूत्र कहते हैं कि  इस मुलाकात के बहुत ज्यादा मायने निकालने की कोशिश नहीं होनी चाहिए | ये दोनों दिग्गजो के बीच लंच पर सौहार्दपूर्ण मुलाकात भर थी | अगर ये मुलाकात दो महीने पहले हुई होती, तो इसके कई मायने निकाले जा सकते थे | सूत्र के कहने का मतलब ये कि प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति भवन से विदा होने वाले हैं,  वो राष्ट्रपति चुनाव की रेस में भी नहीं हैं, ऐसे में उनकी संघ प्रमुख के साथ भोज  मीटिंग से हालात बहुत बदलने वाले नहीं | जब कि मौजूदा सियासी माहौल में इस मुलाकात के गहरे मायने हैं | वामपंथी खेमे ने नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद देश में असहिष्युनता बढ़ने का वातावरण बनाया हुआ है | लोग कयास लगा रहे हैं कि आखिर इस लंच मीटिंग में दो दिग्गजों के बीच क्या-क्या बातें हुईं?

संघ प्रमुख मोहन भागवत की राष्ट्रपति से लंच पर मुलाक़ात भी ठीक उस दिन हुई, जिस दिन मोदी सरकार के दो सीनियर मंत्री राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू राष्ट्रपति के मुद्दे पर ही सलाह करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मिले थे | सोनिया के अलावा राजनाथ और वेंकैया नायडू ने सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से भी मुलाकात की थी | जानकार मानते हैं कि मोहन भागवत और प्रणब मुखर्जी के लंच पर मिलने से कई नई संभावनाएं बन सकती हैं | इन लोगों का मानना है कि जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं करते, तब तक किसी संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता |

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