प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ब्रिक्स सम्मेलन में दावा किया कि आतंकवाद के मुद्दे पर ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका में सर्वसम्मति है, लेकिन यह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भाषण और साझा घोषणा पत्र से भी स्पष्ट हो गया कि मोदी का मिशन टारगेट पाकिस्तान फेल हो गया, क्योकि चीन अज़हर मसूद पर प्रतिबंधो के बारे में टस से मस नहीं हुआ और साझा घोषणा पत्र में पाकिस्तान या जैश-ए-मोहम्मद या लश्कर-ए-तोयबा का जिक्र तक नहीं हुआ. जब कि अन्य अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनो का जिक्र है.
ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकवाद पर नकेल कसने के संदर्भ में आईएसआईएस का तो जिक्र है. जब कि मोदी ने अपने हर भाषण में पडौसी देश के आतंकवाद और सीमा पार से आतंकवाद का मुद्दा उठा कर बार बार पाकिस्तान की तरफ इशारा किया था. इस पर जब पूछा गया तो आर्थिक मामलो के महासचिव अमर सिन्हा ने कहा कि इस मामले में सदस्य देशों में सहमति नहीं बन सकी. उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तानी आतंकी समूहों की कार्रवाइयों का शिकार रहा है, ब्रिक्स के अन्य देश नहीं.
ब्रिक्स नेताओं के साथ बैठकों में पांच घंटे के भीतर अपने चार संबोधनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री की कोशिश आतंकवाद के मुद्दे को एजेंडे की प्राथमिकता में रखने की थी, जबकि ब्रिक्स का फोकस पारंपरिक तौर पर प्रभावी ग्लोबल आर्थिक मंच बनने का रहा है. अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की पनाहगाह करार दिया।
इस्लामिक स्टेट और जभात अल नुसरा का जिक्र
बाद में अधिकारियों ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर भारत ब्रिक्स देशों के बीच सर्वसम्मति बनवा पाने में असफल रहा, हालांकि एक बड़े पैमाने पर आतंकवाद को लेकर सर्वसम्मति है.
पांच देशों की ओर से जारी साझा घोषणा पत्र में खासतौर पर इस्लामिक स्टेट और जभात अल नुसरा का जिक्र है. अल नुसरा सीरिया में अलकायदा का संगठन है . इससे पता चलता है कि ब्रिक्स देशों में इन आतंकी संगठनों पर तो सर्वसम्मति है. पर भारत में आतंक फैलाने वाले संगठनो जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा पर नहीं.
रविवार शाम को जारी घोषणा पत्र में भारत के पक्ष में दो चीजें जरूर दिख रही है. पहला, 'आतंकी ठिकानों को नष्ट किए जाने की आवश्यकता' और दूसरा 'अपने इलाके से आतंकी गतिविधियों को रोकना', इन दोनों प्वाइंट का जिक्र घोषणा पत्र में किया गया है।
चीन ने अपनाई पाकिस्तान की लाईन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद बोलते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 'क्षेत्रीय समस्याओं के राजनैतिक समाधान' तलाशे जाने का आह्वान किया. आतंकवाद के संदर्भ में चीन की ओर से 'राजनैतिक समाधान' और 'कारणों की पड़ताल' का जिक्र किया जाना, कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की दलीलों की अनुकृति प्रतीत होता है.
चीन के रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए आर्थिक मामलों के सचिव अमर सिन्हा ने कहा कि इसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है।
ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने अपने घोषणापत्र में मनी लांड्रिंग, नशीली दवाओं की तस्करी, आपराधिक गतिविधियों जैसे आतंकवाद का समर्थन करने वाले संगठित अपराधों को रोकने की अपील की है. साथ ही आपराधिक गतिविधियों पर लगाम लगाने, आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और सोशल मीडिया के जरिये इंटरनेट का दुरुपयोग रोकने पर भी सहमति जताई गई है.
ब्रिक्स देशों ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के प्रति एक बार फिर प्रतिबद्धता जाहिर की है, ताकि मनी लांड्रिंग और आतंकियों को मिल रहे वित्तीय समर्थन को रोका जा सके. एफएटीएफ 1989 में गठित एक अंतर सरकारी संगठन है, जो मनी लांड्रिंग को रोकने के लिए जी-7 देशों की पहल पर बना था. 2001 में इसमें आतंकवाद के वित्तीय स्त्रोतों पर रोक लगाने की बात भी जोड़ दी गई थी. ब्रिक्स देशों के घोषणापत्र में पेरिस जलवायु समझौते का भी समर्थन किया गया है.
सन्युक्त राष्ट्र में व्यापक नजरिया
हां आतंकवाद पर कुछ सकारात्मक बातें भी हुई हैं. जैसे ब्रिक्स देशों ने यूएन में आतंक के खिलाफ भारत समर्थित समझौते को जल्द स्वीकार करने की अपील की, ताकि आतंकवाद से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके. ब्रिक्स सम्मेलन में रविवार को जारी घोषणापत्र में सभी देशों से आतंकवाद, हिंसक अतिवाद, कट्टरपंथ और आतंकियों के आंदोलन और भर्ती पर व्यापक नजरिया अपनाने की अपील की गई है. इसमें कहा गया है कि सभी देश-विदेशी आतंकियों की गतिविधियों पर रोक लगाएं और आतंकवाद के वित्तीय स्त्रोतों को काट दें. ब्रिक्स देशों की ओर से कहा गया कि वे भारत समेत कुछ अन्य सदस्य देशों में हुए हाल के आतंकी हमलों की निंदा करते हैं. सम्मेलन में आतंक के खिलाफ मिल कर लड़ने की इच्छा जताई गई.
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