मोदी की देहरादून रैली से कांग्रेस सकते में

Publsihed: 28.Dec.2016, 13:51

अजय सेतिया / नरेंद्र मोदी की देहरादून रैली ने कांग्रेस को सकते में डाल दिया है. भीड देख कर नरेंद्र मोदी खुद सकते में थे. इस लिए अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा कि उन्हे देहरादून से एक शिकायत है. उन्होने दो बार भीड से पूछा कि अगर वे बुरा नहीं माने तो वह अपनी शिकायत बताए. जनता के साथ जुडने और अपंतव दिखाने और बनाने का यह उन का अनूठा तरीका है. भीड की हामी भरवा कर उन्होने कहा कि जब वह 2014 में इसी मैदान में आए थे, तो इतनी भीड क्यो नही थी.

भीड की तारीफ करने का उन का यह अनौखा तरीका था. लेकिन भीड की तारीफ कर के वह प्रदेश कांग्रेस का बोझ बढा गए , अब कांग्रेस को राहुल की रैली में उस से ज्यादा नहीं तो उतनी भीड जुटानी होगी, तब वह दावा कर सकेगी कि वह मुकाबले की टक्कर देने की स्थिति में है. अब तक खुद को आगे समझ रही कांग्रेस को मोदी की रैली की भीड देख कर दिन में तारे नजर आ गए. मोदी तो इस रैली में कह गए हैं कि जब इतनी भीड नहीं थी तो प्र्देश की चारो लोकसभा सीटे भाजपा जीत गई थी, अब तो उन्हे बम्पर जीत की उम्मींद है.

हरीश रावत अभी भी यह मान कर चल रहे हैं कि जैसे लोकसभा चुनावो के बाद वह उत्तराखंड विधानसभा के तीनो उप चुनाव जीत गए थे, उसी तरह विधान सभा चुनावो में भी कांग्रेस का पलडा उन्हीन की ओर झुका रहेगा. तीनो उपचुनाव जीत कर उन्होने कांग्रेस आलाकमान का दिल जीत लिया और खुद को कांग्रेस का एक मात्र सर्वोच्च नेता घोषित कर दिया, नतीजा यह निकला की मार्च 2016 में कांग्रेस विधायक दल में एक तरह से विभाजन हो गया, जब हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा की रहुनुमाई में 9 विधायको ने उन के नेतृत्व को खुली चुनौती दे दी. तीन उप चुनाव जीत कर हरीश रावत कांग्रेस आला कमान को साबित कर चुके थे कि वह नरेंद्र मोदी की आंधी को रोकने में सक्षम हैं ,इस लिए आलाकमान ने उन का साथ दिया और गढवाल कुमाऊ का समीकरण समझे बिना हरीश रावत के सभी विरोधियो को भाजपा के पाले में जाने दिया. 

कांग्रेस से निकल कर आए 9 विधायको में से सात गढवाल से हैं , नरेंद्र मोदी की पहली गढवाल रैली से साबित हो गया है कि वहाँ पहले से मजबूत भाजपा और मजबूत हो गई है. हरीश रावत खुद कुमाऊ से हैं , जिस कारण कुमाऊ में उन के प्रति अभी भी सहानुभूति बनी हुई है ,क्योंकि काफी वरिष्ठ होने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान बरसो तक उन के साथ अन्याय करता रहा था. कांग्रेस आलाकमान ने क्योंकि लम्बे समय तक अनदेखी करने के बाद उन्हेन मुख्यमंत्री बनाया था, इस लिए राज्य की जनता ने उन का साथ दिया और उनके तीन साल के कार्यकाल में हुए सभी चार उप चुनावो में कांग्रेस को जीत दिलाई. 

कुमाऊ में आज भी हरीश रावत के काफी हद तक प्रति सहानुभूति और समर्थन बरकरार है. लेकिन गढवाल इस के बिलकुल विपरित भाजपा के पक्ष में खडा होता दिखाई दे रहा है. मेरा पहले भी यही आकलन था और नरेंद्र मोदी की गढवाल में हुई बम्पर रैली ने मेरी धारणा को पुष्ट किया है. सम्भावना यही है कि चुनावो की घोषणा 2 जनवरी की शाम को होगी. तब तक राहुल गांधी की देहरादून में जवाबी रैली की होने के आसार न के बराबर हैं. भाजपा ने गढवाल में नरेंद्र मोदी की पहली करवा कर बढत बना ली है, चुनावो की घोषणा के बाद मोदी की दो रैलिया कुमाऊ में और दो गढवाल में और हो सकती हैं. कांग्रेस को अब कुमाऊ से ही ज्यादा उम्मींद है , इस लिए वह कुमाऊ में अपना घर सम्भालने पर ज्यादा जोर देगी. 

गढवाल में भाजपा की बढत पहले से कायम हो चुकी है, जिस का पहला प्रमाण मोदी की रैली है, इस से पहले कभी भी इतनी बडी रैली देहरादून में नहीं हुई थी. गढवाल में भाजपा की बढत का मतलब उत्तराखंड में भाजपा की बढत है, क्योकि सीटो का समीकरण यह है कि सरकार उसी की बनती है, जो गढवाल में जीतता है, यह कोई अंधविश्वास जैसी बात नहीं है. अलबत्ता उत्तराखंड की 70 सीटो में से 41 सीटे गढवाल में हैं , जब कि कुमाऊ में सिर्फ 29 सीटे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गढवाल से 19 और कुमाऊ से 13 सीटे मिली थी. भाजपा को गढवाल में 16 और कुमाऊ में 15 सीटे मिली थी. इस लिए कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री भी गढवाल का विजय बहुगुणा बने, भले ही उन्होने बाद में भाजपा के किरण मंडल का इस्तीफा करवा कर कुमाऊ की सितारगंज सीट से चुनाव जीता. 

अब स्थिति एक दम उल्टी है , कुमाऊ में कांग्रेस 13 से बढ कर 15-16 भी हो जाए तो भी बात नहीं बनेगी क्योंकि गढवाल में 6 कांग्रेसी विधायको को गवाने के बाद कांग्रेस कम से कम 10 सीटे नीचे आ गई है. भाजपा अपनी रणनीति के मुताबिक गढवाल पर जोर दे रही है , मोदी की टीम का निशाना गढवाल से 35 सीटेन हासिल करने का है. इस लिए मोदी की पहली रैली गढवाल में करवाई गई और उस में अपनी सारी ताकत झोंक कर अपनी बढत बना ली है. कांग्रेस गढवाल को ले कर पूरी तरह कंफ्यूज है इस लिए हरीश रावत खुद धारचुला के साथ साथ कैदारनाथ सीट से चुनाव लडने का मन बना रहे हैं, जहा की विधायक शैला रानी रावत भाजपा में चली गई है. 

मोदी की देहरादून रैली का इस लिए भी महत्व है, क्योंकि यह नोटबंदी का चुनाव पर होने वाले असर का पैमाना भी है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सारी चुनावी रणनीति नोटबंदी के विरोध पर सिमट गई है, मोदी ने नोटबंदी के बाद अपनी लोकप्रियता की नुमाईश कर दी है, अब राहुल गांधी को नोटबंदी के खिलाफ जन आक्रोश को जाहिर करना है. जब कि नोटबंदी का विरोध कांग्रेस की शुरुआती लाईन नहीं थी , शुरु में कांग्रेस ने नोटबंदी का समर्थन किया था. राहुल गांधी ने यह मान कर नोटबंदी का विरोध किया कि जनता परेशान है ,और उस का लाभ उठाया जा सकता है. देहरादून की रैली यह साबित करती है कि परेशानियो के बावजूद जनता नोटबंदी के खिलाफ अभी भी नहीं हुई है. इस लिए राहुल गांधी उत्तराखंड या कही और भी वोट दिलाने वाली शख्शियत के तौर पर उभरते नहीं दिखते. मोदी की  रैली में अनुमान से अधिक भीड़ जमा होने से कांग्रेस सकते में आ गई है. कांग्रेस के लिए चुनौती बनी पीएम मोदी की महारैली ने कांग्रेस को हिला कर रख दिया है . बीजेपी की रैली में उमड़े जनसैलाब ने कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. 

राहुल बाबा की मुसीबतें

 

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