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Micro Analysis of Indian Political Crisis

यूपीए सियासत की देन है इंडियन मुजाहिद्दीन

Publsihed: 18.Sep.2008, 20:41

कांग्रेस को आतंकवाद पर अपनी गलत नीतियों का अहसास हो चुका है, लेकिन चुनावों से ठीक पहले नीतियों में यू टर्न से भाजपा को फायदा पहुंचने के डर से ठिठकी हुई है। देश की सियासत वोट बैंक का शिकार हो गई है।

यूपीए सरकार और खासकर उसकी सबसे बड़ी घटक कांग्रेस संकट से जूझ रही है। कांग्रेस ने अंदाज भी नहीं लगाया था कि उसकी तुष्टिकरण की नीति उसके गले की हड्डी बन जाएगी। पिछले चार साल तक वामपंथी दल यूपीए सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और आतंकवादी तुष्टिकरण नीति के भागीदार थे।

भाषा बनी वोट बैंक की सियासत

Publsihed: 12.Sep.2008, 05:58

भाषा का आंदोलन तो पंजाब और तमिलनाडु में भी चला था, लेकिन उन आंदोलनों का लक्ष्य संस्कृति और परंपराओं की हिफाजत थी। जबकि राज ठाकरे का मराठी प्रेम अपने भाई उध्दव ठाकरे पर भारी पड़ने के लिए वोट बैंक की सियासत का हिस्सा है।

बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने इस हफ्ते अमिताभ बच्चन परिवार को फिर निशाना बनाया। इस बार निशाने पर अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन थी। जया बच्चन मुलत: हिंदी भाषी या उत्तर भारतीय नहीं हैं। भले ही जया बच्चन के पिता तरुण भादुड़ी भोपाल में रहते थे, लेकिन वह थे मुलत: बंगाली। भोपाल में वह स्टेट्समैन के पत्रकार थे, बंगाली होने के बावजूद मध्यप्रदेश में इतना रच-बस गए कि अर्जुन सिंह ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में उन्हें पर्यटन विभाग में जिम्मेदार पद सौंप दिया था।

बढ़ रहा है सत्ता का असंवैधानिक दुरुपयोग

Publsihed: 05.Sep.2008, 06:27

केंद्रीय मंत्री बेलगाम हो गए हैं, प्रधानमंत्री उनकी लगाम कसने में लाचार हैं। नतीजा यह निकला है कि मंत्री अपनी ही सरकार के फैसले की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं और चुनी हुई राज्य सरकारों के खिलाफ अपने मंत्रालय से समानांतर सरकार चलाने लगे हैं।

बिहार में बाढ़ के पानी ने कहर ढाया तो वहां के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को राजनीतिक बिसात की याद आ गई। अपने यहां हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखने की गंभीर बीमारी पैदा हो गई है।

गुजरात मॉडल ही बेड़ा पार करेगा भाजपा का

Publsihed: 28.Aug.2008, 20:50

कांग्रेस जीती तो सुभाष यादव को ही पेश करना पड़ सकता है पचौरी का नाम, रैलियों में प्रस्ताव पास करके कांग्रेसी मुख्यमंत्री नहीं बनते। मुख्यमंत्री तो विधायक दल की बैठक में सोनिया गांधी को अधिकृत करने वाले प्रस्ताव से ही तय होगा।

मध्य प्रदेश में चुनावी शतरंज के लिए बिसात बिछ गई है। कांग्रेस अभी तय नहीं कर पा रही कि वह किसे चुनावी बारात का दूल्हा बनाए। हालांकि कांग्रेस में दूल्हों की कमी नहीं, अलबत्ता दूल्हे ज्यादा बाराती कम हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की राजनीति चुपके से काम करने की रहती है।

और अब अलगाववादियों का तुष्टिकरण

Publsihed: 22.Aug.2008, 05:34

अमरनाथ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले बालताल गांव के पास जंगलात विभाग की जमीन यात्रा के दौरान दो महीनों के लिए श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई थी। अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस की ओर से इसका कड़ा विरोध किए जाने के कारण गुलाम नबी सरकार ने अपने इस फैसले को वापस लिया। जम्मू कश्मीर के लोग इसे तत्कालीन कांग्रेस सरकार की आतंकवादियों के तुष्टिकरण का कदम मानते हैं। यही वजह है कि दो महीने बीत जाने के बावजूद जम्मू के लोगों का आंदोलन मध्यम नहीं पड़ा है।

जम्मू-कश्मीर में सभी कर रहे हैं- सांप्रदायिक राजनीति

Publsihed: 08.Aug.2008, 10:21

गुलामनबी आजाद भले ही खुले तौर पर न मानें, लेकिन वास्तविकता यही है कि जम्मू कश्मीर के चुनाव नजदीक होने के कारण पीडीपी को मिलने वाले मुस्लिम वोटों के फायदे को रोकने के लिए ही उन्होंने श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई जमीन वापस ली थी। इससे साबित होता है कि जम्मू कश्मीर की मौजूदा सांप्रदायिक आग जम्मू के हिंदुओं की वजह से नहीं है, अलबत्ता घाटी के मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए पीडीपी की ओर से अपनाई गई सांप्रदायिकता है। यही वजह है कि कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है, क्योंकि जम्मू कश्मीर की सियासत उसके लिए दो धारी तलवार बन गई है।

वोट-नोट की सियासत में मीडिया के भी जले हाथ

Publsihed: 01.Aug.2008, 06:18

पहले खुद स्टिंग आपरेशन में शामिल होकर पीछे हटने से सीएनएन-आईबीएन चैनल की विश्वसनीयता को भाजपा ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। चैनल का बायकाट मीडिया को सियासत से दूर रखने पर सोचने के लिए बाध्य करे, तो मीडिया का ही भला होगा।

कांग्रेस ने लोकसभा में वोट की सियासत भले ही जीत ली हो, नोट की सियासत में अभी बुरी तरह उलझी हुई है। जिस तरह नोटों का बंडल दराज में रखते बंगारू लक्ष्मण भाजपा का पीछा नहीं छोड़ रहे, वैसे ही लोकसभा के टेबल पर रखी गई नोटों की गड्डियां कभी भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ेंगी।

तीसरे मोर्चे की हवा का निकलना

Publsihed: 24.Jul.2008, 20:42

मायावती विश्वास मत के बाद खुद के प्रधानमंत्री बनने या कम से कम तीसरे मोर्चे की नेता के तौर पर स्थापित होने का ख्वाब देख रही थीं, लेकिन विश्वास मत में पिटने के बाद तीसरे मोर्चे का गठन ही खटाई में पड़ गया है।

हर बार की तरह इस बार भी तीसरे मोर्चे में पार्टियां और नेता ज्यादा हैं, जमीनी आधार और कार्यकर्ता कम हैं। मनमोहन सरकार विश्वास मत में हार जाती तो उसका श्रेय इसी तीसरे मोर्चे को मिलता जो लोकसभा में मात खाने के बाद फिलहाल बनते-बनते रुक गया है। तीसरे मोर्चे के नेताओं ने मनमोहन सरकार गिराने के लिए भारतीय जनता पार्टी की मदद लेने में कोई गुरेज नहीं किया, लेकिन अब सरकार नहीं गिरी तो उस पर गुर्राने में भी कोई वक्त नहीं लगाया।

मौसम-ए- खरीद फरोख्त में स्पीकर की अहम भूमिका

Publsihed: 18.Jul.2008, 05:57

अटल बिहारी वाजपेयी के विश्वास मत के समय मुख्यमंत्री गिरधर गोमांग जब वोट दे रहे थे, तो स्पीकर बालयोगी ने फैसला उनकी अंतरात्मा पर छोड़ दिया था। सरकार एक मत से गिर गई थी। अब हत्या के आरोप में उम्रकैद भुगत रहे चार सांसदों के वोट पर भी स्पीकर को फैसला करना होगा।

देश के हर हिस्से के सांसदों ने अपने भाव बढ़ा लिए हैं। जैसे आमों-संतरों का मौसम आता है, वैसे ही सांसदों की खरीद-फरोख्त का मौसम चल रहा है। मनमोहन सिंह को अपनी सरकार बचाने के लिए दर्जनभर सांसद चाहिए। अमर सिंह ने उन्हें इस काम में अपनी सेवाएं मुहैया करवा दी हैं और अनिल अंबानी को उनकी सेवा में हाजिर कर दिया है।

राजनीतिक अपराधों की अमरवाणी

Publsihed: 11.Jul.2008, 05:42

समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह अचानक सुर्खियों में आ गए हैं। अब यह संयोग ही है या योजनाबध्द ढंग से रची गई सियासत कि कांग्रेस को जब अमर सिंह की जरूरत महसूस होती है, तो वह अमेरिका में होते हैं। अमेरिका से वह ऐसा ज्ञान लेकर आते हैं कि विदेशमंत्री प्रणव मुखर्जी पहली ही मुलाकात में समाजवादी पार्टी की वामपंथी दलों से पुरानी दोस्ती तोड़ देते हैं। पिछले तीन सालों से वामपंथी दलों की कांग्रेस से तकरार चल रही थी। इन तीन सालों में वामपंथी दलों ने समाजवादी पार्टी को तीसरे मोर्चे के लिए तैयार किया और उन्हें भरोसा दिया