अजय सेतिया / पाकिस्तान में इस तरह की आवाजें भी उठ रही है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का कोई फैसला बाध्यकारी नहीं है | पाकिस्तान अगर अपनी पुरानी फितरत दिखाते हुए कुलभूषण जाधव को सरबजीत की तरह मारने की कोई चाल चलेगा तो अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का उलंघन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का मामला बनता है |
हेग की इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने पाकिस्तान की जेल में कैद कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है | अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने का नरेंद्र मोदी का यह पहला बड़ा कूटनीतिक निर्णय था, जो नेहरू के जमाने से चली आ रही परम्परागत कूटनीति से हट कर था | कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र में जाने से भारत को हुए नुकसान के बाद से भारत का कूटनीतिक अमला संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय अदालत से इतना डरा हुआ था कि देश के राजनेताओं को आशंकित नुकसान गिनाने लगता था | पाकिस्तान ने कितने ही भारतीय बेगुनाहों को फांसी पर चढ़ा दिया, लेकिन हमारी पूर्ववर्ती सरकारे उन्हें बचा नहीं सकी | मोदी सरकार ने जब कुलभूषण जाधव को फांसी दिए जाने के पाकिस्तानी कोर्ट के फैसले को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने का निर्णय किया तो पाकिस्तान में खलबली मच गयी थी, क्योंकि भारत की पुरानी विदेश नीति के मुताबिक़ भारत कभी किसी मसले पर अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में नहीं जाता, उसे डर लगा रहता था कि अगर उस ने ऐसा किया, तो कहीं कश्मीर के जनमत संग्रह का मुद्दा फिर न उठ खडा हो |
पकिस्तान के कूटनीतिज्ञों और मीडिया को भी पहले दिन से पता था कि इस मसले पर वह अन्तर्राष्ट्रीय कोर्ट में कमजोर है | इस लिए उन्होंने अपनी सरकार को सलाह दी थी कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का अधिकार क्षेत्र मानने से इनकार कर दे | पाकिस्तान की तरफ से पेश हुए वकील खावर कुरैशी ने अपनी दलीलों के दौरान शुरू में ही कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी थी | खावर ने कहा था कि ये मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का नहीं है, भारत इसे राजनीति का रंगमंच बना रहा है | भारत के वकील हरीश साल्वे 90 मिनट्स तक अपनी दलीले दे कर हेग की अदालत से बाहर निकले तो एक पाकिस्तानी पत्रकार ने उन से पूछा था कि भारत ने अन्तराष्ट्रीय मंच पर भारत-पाक का मसला नहीं ले जाने की अपनी नीति में बदलाव क्यों किया ,तो साल्वे ने उस की खिल्ली उड़ाने वाली टिप्पणी में जवाब देते हुए कहा कि अगर उन्हें डेढ़ घंटे में समझ नहीं आया, तो 30 सेकिंड में भी समझ नहीं आएगा |
कुलभूषण के मामले में अन्तराष्ट्रीय कोर्ट का प्रोविजनल फैसला यही होना था, इस के अलावा और कोई फैसला हो ही नहीं सकता था | इस के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया के किसी भी नागरिक को फांसी दिए जाने का विरोध करता है | संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की बुनियाद पर टिका है | इस लिए संयुक्त राष्ट्र को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ऐसा निर्णय कैसे दे सकती थी जिस में पाकिस्तान को यह छूट दे दी जाती कि वह कुलभूषण जाधव को फांसी पर चढ़ा दे | यह मुख्यत: मानवाधिकार का मामला था | भारत ने अपनी दलीलों को दो-तीन मुख्य बिन्दुओं तक सीमित किया | पाकिस्तान ने भारत के सामने शर्त रखी थी कि अगर वह जाधव को अपना जासूस मान ले और केस में मदद करे तो काउंसलर एक्सेस दे दिया जाएगा | भारत की दलील थी कि विएना कन्वेंशन में किसी भी नागरिक के अन्य राष्ट्र में पकडे जाने पर काउंसलर एक्सेस की कोई शर्त नहीं है | जाधव को काउंसेलर एक्सेस नहीं देना साफ तौर पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन है | भारत ने कोर्ट को बताया कि पाकिस्तान कुलभूषण को बिना सबूतों के ही जासूस बता रहा है और मिलट्री कोर्ट में मौत की सज़ा सुनाने के बाद भारत से केस में सहयोग मांग रहा था | पाकिस्तान के पास कुलभूषण को जासूस ठहराने का एक ही सबूत था और वह था तथाकथित इकबालिया बयान , जो बिना अन्य प्रमाण के मान्य नहीं हो सकता |
विएना कन्वेंशन के आर्टिकल 5 के अनुसार अगर किसी देश का नागरिक किसी अन्य देश में पकड़ा जाता है , तो उस के मानवाधिकार की रक्षा होगी , लेकिन अगर वह जासूस है तो उस के मानवाधिकार खत्म हो जाते हैं | पाकिस्तान की दो दलीलें थी, एक तो यह कि कुलभूषण भारत का जासूस है और उस ने कई आतंकी वारदातें करवाई है | दूसरी दलील यह थी कि 2008 के भारत-पाक के द्विपक्षीय समझौते के अनुसार कुलभूषण के मामले में भारत को काउंसलर एक्सेस का अधिकार नहीं बनता | अब इस समझौते को पढ़ते हैं तो आश्चर्य होता है कि मनमोहन सरकार ने यह समझौता किया क्यों , समझौते पर उस समय के विदेश मंत्री के नाते प्रणव मुखर्जी के दस्तखत हैं | समझौते के अनुसार अगर पकडे गए अन्य देश के नागरिक से देश की सुरक्षा को खतरा हो तो काउंसलर एक्सेस से इनकार किया जा सकता है | मनमोहन सरकार की ओर से किया गया यह समझौता विएना कन्वेंशन का उलंघन है | पाकिस्तान ने अन्तराष्ट्रीय अदालत में इसी को आधार बनाया था | भारत को सिर्फ एक ही खतरा था कि मनमोहन सरकार के समय कम्पोजिट डायलाग के अंतर्गत 2008 में हुआ यह भारत-पाक का द्विपक्षीय समझौता कोई मुश्किल न खडी कर दे | लेकिन अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ने इसे मानने से इनकार दिया |
हमारी सब से बड़ी जीत यह हुई कि आईसीजे ने कुलभूषण को जासूस मानने से ही इनकार कर दिया , क्योंकि पाकिस्तान कुलभूषण के जासूस होने के कोई तार्किक सबूत पेश नहीं कर सका | आईसीजे ने कहा कि किसी भी देश को उसके नागरिक से मिलने से नहीं रोका जा सकता | कुलभूषण सुधीर जाधव को पाकिस्तान ने रॉ का एजेंट बताते हुए उन पर जासूसी का आरोप लगाते हुए फांसी की सजा सुनाई है | पाकिस्तान का दावा है कि उसने रॉ की जासूसी के आरोप में कुलभूषण (46) को बलूचिस्तान से पकड़ा था | उस की दलील थी कि जाधव अभी भी भारतीय नौसेना के अधिकारी हैं और उनको 2022 में रिटायर होना है , जबकि भारत सरकार ने कई बार पाकिस्तान को बताया था कि वह पूर्व नौसेना अधिकारी है और 14 साल सेवा में गुजारने के बाद समय से पहले ही 2003 में रिटायरमेंट ले लिया था |
अन्तराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले में पाकिस्तान को कहा गया है कि वह इस अदालत के अंतिम निर्णय तक कुलभूषण को फांसी नहीं देगा | नरेंद्र मोदी सरकार के लिए यह एक बड़ी राहत देने वाला फैसला है | इस फैसले से जहां भारत में खुशी की लहर है और सब लोग नरेंद्र मोदी के अन्तराष्ट्रीय कोर्ट में जाने के फैसले की तारीफ़ कर रहे हैं , वही पाकिस्तान में वहां की सरकार के अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने की ही आलोचना शुरू हो गयी है | पाकिस्तान ने बाकायदा बयान जारी कर के अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को चुनैती दे दी है | पाकिस्तान के अटार्नी जनरल ने कहा कि हम ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का सम्मान करते हुए अपना पक्ष रखा था | हम इस लिए कोर्ट में गए थे क्योंकि हम भारत के साथ सभी मसले शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहते हैं , वरना हम अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के अधिकार को चुनौती दे सकते थे | मोदी सरकार के इस फैसले से पाकिस्तान पहली बार अंदरुनी मुश्किल में फंसा है | क्योंकि सजा-ए-मौत का फैसला सेना का है इस लिए सेना और सरकार में टकराव की संभावनाएं बढ़ गयी हैं |
पाकिस्तान में इस तरह की आवाजें भी उठ रही है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का कोई फैसला बाध्यकारी नहीं है | पाकिस्तान अगर अपनी पुरानी फितरत दिखाते हुए कुलभूषण जाधव को सरबजीत की तरह मारने की कोई चाल चलेगा तो पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग होने का आधार तैयार हो जाएगा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट के फैसले का उलंघन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का मामला बनता है | इस लिए अब पाकिस्तान में सरकार की बड़े पैमाने पर आलोचना शुरू हो गयी है कि अन्तर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने का फैसला किया ही क्यों गया | पाकिस्तान की फेडरल कोर्ट के रिटायर्ड जज शैक उस्मानी ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है , पाकिस्तान को हेग की अदालत में पेश ही नहीं होना चाहिए था | पीपीपी की नेता शेरी रहमान ने कहा है कि पाकिस्तान के लिहाज से यह कमजोर केस है |
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