भारत को इसलिए करनी चाहिए टीटीपी की मदद 

Publsihed: 13.Sep.2021, 09:06

अजय सेतिया  / जब से अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हुआ है , पाकिस्तान की अपनीतालिबान “तहरीक-ए-तालिबान “ यानि (टीटीपी) की खूब चर्चा हो रही है | टीटीपी कोई बहुत पुराना संगठन नहीं है , इस लिए ज्यादातर भारतीय उस केबारे में नहीं जानते | जैसे बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आज़ाद करवाने केलिए बलूची पिछले 72  साल से पाकिस्तानी सेना से लड मर रहे हैं | वैसे हीनार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस यानि एन.डब्ल्यू.ऍफ़.पी के पश्तूनी भी अलगपश्तूनिस्तान के लिए लड रहे हैं | अफगान तालिबान और अल-कायदा सेताल्लुक रखने वाले खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र और महसूद जनजाति के एक प्रमुख उग्रवादी नेता बैतुल्ला महसूद ने 2007 में पश्तूनिस्तान के लिए लड़ रहेछोटे छोटे संगठनों को एकजुट कर के टीटीपी का गठन किया था | इस समयटीटीपी पाकिस्तान के इतिहास में सबसे ताकतवर संगठनों में से एक है , जिस ने पाकिस्तान की नाक में दम किया हुआ है | यह वह समय था , जबअमेरिका अफगानिस्तान में आ चुका था और वह पाकिस्तान से मिल करतालिबान की सरकार गिरा कर अल कायदा के नेताओं को ढूंढ रहा था | 2009 में टीटीपी के संस्थापक बैतुल्ला महसूद अमेरिकी ड्रोन हमले में मारेगए | उन की जगह पर हकीमुल्लाह महसूद को टीटीपी का आमिर यानी नेताचुना गया था | 2011 में जब एबटाबाद की एक हवेली में ओसामा बिन लादेनमारा गया था , तो उस हवेली से मिले कागजातों से पता चला था कि अलकायदा टीटीपी को एडवाईज कर रहा था | अमेरिका ने 2013 में टीटीपी केआमिर हकीमुल्लाह महसूद को ड्रोन हमले में मार दिया | 

इस के बाद पहली बार एक गैर महसूद मुल्ला फज-लुल्लाह को टीटीपीचेयरमेन यानि आमिर घोषित किया गया | नतीजतन टीटीपी में महसूद , गैर-महसूद, गैर-आदिवासी कैडरों में शुरू गुटबाजी हो गई | भाग गए | इसगुटबाजी का फायदा उठा कर पाकिस्तानी सेना ने अमेरिकी मदद से जून 2014 में टीटीपी का सफाया करने के लिए 'जर्ब-ए-अज्ब' नाम से आपरेशनशुरू किया । नतीजतन टीटीपी कमजोर हो गया और कई बड़े और मझौलेनेता अफगानिस्तान भाग गए | इसी आपरेशन में 2018 में अपने पूर्ववर्तियों की तरह मुल्ला फज-लुल्लाह भी ड्रोन हमले में मारा गया । तब तक टीटीपीकरीब करीब खत्म हो गई थी | गैर-महसूद का प्रयोग विफल रहने के बादचार साल के बाद 2018 में नूर वली महसूद को टीटीपी का नया आमिरघोषित किया गया | नूर वली महसूद एक पढ़े लिखे इंसान हैं और पश्तूनों मेंउन की गिनती बुद्धिजीवियों में होती है | उन की कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुईहैं | टीटीपी के संस्थापक बैतुल्लाह महसूद और उसके बाद के अन्य महसूद नेताओं ने हमेशा अल कायदा के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे थे , जिसकारण अल कायदा टीटीपी को आर्थिक मदद करता रहा था | टीटीपी की वित्तीय संसाधनों संबंधी कई रिपोर्टों में अल कायदा के माध्यम से आने वाले धन की पुष्टि होती हैं । हक्कानी नेटवर्क टीटीपी का एक अन्य वित्तीय स्रोत है | वसूली भी टीटीपी का वित्तीय स्रोत था जिस कारण टीटीपी की साख औरछवि खत्म हो चुकी थी , अल कायदा ने नूर वली महसूद को सलाह दी किस्थानीय मुसलमानों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए उन से सुरक्षा के नामपर अवैध वसूली बंद की जाए | नूर वली ने इस पर अमल करते हुए पिछलेतीन साल से आम लोगों या प्राईवेट संस्थाओं से किसी तरह की कोई वसूलीनहीं करने और उन की हत्याएं भी नहीं करने की रणनीति अपनाई है | अबटीटीपी सिर्फ पाकिस्तानी सरकार की परियोजनाओं के ठेकेदारों से ही लागतका 5 प्रतिशत वसूल करती है 

अल कायदा की सलाह से नूर वली महसूद ने दो-तीन और बड़े काम किए , पहला काम यह किया कि टीटीपी का मुख्यालय पूर्वी अफगानिस्तान से उठाकर दक्षिण पूर्व में ले गए जो पाकिस्तान की वजीरिस्तान सीमा के करीब है । इस से टीटीपी फिर से पुनर्गठित और मजबूत होना शुरू हुआ , पाकिस्तान मेंसक्रिय अनेक आतंकी संगठनों ने टीटीपी के साथ हाथ मिला लिया है |अमजद फारूकी और लश्कर-ए-झांगवी गुट ने टीटीपी में विलय की घोषणा की । इस साल अगस्त के शुरू में उस्ताद असलम के संगठन सहित कई औरसंगठन भी टीटीपी में शामिल हो गए हैं | इस से पाकिस्तान के सीमान्त क्षेत्रोंमें टीटीपी की गतिविधियाँ तेज हो गई | 

दूसरा काम उन्होंने यह किया कि पाकिस्तान सरकार को पलटने के लक्ष्य कीबजाए पश्तून आबादी वाले क्षेत्र को पाकिस्तान से मुक्त करवाने का लक्ष्यनिर्धारित किया यानि अगल अस्तित्व | तीसरा काम उन्होंने यह किया कि टीटीपी का अफगानिस्तान के तालिबान से संबंध बढाया , जिस के नतीजेतालिबान सरकार गठन से पहले ही मिलने शुरू हो गए थे | तालिबान नेअफगानिस्तान की विभिन्न जेलों , ख़ास कर बगराम जेल और पुल-ए-चरखी जेल में कैद टीटीपी के 2300 आतंकियों को रिहा कर दिया | रिहा होने वालों में टीटीपी के पूर्व डिप्टी कमांडर मौलवी फकीर मोहम्मद , बैतुल्लाह महसूद का भरोसेमंद कमांडर ज़ाली, बाजौर और वज़ीरिस्तान के कई प्रमुख कमांडर शामिल हैं | अन्य प्रमुख सदस्यों में कमांडर वकास महसूद, हमजा महसूद, जरकावी महसूद, जैतुल्ला महसूद, कमांडर कारी, हमीदुल्ला महसूद, हमीद महसूद और कमांडर मजहर महसूद शामिल हैं । ये सभी पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों की “मोस्ट वांटेड” सूची में शामिल हैं | हालांकि पाकिस्तान नेतालिबान के आमिर हैबतुल्ला अखंडजादा को टीटीपी के उन नेताओं कीसूची भी दी थी , जिन से पाकिस्तान को खतरा है , वह चाहता था कीतालिबान उन्हें रिहा नहीं करे | लेकिन तालिबान ने पाकिस्तान की सलाह कोदरकिनार कर सभी को रिहा कर दिया | तालिबान ने टीटीपी के नेताओं कोरिहा ही नहीं किया बल्कि साफ़ साफ़ कहा है कि  पाकिस्तान टीटीपी नेताओंके साथ बातचीत कर के अंदरुनी समस्या का समाधान करे | पाकिस्तान केघोषित आतंकवादियों को तालिबान की ओर से रिहा किए जाने परपाकिस्तान भयभीत है | उसे डर है कि टीटीपी के आतंकी सीमा पर इंतजार कर रहे शरणार्थियों के साथ घुसपैठ कर पाकिस्तान में आतंकवादीगतिविधिया तेज करेंगे | अलबत्ता जब से तालिबान ने काबुल के रास्ते अफगान प्रांतों में अपना आक्रमण शुरू किया है , टीटीपी ने उत्तरी वज़ीरिस्तान और अन्य क्षेत्रों में अपनी गतिविधिया तेज कर भी दी | उस नेपाकिस्तानी सेना पर बड़े पैमाने पर हमले किए हैं , जिसमें कई  सैनिक मारेगए हैं ।

तालिबान सरकार चीन, पाक के दबाव में 

अब बड़ा सवाल यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार बनने के बादभी क्या तालिबान और हक्कानी नेटवर्क टीटीपी को वैसा ही समर्थन औरसहयोग जारी रखेगा | यह सवाल इस लिए बनता है क्योंकि पाकिस्तान उसका सब से बड़ा सहयोगी देश है | लेकिन टीटीपी को लगता है कि तालिबान सरकार और हक्कानी नेटवर्क उन्हें पहले की तरह ही सहयोग करते रहेंगे | क्योंकि तालिबान और टीटीपी की विचारधारा एक समान ही है । टीटीपी भीशरिया आधारित शासन चाहती हैं , और तालिबान भी | तालिबान शासनटीटीपी को और अधिक प्रचार करने में सक्षम बनाएगा, जिससे अधिक लड़ाकों की भर्ती होगी और सभी क्षेत्रों से अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त होगी। लेकिन टीटीपी की यह खामख्याली है क्योंकि टीटीपी पाकिस्तान और चीनदोनों के लिए सिरदर्द बना हुआ है और दोनों ही देश अंतर्राष्ट्रीय गुटबाजी और कूटनीति के कारण तालिबान के ज्यादा करीब आ रहे हैं | जहां तक चीन कासवाल है , तो टीटीपी न सिर्फ चीन के उईगर मुसलमानों का समर्थन करती है, बल्कि पाकिस्तान में बन रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से जुडीयोजनाओं पर भी ब्लूचिस्तानियों से मिल कर आतंकी वारदातें कर रही है | टीटीपी और बलूच विद्रोही संगठनों ने अभी 14 जुलाई को ही मिल कर नौ चीनी श्रमिकों पर आत्मघाती हमले को अंजाम दिया था | यह हमला सुदूर कोहिस्तान क्षेत्र में दासू जलविद्युत परियोजना के लिए इंजीनियरिंग कर्मचारियों को ले जा रहे दो-बसों के काफिले पर हुआ था | हालांकिपाकिस्तान के विदेश मंत्री ने इस वारदात का ठीकरा भारत के सिर फोड़ा है ,पाक नेशनल एसेम्बली में भी एक महिला सांसद ने हमले के पीछे भारतीयगुप्तचर एजेंसी रा का हाथ बताया है , लेकिन थी यह टीटीपी और बलूचविद्रोहियों की कार्रवाई | 

ऐसे समय में जब किसी भी देश के नेता ने अफगानिस्तान के साथ राजनयिक संबंधों की इच्छा नहीं जताई है , अलबत्ता खूंखार आतंकी संगठनहक्कानी नेटवर्क के मुखिया सराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाए जाने केबाद सारी दुनिया आशंकित और आक्रोशित है , लेकिन चीन ने तालिबानसरकार गठन से पहले ही बातचीत शुरू कर दी थी | अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू ने 25 अगस्त को दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख अब्दुल सलाम हनफी से मुलाक़ात की | इस मुलाक़ात में चीन नेचीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को काबुल तक बढाने कीपेशकश की है | इस के अलावा चीन ने अपनी रेल एंड रोड योजना के तहतपेशावर से काबुल तक सडक बनाने का प्रस्ताव भी दिया | दुनिया को मेसेजदेने के लिए चीन ने खुद इस मुलाक़ात के फोटो जारी किए |

चीन–पाक-तालिबान का निशाना कश्मीर 

चीन और पाकिस्तान ने मिलीजुली रणनीति के तहत तालिबान से सम्पर्कबढाया है , इसी रणनीति के तहत आई.एस.आई चीफ हमीद काबुल गए औरपंजशीर पर कब्जा करने के लिए तालिबान को सैन्य मदद दी , जिस केखिलाफ अफगानिस्तान में लोग सडकों पर भी उतरे | इस लिए यह साफ़ हैकि अगर अफगानिस्तान चीन-पाक के आर्थिक गलियारे में खुद ही भागेदारबन जाता है तो तालिबान टीटीपी पर चीन और पाकिस्तान के खिलाफ कामकरने पर बंदिश लगाएगा | इसीलिए तालिबान ने टीटीपी के आतंकियों को रिहा करते समय पाकिस्तान को सलाह दी है कि वह टीटीपी के साथबातचीत कर के अंदरुनी समस्या का समाधान करे | आशंका यह है कि जिस तरह चीन ने रणनीति के तहत आईएसआई के चीफ को अफगानिस्तान भिजवा कर तालिबान नेताओं में सुलह करवा कर सरकार के गठन का रास्ता साफ़ करवाया है | उसी तरह चीन और पाकिस्तान की रणनीति तालिबान से दबाव डलवा टीटीपी को कश्मीर के मोर्चे पर सक्रिय करना है , जो लद्दाख के केंद्र शासित क्षेत्र बनने के बाद चीन और पाकिस्तान का सिरदर्द बना हुआ है | पाकिस्तान में स्थानीय समाचार एजेंसियों का तो यहाँ तक मानना है कि तालिबान की मध्यस्थता से टीटीपी और इमरान खान सरकार के बीचबातचीत शुरू हो चुकी है | हालांकि एक गोपनीय वार्ता पिछले साल 2020 मेंविफल हो चुकी है , तब टीटीपी ने युद्धविराम के लिए पश्तून आबादी वालेखैबर पख्तूनख्वा में पूर्ण स्वायत्तता और शरिया लागू करने की छूट देने कीमांग रखी थी , यानि एक देश में दो तरह की राज्य व्यवस्था और दो तरह केक़ानून | अब भी टीटीपी स्पष्ट रूप से खैबर पख्तूनख्वा में आदिवासी क्षेत्रों पर नियंत्रण और शरिया कानून लागू करने की मांग अड़ी है | अब बड़ा सवाल यह कि टीटीपी तालिबान , हक्कानी नेटवर्क, चीन और पाकिस्तान के दबाव में आती है या नहीं | अगर वह इस्लाम के नाम पर दबाव में आती है तो कश्मीर में समस्या बढ़ सकती है क्योंकि जम्मू कश्मीर खैबर पख्तूनख्वा से ज्यादा दूर नहीं | 

इस्लाम के नाम पर बना राष्ट्र विफल रहा 

लेकिन दूसरी टीटीपी का यह भी मानना है कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था , लेकिन पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों और सेना ने लिम कर इस्लाम केशासन को फेल कर दिया | इसलिए बंगालियों , सिंधियों , बलूचियों औरपश्तूनियों को अपनी अपनी आज़ादी की लड़ाई लडनी पड़ी है | इसी लिए टीटीपी अब सिर्फ पख्तूनख्वा की बात नहीं करती | नूर वली ने अपने हाल हीके वीडियो में "आजाद बलूचिस्तान", "आजाद पश्तूनिस्तान" और "सिंधु देश" की मांग रखते हुए कहा है कि पाकिस्तानी सेना इन “राष्ट्रों” के नागरिकों पर वैसे ही अत्याचार कर रही है, जैसे बंगालियों पर किए थे औरबांग्लादेश बना | उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश की तरह टीटीपी इन राष्ट्रोंकी जमीनों को सेना से मुक्त कराएगी | आज़ादी के बाद से पाकिस्तान भारतके लिए सब से बड़ी समस्या बना हुआ है | तो क्या भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से यह सही नहीं होगा कि वह पाकिस्तान के चार टुकड़े करने की मंशा रखने वाले दृष्टिकोण का समर्थन करे | जिस तरह 90 के दशक मेंअफगानिस्तान पर सोवियत संघ के कब्जे के दौरान अमेरिका की सीआईए नेअफगानी मुजाहिदों को पाकिस्तान में हथियारों की ट्रेनिग दी , हथियार औरआर्थिक मदद दी , जिस तरह पाकिस्तान 90 के दशक से आतंकवादियों कोट्रेनिंग दे कर कश्मीर भेज रहा है , उसी तरह आज भारत को ब्लूचिस्तान, पश्तूनिस्तान और सिंध देश की आज़ादी के लिए लड रहे इन इलाकों केनागरिकों को मदद देनी चाहिए , और टीटीपी इन सब की आज़ादी के लिएही तो लड रही है | 

( लेखक इंडिया गेट टीवी यूट्यूब और इंडियागेटन्यूज डाट काम के सम्पादक हैं ) 

 

 

 

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