जैसी कि उमींद थी नैनीताल हाइ कोर्ट की टिप्पणियाँ मर्यादाहीन हो गयी हैं। हाइ कोर्ट को राष्ट्रपति राज पर फैसला करने का हक़ है । इसलिए तो राष्ट्रपति राज को हाइ कोर्ट मे चुनोती दी गयी है। पहले भी हाइ कोर्ट राष्ट्रपति राज पर फैसले करती आई हैं। पर किसी हाइ कोर्ट को राष्ट्रपति के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी करने कि न हिम्मत हुयी, न जरूरत थी। यह कहना कि राष्ट्रपति राजा नहीं है, बहुद ही बेहूदा टिप्पणी है। जज को यह भी नहीं पता कि उसे बहुमत का नहीं सरकार की संवैधानिकता पर फैसला करना है ,क्योंकि सदन मे विनियोग बिल पास नहीं हुया था। लेकिन वह लगातार गलत टिप्पणियाँ कर रहे हैं। जैसे कल उन्होने कह दिया कि भरष्टाचार के मुद्दे पर सरकार बर्खास्त नहीं हो सकती। आज कह दिया की राष्ट्रपति राजा नहीं है। निश्चित ही सूप्रीम कोर्ट इन टिप्पणियों का स्ंग्याण लेगी और इन सब टिप्पणियों को खारिज किया जाएगा। हाइ कोर्ट का राष्ट्रपति राज रद्द करने वाला संभावित फैसला तो सूप्रीम कोर्ट मे रद्द होगा ही।.......
........और ये अभिषेक मनु सिंघवी अदालत को बता रहे हैं कि राज्यपाल की सिफीरिश के बिना राष्ट्रपति राज लग गया, जो लग नही सकता. ऐसी चंडूखाने की दलील नैनीतील हाईकोर्ट में चल सकती है, सुप्रीमकोर्ट में नहीं.क्याकि संविधान में लिखा है राज्यपाल की सिफारिश पर या अन्यथा.
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