आईआईटी रुडकी का सालाना फेस्ट सम्पन्न

Publsihed: 24.Oct.2016, 14:07

आईआईटी रुडकी के सालाना थोम्सो फेस्टिवल के उदघाटन दिवस 21 अक्तूबर को दो अलग अलग सत्रो में क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और अय्याज़ मेंनन मुख्य वक्ता थे और तीसरे व समापन दिवस पर दो अलग अलग सत्रो में बाल अधिकारो के विशेषज्ञ अजय सेतिया और कुमाऊ रेजिमेंट के रिटायर्ड मेजर गौरव आर्य मुख्य वक्ता थे.  

आईआईटी रुडकी के खचा खच भरे सिनेट हाल में युवाओ को दीपावली पर पटाखे नहीं चलाने का आह्वाहन करते हुए बाल अधिकार संरक्षण आयोग उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष अजय सेतिया ने कहा कि  अगले संडे दिपावली है, शायद ज्यादातर छात्र परिवार के साथ दिपावली का त्योहार मनाने अपने घर जाएंगे, पूजा होगी , दीप जलेंगे और पटाखे भी फोडे जाएंगे. उन के भाषण के चुनिंदा अंश :
पटाखे न चलाए
हम लोग जो बाल अधिकारो के लिए लडते हैं, हमारी एक मुहिम है कि पटाके नही चलाने चाहिए. इस की एक वजह है, पटाखो के निर्माण का भारत में सब से बडा केंद्र तमिलनाडू का शिवाकाशी है, यह बहुत ही गरीब इलाका है. गलियो मोहल्लो में पटाखो की फक्ट्रिया हैं. पूरा साल इन फेक्ट्रियो में पटाखे बनते हैं. हर साल आगजनी की घटनाए होती थी, अनेक जाने जाती थी, जिन में ज्यादातर बच्चे होते थे. मोहल्ला का मोहल्ला शमशान बन जाता था, अब फैक्ट्रिया शहर से बाहर भेज दी गई हैं. लेकिन आगजनी की घटनाए अब भी हर साल होती हैं. पिछले हफ्ते भी आगजनी हुई है. फैक्ट्रिया शहर से बाहर जाने के बावजूद जब जब फैक्ट्री में आग लगती है, बच्चो के मरने , झुलसने और जख्मी होने की खबरे ही आती हैं, ये खबरे आप भी हर साल पढते होंगे, क्या आप के दिमाग में कभी आया कि पटाखो की फैकट्री में आग लगने से बच्चे क्यो मरते हैं......यह इस लिए क्योंकि गरीब परिवारो के बच्चो को पटाखे बनाने के काम में लगाया जाता है. फैक्ट्रियो के ट्र्क हर रोज सुबह शहर की गलियो में जाते हैं और गरीब माताए अपने बच्चो को तैयार कर के उसी तरह ट्र्क में बिठाती हैं , जैसे कि आप सब की मा बचपन में स्कूल भेजने के लिए रिक्शा,थ्री व्हिलर या कार, बस में बिठाती थी.  आप की मा खुश होती थी कि बच्चा पढाई करने जा रहा है, लेकिन शिवा काशी की हर मा दिन भर दुआ करती है कि उस का बच्चा शाम को सही सलामत घर आ जाए. जब कभी आग लगने की खबर फैलती है, तो शिवाकाशी की सारी माताए रोती हैं. पता नही आज किस किस बच्चे की लाश घर आएगी.
1 करोड 26 लाख 66 हजार 377 बाल श्रमिक 
मित्रो यह मुद्दा चाईल्ड लेबर से जुडा है. चाईल्ड लेबर हमारे माथे पर सब से बडा कलंक है. ताज़ा सरकारी आंकडो के अनुसार भारत में 1 करोड 26 लाख 66 हजार 377 बाल श्रमिक हैं.हालांकि गैर सरकारी संगठनो का दावा है कि कम से कम 6 करोड बाल श्रमिक हैं.  भारत में पहला बाल मजदूरी निरोधक कानून 1986 में बना था, मैं हर मंच से कहता रहा हूँ और आज भी मेरा मत वही है कि 1986 का यह बाल मजदूरी विरोधी कानून बाल श्रम रोकता नहीं, बल्कि बाल श्रम को बढावा देता है. इस कानून में कहा गया कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे जौखिम भरा काम नहीं कर सकते.........पहली बात तो यही गलत थी कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे गैर जौखिम भरा काम कर सकते हैं.... ....जौखिम भरे काम क्या क्या हैं, उस की एक सूची बनाई गई, उस सूची में हर जौखिम भरा काम जुडवाने के लिए गैर सरकारी संगठनो को संघर्ष करना पडा. खैर इस साल के शुरु तक 18 व्यवसाय और 65 प्रक्रियाए इस सूची में शामिल हो चुकी थी......पटाखे बनाना और बेचना इस सूची में शामिल है, इस के बावजूद हर साल जब पटाखो की फैक्ट्री में आग लगती है तो बच्चे झुलसते हैं, बच्चे मरते है....इस लिए हमारा आप सब से आग्रह है कि जितना हो सके पटाखो से परहेज करे ताकि फेक्ट्रियो के मालिको पर दबाव पडे कि वे बाल मजदूरो का इस्तेमाल बंद करे. वे बाल मजदूरो का इस्तेमाल इस लिए करते हैं क्योकि बाल मजदूर को आदमी से आधी मजदूरी देनी पडती है. 
भ्रष्ट लेबर डिपार्टमेंट 
हमारे भ्रष्ट लेबर डिपार्टमेंट ने इस लुले लंगडे कानून को भी नाकाम बना दिया है ........जौखिम भरे काम पर लगे बच्चे भी अपने माता पिता और नियोक्ता के डर से अपनी उम्र 15 साल ही बताते थे, यहाँ तक कि फैक्ट्री मालिको से मंथली लेने वाले अफसर ही उन बच्चो को जा कर सिखाते थे कि कोई पूछे तो अपनी उम्र 15 साल बताना. 
बाल श्रम पर नया कानून
मित्रो भारत ने 1992 में बाल अधिकारो पर बने सन्युक्त राष्ट्र के प्रोटोकोल पर दस्तख्त किए, जिस में कहा गया कि था भारत 18 वर्ष की आयु तक की उम्र को बच्चा मानेंगे और सारे कानून उसी के अनुरूप बनाएंगे. हम लोग कई बार श्रम मंत्री से मिले और उन्हे प्रोटोकाल के साथ साथ 2000 में बने ज्यूवेनाईल जस्टिस कानून की याद दिलाई , हमें कोरे आश्वासन ही दिए जाते रहे.  2015 तक यानि 23 साल तक हमारी सरकार ने बाल श्रम सम्बंधी कानून बदलने पर विचार तक नहीं किया. और अब इस साल के शुरु में संसद ने जो नया बाल श्रम निरोधक कानून पास किया है वह भी अंतर्राष्ट्रीय  प्रतिबधता का उलंघन करता है, नए कानून में 14 वर्ष तक आयु के बच्चो से किसी तरह का काम करवाने पर पूरी तरह रोक लगाई गई है. हालांकि इस में भी एक लाकूना छोड दिया गया है कि बच्चे अपनी पढाई के बाद पारिवारिक काम धंधे में हाथ बंटा सकते हैं..... चलिए मान लिया कि इस में कोई बुराई नहीं , बच्चा पारिवारिक हुनर ही सिखेगा, लेकिन बच्चो के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन इस प्रावधान को शामिल किए जाने के खिलाफ थे. जब कानून के विभिन्न पहलुओ पर विचार किया जा रहा था तो कैलाश सत्यार्थी ने एक मंथन बैठक बुलाई थी, जिस में देश भर से लोग बुलाए गए, श्रम मंत्री बंडारू दतात्रे को भी बुलाया गया. इस बैठक में मैंए मंत्री को सुझाव दिया था कि अगर पारिवारिक काम-काज की अनुमति बहुत ही जरूरी हो तो उस में मा-बाप और भाई ही जोडा जाए, परिवार का मतलब ताया , चाचा, मामा, मौसा,फूफा न हो. मंत्री ने सहमति जताई थी, लेकिन कानून में वही पारिवारिक शब्द ही है. 
जुवेनाईल जस्टिस एक्ट
जैसा कि मैंने बताया कि भारत ने 1989 में बने सयुंक्त राष्ट्र के बच्चो सम्बंधी प्रोटोकाल पर 1992 में दस्तखत किए थे और उस पर अमल करते हुए पहला कानून 2000 में बना, जिसे जुवेनाईल जस्टिस एक्ट या हिंदी में किशोर न्याय अधिनियम कहते हैं. अभी 2015 में नया संशोधित किशोर न्याय अधिनियम आ गया है.जिस में  देश के प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समितिया, बाल न्याय बोर्ड , बाल गृह आदि का प्रावधान है. नए कानून में माता पिता विहिन बच्चो को गौद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाया गया है. जिला बाल कल्याण समितिया अपने आप में अनूठा प्रयोग है, जो काफी राज्यो में बहुत ही सफलता पूर्वक चल रहा है. हालांकि उत्तराखंड मेरे तीन साल तक बाल आयोग का अध्यक्ष रहने के बावजूद उस सूची में शामिल नहीं है. बाल कल्याण समितिया अपने आप में अनूठा प्रयोग इस लिए है क्योंकि अपवंचित और प्रताडित बच्चे को न्याय देने के अधिकार इस समिति को दिए गए हैं. सामाजिक कार्यकर्तायो पर आधारित इस समिति को फर्स्ट क्लास मेजिस्ट्रेट के समकक्ष अधिकार दे कर समाज को जिम्मेदारी और न्याय का हिस्सा बनाया गया है. इसी कानून में यह प्रावधान है कि हर पुलिस थाने में एक बाल कल्याण अदिकारी होगा, जिसे बच्चो से जुडे मामलो से निपटने की ट्रेनिंग होगी और वह बच्चे से जुडे हर मामले को या तो जिला बाल कल्याण समिति के सामने ले कर जाएगा या जुवेनाईल जस्टिस बोर्ड के सामने. ...अगर ये थानो के बाल कल्याण अधिकारी और बाल कल्याण समितिया ईमानदारी से काम करे तो बच्चो की हर तरह की समस्या और जरूरत समाज स्तर पर ही हल हो सकती है. मै जब उत्तराखंड राज्य बाल अदिकार संरक्षण आयोग का अध्यक्ष बना तो मैंने जिलो का दौरा किया, प्रत्येक जिले की बैठक में डीएम, एसपी समेत जिले के सारे विभागो के अमले को बुलाया गया. मैंने जिला बाल कल्याण समिति के सदस्यो को भी बुलाया. तो पता चला कि किसी भी डी एम को या किसी भी एसपी को यह जानकारी ही नहीं थी कि उन के जिले में एक बाल कल्याण समिति है जिसे फर्स्ट क्लास मेजिस्ट्रेट की पावर है.
तब मैंने तीन काम किए.
पहला: मैंने सरकारी अधिकारियो और आम जन के लिए  एक हैंडबुक लिखी  " बच्चो के    कानूनी हक"
दूसरा: जिला स्तर पर सभी सरकारी कर्मचारियो के लिए जुवेनाईल जस्टिस एक्ट और बच्चो से सम्बंधित अन्य सभी कानूनो की जानकारी देने के लिए जिला स्तर पर दो दो दिन की वर्कशाप की गई.
तीसरा: मैंने भारत सरकार को लिखा कि सन 2000 का जुवेनाईल जस्टिस एक्ट का जमीन पर क्रियांवन क्यो फेल हुआ. मेरी नजर में इस की वजह थी आईएएस और आईपीएस अधिकारियो को कानून और इस की पृष्ठभूमि की जानकारी न होना. मेरे इस पत्र का व्यापक असर हुआ, भारत सरकार ने चाईल्ड राईट्स को आईएएस और आईपीएस अधिकारियो की ट्रेनिंग में शामिल करना तय किया. 21 सदस्यो की एक टीम बनाई गई , जिस में मुझे भी शामिल किया गया , और 2015 से ब्यूरोक्रेसी में शामिल होने वाले सभी अधिकारी चाईल्ड राईट्स की ट्रेनिंग ले कर आ रहे हैं.
अभी और जरूरत
मित्रो सयुंक्त राष्ट्र के प्रोटोकाल के अनुरूप ही शिक्षा का अधिकार कानून बना है, और इसी के अंतर्गत मिड डे मील की स्कीम लागू की गई है. हालांकि सयुंक्त राष्ट्र के सामने अगर हम ने 18 साल की आयु तक बच्चा माना है तो हमें आठवी नही, बाहरवी तक शिक्षा मुफ्त करनी होगी और बाल श्रम पर भी 18 साल की उम्र तक पूरी तरह रोक लगानी होगी. देश इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए आगे बढना है. हमें बाल भिक्षावृति रोकने और स्ट्रीट चिल्ड्रन के पुनर्वास के लिए कानून और योजनाए बनानी हैं. इन सभी बच्चो को स्कूल भेजना है. ये काम अभी भी बाकी है. 
लेकिन इस सब के बावजूद अपवंचित बच्चो का कल्याण कानूनो और सरकारी योजनाओ से सम्भव नहीं है, इस में समाज की भागेदारी जरूरी है.... आप जैसे युवा इस जिम्मेदारी को औढ रहे हैं, तो लक्ष्य प्राप्ति निश्चित है, देर भले ही हो.
आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाए , और दीपावली मुबारक. 

 

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