सब कुछ लुटा कर होश में आए , तो क्या आए

Publsihed: 06.Aug.2019, 13:36

इंडिया गेट से अजय सेतिया

कांग्रेसी इसी बात से संतुष्ट थे कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दुबारा सत्ता में आ गई और दस साल राज किया | लेकिन वे यह भूल रहे थे कि सोनिया गांधी की अल्पसंख्यकवाद की राजनीति ने देश के हिन्दुओं को कितना नफरत से भर दिया था | राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी राजनीति में आने को तैयार नहीं हुई थी | नरसिंह राव ने नेहरु , इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की गलतियों को सुधार कर कांग्रेस को भारतीय जनमानस की अपेक्षाओं की पार्टी बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया था | बाबरी ढाँचे को गिराए जाते समय उन की चुप्पी इतिहास की गलतियों को सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव था | इसी से रुष्ट हो कर कांग्रेस के अल्पसंख्यकवादी नेताओं ने सोनिया गांधी के कान भरे | अपन इस के गवाह हैं कि सीताराम केसरी ने किस तरह सोनिया गांधी के इशारे पर नरसिंह राव को अध्यक्ष पद से हटने को मजबूर किया था | फिर सोनिया गांधी के चाटुकारों ने किस तरह सीताराम केसरी को कमरे में बंद कर के पद से हटाया था |

यह नहीं भूलना चाहिए कि राजीव गांधी 1989 में अपने नेतृत्व में कांग्रेस को 197 सीटें ही दिला पाए थे , अगर चुनावों के दौरान उन की हत्या न होती , तो कांग्रेस को 1991 में भी इतनी ही या उस से भी कम सीटें मिलतीं | हत्या के कारण कांग्रेस को 35 सीटें ज्यादा मिल गई थीं | सोनिया गांधी के इशारे पर नरसिंह राव को अल्पसंख्यक विरोधी घोषित कर के कांग्रेसियों ने कांग्रेस के भविष्य को हमेशा के लिए बर्बाद किया | अगर (सोनिया) गांधी परिवार के वफादार नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह आदि कांग्रेस के साथ होते तो नरसिंह राव की रहनुमाई में भी कांग्रेस 1991 से ज्यादा सीटें ले जाते, क्योंकि उन्होंने हिन्दुओं का मन जीता था | अगर ऐसा होता तो नरसिंह राव 1996-97 में ही भाजपा की मदद से 370 खत्म क्र देते | सोनिया गांधी की ओर से कांग्रेस को दोफाड़ किए जाने के बावजूद 1996 में नरसिंह राव की रहनुमाई में कांग्रेस 140 सीटें जीती थी और सोनिया गांधी की रहनुमाई में एकजुट कांग्रेस 2004 में 145 सीटें जीतीं | यानी सोनिया गांधी के नेतृत्व को देश ने कभी स्वीकार नहीं किया था |

कांग्रेस में विचारधारा का संकट इंदिरा गांधी के समय ही शुरू हो गया था | जब इंदिरा सरकार की नीतिया कम्यूनिस्टों और मुसलमानों के तुष्टिकरण को ध्यान में रख कर बनने लगी थी | हालांकि उस समय नरसिंह राव, कमलापति त्रिपाठी , नवल किशोर शर्मा और वी.एन.गाडगिल जैसे कुछ नेताओं ने पार्टी में संतुलन बनाए रखने के प्रयास जारी रखे थे | लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में 2004 से 2014 तक देश में बड़े पैमाने पर ईसाईयों और मुस्लिम कट्टरपंथियों ने खुल कर खेला | यहाँ तक कि आतंकवाद की वारदातों में भी मुसलमानों को बरी करवाने और हिन्दुओं को झूठा फ़साने तक के घिनौने खेल खेले गए | सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के रसातल में जाने के कुछ बड़े कारण गिनाए जा सकते हैं | अपन उन की चर्चा करें , उस से पहले यह भी बता दें कि 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 का समर्थन करने पर सोनिया गांधी के विरोध में खड़े होने वाले जनार्दन द्विवेदी , भुवनेश्वर कालिता, मिलिंद देवड़ा , अभिषेक मनु सिंघवी , दीपेश हुड्डा जैसे लोग अगर तभी जाग जाते जब कांग्रेस हिन्दुओं के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी तो कांग्रेस को आज का दिन न देखना पड़ता | सब कुछ लुटा कर होश में आए , तो क्या आए |

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