बीते दिनों न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता को लेकर चीन ने अपनी टांग अड़ाई थी। लेकिन अब चीन के तेवर बदले नजर आ रहे हैं। चीन ने अपनी ओर से कुछ नरमी के संकेत देते हुए इस मसले पर दूसरे दौर की बातचीत पर सहमति जताई है।
दोनों देश इस मामले में सहमति बनाने के लिए अक्टूबर में दूसरे राउंड की बातचीत शुरू करेंगे। वांग कुन और भारतके अमनदीप गिल के बीच हुई बातचीत का सबसे अहम नतीजा यह रहा कि चीन ने इस मसले पर सहमति बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई। चीनी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वह ‘दो चरणीय’ प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर राजी है। चीन ने कहा कि वह नॉन-एनपीटी देशों को एनएसजी की मेंबरशिप दिए जाने को लेकर आम सहमति बनाए जाने के विषय पर रचनात्मक चर्चा के लिए दूसरे चरण की बातचीत करने पर राजी है।
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन ने अब तक किसी नॉन-एनपीटी देश को एनएसजी में शामिल करने को लेकर अपनी ओर से राय नहीं बनाई है। लेकिन हम इस बारे में चर्चा करने के लिए तैयार हैं। लेकिन इस बारे में दो चरण की बातचीत जारी है। इस बीच एनएसजी ने खुद समूह में शामिल देशों से राय मांगी है, जो नॉन-एनपीटी देशों की सदस्यता को लेकर स्पष्ट प्रक्रिया की मांग कर रहे हैं।
एनएसजी का मतलब क्या है
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप मई 1974 में देश के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद बनाया गया था। इस ग्रुप में 48 देश हैं। इनका मकसद न्यूक्लियर वेपन्स और उनके प्रोडक्शन में इस्तेमाल हो सकने वाली टेक्नीक, इक्विपमेंट और मटेरियल के एक्सपोर्ट को रोकना या कम करना है।
1994 में जारी एनएसजी गाइडलाइन्स के मुताबिक, कोई भी सिर्फ तभी ऐसे इक्विपमेंट के ट्रांसफर की परमिशन दे सकता है, जब उसे भरोसा हो कि इससे एटमी वेपन्स को बढ़ावा नहीं मिलेगा। एनएसजी के फैसलों के लिए सभी मेंबर्स का समर्थन जरूरी है। हर साल एक मीटिंग होती है।
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