अजय सेतिया / भारतीय जनता पार्टी के हर कदम के खिलाफ एक लेख लिखने वाली बीबीसी साईट ने अयोध्या का भी उलटा इतिहास गढ़ दिया है | जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या जिला घोषित किया बीबीसी ने अयोध्या का उलटा इतिहास लिख दिया है | जिले का नाम बदलने को गंगा-जमुनी तहजीब पर हमला करार देते हुए बीबीसी ने बताया है कि फैजाबाद क्योंकि नवाबो का बसाया हुआ शहर है , क्योंकि यह नवाबो की पहली राजधानी थी , इस लिए जिले का नाम वही रहना चाहिए था |
स्वाभाविक है कि इतिहास के मामले में लेखक अयोध्या का मुकाबला फैजाबाद से नहीं कर सकते थे , इस लिए अयोध्या के इतिहास का जिक्र लेख के आख़िरी पैराग्राफ में दिया गया है | फैजाबाद को आज़ादी के बाद के वामपंथी विचारधारा के लेखकों , बुद्धिजीवियों , राजनीति चिन्तको एवं विचारको से जोड़ कर भगवान् राम की नगरी से ज्यादा महत्व वाला बताने की हास्यस्पद , बचकानी और बेहूदा कोशिश की गई है | बीबीसी की नजर में फैजाबाद इस लिए अयोध्या से बड़ा है क्योंकि वहआचार्य नरेंद्र देव और डॉक्टर राममनोहर लोहिया की भूमि रही है | क्योंकि साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर कुंवर नारायण, साहित्यकार और आलोचक डॉक्टर विजय बहादुर सिंह, हिन्दी उर्दू के विद्वान अनवर जलालपुरी, कविता के हस्ताक्षर शलभ श्रीराम सिंह, संगीत और कला के क्षेत्र में ठुमरी गायिका बेग़म अख़्तर, पखावज का अवधी घराना स्थापित करने वाले बाबा पागलदास, उर्दू के शायर मीर अनीस, मीर गुलाम हसन, ख़्वाजा हैदर अली आतिश, पंडित ब्रजनारायण चकबस्त, मजाज़ लखनवी, मेराज़ फ़ैज़ाबादी आदि कितने ही नाम लिए जाएं जो फ़ैज़ाबाद की ही धरोहर हैं | क्योंकि खेल के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय मुक्केबाज़ अखिल कुमार भी इसी फैजाबाद में पैदा हुए | बीबीसी की नजर से फैजाबाद इसलिए अयोध्या से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि 1857 की क्रांति के दूत मंगल पाण्डेय फ़ैज़ाबाद के थे | क्योंकि बाबा रामचन्द्र का किसान आन्दोलन यहीं शुरू हुआ था | क्योंकि मौलवी अहमदउल्ला शाह उर्फ़ डंका शाह ने अवध के विलय के बाद भी फै़ज़ाबाद को आज़ाद रखा था | क्योंकि देश की आज़ादी के लिए काकोरी केस के अशफ़ाक़ उल्ला खां की शहादत फै़ज़ाबाद जेल में हुई और जहां फांसी के दिन प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को एक बड़ा जलसा होता है |
बीबीसी के बचकाना लेखक का मजेदार हिस्सा तो वह है जिस में उस ने वामपंथी लाईन अपनाते हुए अयोध्या का कम से कम बौद्धकाल से ज्ञात इतिहास तो बताया पर पर फैजाबाद का महत्व इस लिए ज्यादा बता दिया क्योंकि बगल में बसाए नगर का नाम नवाब मंसूर अली 'सफ़दरजंग' (शासनकाल 1739-1754) ने इसका नाम 'फै़ज़ाबाद' रख दिया था | बीबीसी के इस लेख में मुस्लिम परस्ती की हद तो तब हो गईजब खुद बोद्ध्काल का जिक्र करने के बाद लिखा कि बोद्धकाल के साहित्य में अयोध्या का नाम प्रायः बहुत कम मिलता है | शुक्र है यह नहीं लिखा कि अयोध्या नाम का जिक्र ही नहीं है | लेखक ने यह तो माना कि यह प्रमुख व्यापारिक केन्द्र और विशाल नगर के रूप में विकसित था, लेकिन मगध के विकसित होने के बाद काशी और कोसल आपस में विलीन हो गये | बिम्बिसार को मारकर अजातशत्रु ने मगध पर शासन प्रारम्भ किया, वह कहते है कि मुस्लिम शाशकों ने अयोध्या को उपेक्षित नहीं किया अलबत्ता मगध के विकसित होने के बाद से ही अयोध्या उपेक्षित रही | हालांकि इतिहास से कितनी छेड़छाड़ कर सकता था लेखक इसलिए यह भी माना कि मौर्यों के उदय के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के समय अयोध्या का महत्व बढ़ा. चीनी यात्राी ह्नेनसांग और फ़ाह्यान ने अपने यात्रा विवरणों में अयोध्या में बौद्ध विहारों की मौजूदगी का उल्लेख किया है. मौर्यों के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अपने ही शासक वृहद्रथ की हत्या कर स्वयं को शासक घोषित किया | बौद्ध भिक्षुओं का विनाश करने वाले पुष्यमित्र शुंग ने साकेतनगर को अयोध्या में बदला और स्वयं को चक्रवर्ती राजा घोषित कर अश्वमेध यज्ञ किया, जिसका शिलालेख पाली भाषा में अयोध्या के रानोपाली मंदिर में है |
बीबीसी की ओर से फै़ज़ाबाद के इतिहास को बढ़ा चढ़ा कर मुस्लिम हमलावरों का बखान किया गया है, जिसे जस का तस दे रहा हूँ , किसी को इस इतिहास पर कोई आपत्ति हो, तो वह सूचित करे, ताकि उसे भी इस में जोड़ा जा सके | बीबीसी के अनुसार दिल्ली के शहंशाह के
ह दरबार से अवध का सूबेदार नियुक्त होने के बाद नवाब सआदत अली खां (शासनकाल 1722-1739) ने अयोध्या में ही अपना आशियाना बनाया, जहां से वे शासन प्रबन्ध करते थे |
यह आशियाना सरयू नदी के तट पर और टीलेनुमा ऊंचाई पर था जिसे 'किला मुबारक' के नाम से जाना जाता था. उन्होंने अयोध्या के बाहरी इलाक़े में नदी के किनारे एक कच्ची मिट्टी की दीवार की किलेनुमा घेरेबन्दी का अहाता अपने सैनिकों के लिए बनवाया जहां वे स्वयं भी रहने लगे.
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यह अहाता और आवासीय परिसर इतना बड़ा था कि इसे 'बंगला' की संज्ञा दी गई और इसके आस-पास बसी आबादी ने इस इलाके को 'बंगला' नाम से जाना.
अवध के दूसरे नवाब मंसूर अली 'सफ़दरजंग' (शासनकाल 1739-1754) ने इसका नाम 'फै़ज़ाबाद' रख दिया. इसके पहले इसका नाम बंगला था. अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला (शासनकाल 1754-1775) के समय में यह मुकम्मल राजधानी बना. 1764 में बक्सर के युद्ध में हारने के बाद वे वापस फ़ैज़ाबाद लौटे और यहीं स्थायी तौर पर रहने का तय किया. तभी फै़ज़ाबाद में इमारतों का निर्माण और इसे राजधानी के तौर पर विकसित करने का सिलसिला आरम्भ हुआ.
अवध का अपना अलग ही स्थापत्य इन इमारतों में दिखा. जहां दो मछलियां आमने-सामने के जोड़ो में मेहराबों पर दिखती हैं. अवध का शाही निशान ही, आगे चलकर उत्तर प्रदेश का शासकीय चिन्ह भी बना. दो मछलियों से युक्त जिसमें बीच में धनुष का चिन्ह बना हुआ है. यह अवध की पहचान है. यही अवध की पहली राजधानी बनी. अवध के नवाबों ने एक नया नगर, अयोध्या से लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर बसाया.
सफदरजंग की मृत्यु के बाद अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला ने गद्दी सम्भालने के बाद कई युद्ध लड़े जिसमें विजयश्री हासिल की, लेकिन 1764 में शाह आलम और मीर क़ासिम के हाथों बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद फ़ैज़ाबाद को ही अपनी राजधानी बना लिया जिसे वो अपने जीवन के अन्तिम समय तक सजाते संवारते रहे. उनका महल फ़ोर्ट कलकत्ता के खंडहर गवाही देते हैं कि यहां कभी बुलन्द इमारत थी. इनके शासनकाल में फै़ज़ाबाद बाहर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना. साथ ही हाट-बाज़ार, कला, संस्कृति, शिक्षा का भी केन्द्र बना.
गुलाबबाड़ी और बहू बेगम का मक़बरा दो आलीशान इमारतें इतिहास में दर्ज हैं, जो फै़ज़ाबाद की पहचान बन गईं. शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद उनके पुत्र आसिफुद्दौला (शासनकाल 1775-1797 )अवध के नवाब नियुक्त किए गए और अपनी मां बहू बेगम से नाइत्तफ़ाकियों के चलते उन्होंने अपनी राजधानी लखनऊ स्थानान्तरित कर ली और फै़ज़ाबाद के सारे मुहल्ले लखनऊ में बसा दिए जबकि बहू बेगम अन्तिम समय तक फै़ज़ाबाद में ही रहीं. अवध से अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो गई.
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