पंजाब में आतंकवाद का खतरा

Publsihed: 10.Aug.2016, 12:49

पंजाब प्रांत राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ के सह संघचालक ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा पर हुए आतंकी हमले ने पंजाब ही नहीं, पंजाब के बाहर भी चिंता बढा दी है. विधान सभा चुनावो से ठीक पहले आतंकी वारदात आने वाले गम्भीर खतरे की चेतावनी है. अस्सी के दशक में पंजाब में आतंकवाद की शुरुआत भी जलंधर मे एक हिंदु नेता की हत्या से हुई थी. सितम्बर 1981 में लाला जगत नारायण की गोली मार कर की गई थी, उनकी हत्या से पूर्व सिख आतंकवादी सिर्फ निरंकारियो को ही निशाना  बना रहे थे, हिंदु नेता उन के निशाने पर नहीं थे. अब विधान सभा चुनाव से ठीक पहले बिना किसी उकसावे के हिंदु संगठन के बडे नेता पर किया गया हमला निश्चित ही खतरे की घंटी है. 

पिछ्ले एक साल से पंजाब प्रदेश भाजपा में कश्मकश चल रही थी कि विधानसभा चुनाव अकालियो से मिल कर लडे जाए या अकालियो के साथ मिल कर. हरियाणा में अकेले चुनाव लडने से भाजपा को हुए फायदे से भाजपा और संघ का एक वर्ग बेहद उत्साहित था, लोकसभा चुनाव में अमृतसर से टिकट कटने से खफा चल रहे नवजोत सिन्ह  सिद्धु भाजपा के उन नेताओ की रहनुमाई कर रहे थे जो अकालियो से अलग हो कर अकेले चुनाव लडने की वकालत कर रहे थे. अमृतसर में अरुण जेतली को न्योता प्रकाश सिन्ह बादल ने दिया था, जिस कारण सिद्धु का टिकट कटा था. सिद्धु का लक्ष्य अपनी अमृतसर टिकट कटने के लिए जिम्मेदार बादल से बदला लेना मात्र था , जबकि संघ के गगनेजा जैसे कई नेता पंजाब में भाजपा-अकाली गठबंधन को राजनीतिक से ज्यादा सामाजिक एकता की जरूरत के रूप में देखते थे. इस लिए संघ में अकेले चुनाव लड्ने के मुद्दे पर सहमति नहीं बन पाई थी. 

यहा पंजाबी सूबे के आंदोलन को याद करना जरूरी है. तब के सरसंघ चालक गुरु गोलवलकर ने पंजाब के जनसंघी नेताओ को सलाह दी थी कि पंजाब के हिंदुओ को अपनी मातृभाषा वही लिखवानी चाहिए जो वे घर में बोलते हैं.  पंजाब के अबोहर जैसे कुछ इलाको को छोड कर हिंदु अपने घरो में ठेठ पंजाबी बोलते हैं. लेकिन पंजाब के हिंदुओ ने आर्य समाज के प्रभाव में आ कर अपनी भाषा हिंदी लिखवाई थी  , नतीजतन पंजाब में जनसंघ और बाद में भाजपा अल्पसंख्यक हिंदुओ की पार्टी बन कर रह गई. लेकिन  जनसंघ ने 1967 में अपनी गलती को सुधारा और हिंदु-सिख एकता के लिए अकाली दल से स्थाई दोस्ती कर ली.  

सरसंघ चालक की सोच ठीक थी, इस लिए पंजाब मे भाजपा कोई भी निर्णय बिना राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ से सलाह मशविरा किए नहीं ले सकती. जानकारो का कहना है कि संघ के ज्यादातर सहयोगी संगठन भले ही अकेले चुनाव लडने की वकालत कर रहे थे. हालांकि जो लोग अकेले चुनाव की वकालत कर रहे थे , उन का भी यह कहना था कि भाजपा कार्यकर्तायो को एक बार अकेले ज्यादा सीटो पर चुनाव लड कर देख लेना चाहिये, ( अकाली दल से गठबंधन में भाजपा को 117 में से सिर्फ 23 सीटे मिलती हैं. ) लेकिन चुनाव के बाद अकाली-भाजपा एकता की खिडकी खुली छोडनी चाहिए क्योंकि पंजाब में हिंदु सिख एकता के लिए अकाली-भाजपा का इक्कठा रहना जरूरी है. इन वर्गो की आशंका थी कि भाजपा- अकालियो की एकता टूटी तो पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद पनप सकता है. 

अकेले या गठनंधन से चुनाव लडा जाए , इस का अंतिम निर्णय लेने के लिए दिल्ली में हुई पंजाब के नेताओ की बैठक में अमित शाह और अरूण जेतली भी शामिल हुये थे , इस बैठक में तब तक बन रही आम सहमति को बदल कर पंजाब के हित में भाजपा कार्यकर्तायो की इच्छा को दरकिनार कर अकालियो के साथ मिल कर ही चुनाव लडने का निर्णय लिया गया था. पंजाब का अमन खराब करने वाली ताकतो को भाजपा के इस निर्णय से काफी गहरा धक्का लगा था. इस लिये पंजाब के आरएसएस  नेता पर हुए आतंकी हमले को हिंदु-सिख एकता को तोडने की साजिश के रूप में देखा जाना चाहिए और पुलिस को भी अपनी जांच करते समय इस कोण को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए. ‌‌ - अजय सेतिया 

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