मोदी को आतंकवाद पर पाकिस्तान मीडिया से मिला समर्थन

Publsihed: 17.Oct.2016, 18:19

अजय सेतिया/ आतंकवादियों को पनाह देने के मुद्दे पर भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन के कारण ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान को टारगेट कर अलग थलग करने में सफलता न मिली हो , लेकिन ब्रिक्स सम्मेलन का पाकिस्तान में सदेश पन्हुच गया है. ब्रिक्स सम्मेलन की समीक्षा करते हुए पाकिस्तानी मीडिया ने अब अपनी ही सरकार को आईना दिखाना शुरू कर दिया है.

पाकिस्तानी अखबार 'द नेशन' में सोमवार को छपे मानिक आफताब के लेख " international isolation looms as Pakistan continues to differentiate between 'good' and 'bad' non state actors" में कहा गया कि आतंकवाद के खिलाफ कुछ नहीं करने के कारण पाकिस्तान पर दुनिया भर में अलग-थलग पड़ने का दबाव बनता जा रहा है. इस लेख में सीधे तौर पर पाकिस्तानी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों पर तीखा हमला करते हुए कहा गया है, 'कम से कम इतनी शराफत तो होनी चाहिए कि वे मान लें कि पाकिस्तान अभी भी अच्छे और बुरे गैर-राजनैतिक सत्ता केंद्रों (आतंकियों) में अंतर नहीं कर पा रहा है.'

लेख में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान का हित इसी में है कि शरारती तत्वो को बिना भेदभाव पूरी तरह खत्म कर दे. चुनी हुई सरकार और सेना दोनो को कम से कम इतना तो मानना ही चाहिए कि पाकिस्तान को खुद ही नहीं पता कि कौन से नान स्टेट एक्टर अच्छे हैं और कौन से बुरे हैं. लेख में लेखक ने लिखा है कि जब नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान का नाम लिए बिना  'आतंक का पनाहगार' और 'आतंकवाद की जन्मभूमि' कहा तो मुझे हैरानी हुई कि उन्होने पाकिस्तान का नाम क्यो नही लिया, शायद बगल में चीन के राष्ट्रपति के बैठे होने के कारण सीधे सीधे पाकिस्तान का नाम न ले सके हो. लेकिन यह स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को अलग थलग करने के लिए कितनी तन्मयता से लगे हुए हैं. सार्क सम्मेलन को रद्द करवाने से ले कर पाकिस्तानी कलाकारो का बायकाट करवाने तक मोदी सरकार पाकिस्तान को सभी अतर्राष्ट्रीय मंचो पर कमजोर बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है.

अब हम पाकिस्तान पर निगाह डाले. पाकिस्तान दुनिया भर के कूटनीतिज्ञो , खासकर सयुंक्त राष्ट्र के कुटनीतिज्ञो को समझाने की हर सम्भव कोशिश कर रहा है कि अस्थिरता पैदा की कोशिश कर रहे आतंकवादी तत्वो के साथ कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार (अच्छे और बुरे आतंकवादियो में भेद ) नहीं किया जा रहा , लेकिन पाकिस्तान के अपने सहयोगी देश यह मानने को तैयार नहीं और पाक की निंदा कर रहे हैं. कुछ दिन पहले नवाज़ शरीफ की ही पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के एक सांसद ने पूछा था कि उन नान स्टेट एक्टरो पर कार्रवाई क्यो नहीं की जाती, जिन पर कार्रवाई की मांग भारत करता है. राणा मोहम्म्द अफज़ल ने अपने फ्रांस दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि विदेशी प्रतिनिधियो ने उन के सामने बार बार हाफिज़ सैयद का जिक्र किया . हताश राणा ने संसद में सरकार से पूछा था कि हाफिज़ सैयद कश्मीर मुद्दे के लिए फायदेमंद है या नुकसान दायक. उल्लेखनीय है कि राणा ने यहाँ तक कह दिया था कि हाफिज़ सैयद कौन सा अंडे देता है, जो हम उस का बचाव करते हैं. 

लेख मे आगे "डान" में छपी उस खबर का जिक्र किया गया है, जिस में कहा गया था कि नवाज़ शरीफ ने आर्मी और आईएसआई से कहा था कि वे आतंकवादियो के खिलाफ अभियान चलाए, खबर में यह भी था कि चुनी हुई सरकार जब भी आतंकवादी तत्वो के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत करती है, तो सेना उस के काम में दखल देती है. पहले इस खबर को अधूरा सच और उस के बाद पूरा झूठ कहा गया, लेकिन जिस तरह खबर के लेखक साइरिल अलमीदा के विदेश जाने पर रोक लगा दी गई. उस से स्पष्ट हुआ कि खबर में दम था. सवाल अलमीदा की रिपोर्टिंग का नहीं, जिस तरह उन की विदेश यात्रायो पर रोक लगाई गई , उस से सवाल सरकार की अपरिपक्वता का खडा होता है, वह  पत्रकार देश की सुरक्षा को खतरा कैसे हो गया . 

लेखक ने चेतावनी देते हुए लिखा है : "अगर पाकिस्तान को दुनिया में अलग थलग होने से बचना है तो अब जरुरत यह है कि वह अपने समर्थक देशो के सामने अपनी नीतिया स्पष्ट करे, सिर्फ स्पष्ट नही करे , अलबत्ता उन नीतियो पर कार्रवाई भी करे. पाकिस्तान को यह समझना पडेगा कि उस का राष्ट्रीय हित बे‌ईमान आतंकी तत्वो पर (बिना अच्छा बुरा देखे ) कार्रवाई करने में ही है. अमेरिका बार बार पाकिस्तान को कह रहा है कि आतंकवादियो के खिलाफ और कडी कार्रवाई की जाए. हालांकि चीन पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी है, लेकिन चीन ने भी अपनी चिंता जाहिर की है. उन की मांग सीधी सादी है कि आतंकवादियो के खिलाफ कार्रवाई की जाए अन्यथा अलग थलग होने को तैयार रहे. जब पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग हो जाएगा तो पाकिस्तान की हालत बेहद खराब होगी, और पाकिस्तान ऐसा कभी नहीं चाहेगा." 

.'द नेशन' का यह संपादकीय लेख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे पाकिस्तानी सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान का करीबी अखबार माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का मसला उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

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