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Micro Analysis of Indian Political Crisis

मुंबई का असर मतदान केन्द्रों में भी पड़ेगा

Publsihed: 28.Nov.2008, 20:39

मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुई मुंबई की आतंकवादी वारदात ने कांग्रेसियों के माथे पर  पसीने की बूंदें झलका दी। कांग्रेस पर आतंकवाद के प्रति नरम होने का आरोप लगा रही भाजपा को इन तीनों राज्यों में फायदा होगा।

छह विधानसभाओं के चुनावों का ऐलान होने से पहले भाजपा दिल्ली को लेकर सबसे ज्यादा आश्वस्त थी। भाजपा यह मानकर चल रही थी कि दिल्ली तो उसे मिलेगा ही, कम से कम छत्तीसगढ़ और  मिल जाए, तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी की नाक बच जाएगी। मध्यप्रदेश को भाजपा हारा हुआ मानकर चल रही थी, राजस्थान को लेकर भी आश्वस्त नहीं थी। लेकिन जैसे-जैसे चुनावी शतरंज बिछनी शुरू हुई, भाजपा आलाकमान यह देखकर दंग रह गया कि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान उम्मीद से ज्यादा नतीजा दिखा रहे थे, जबकि दिल्ली में विजय कुमार मल्होत्रा की उम्मीदवारी का ऐलान होते ही हालात ने नया मोड़ ले लिया।

एटीएस जांच को लोकसभा चुनाव तक खींचने की सियासत

Publsihed: 20.Nov.2008, 20:44

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने पलटी खाकर कांग्रेस का समर्थन शुरू कर दिया है, लेकिन कांग्रेस की निगाह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान पर ज्यादा टिकी है, जहां 65 में से 56 लोकसभा सीटें भाजपा के पास हैं।

जिन छह राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से दो जम्मू कश्मीर और मिजोरम अत्यंत संवेदनशील राज्य हैं, लेकिन देशवासियों की निगाह इन दोनों राज्यों पर कम, बाकी चार राज्यों पर ज्यादा टिकी है। मिजोरम में सत्ता परिवर्तन के कोई आसार नहीं दिखते, लेकिन जम्मू कश्मीर में नए गठबंधन पैदा होने के आसार दिखाई देने लगे हैं। हालांकि नेशनल कांफ्रेंस का पलड़ा भारी है, लेकिन ऐसा नहीं दिखता कि वह अपने बूते पर सरकार बना पाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में भी नेशनल कांफ्रेंस की सीटें सबसे ज्यादा आई थी, लेकिन कांग्रेस और पीडीपी ने मिलकर सरकार बना ली थी।

टिकटों की बिक्री लोकतंत्र के लिए खतरा

Publsihed: 13.Nov.2008, 20:44

चुनाव आयोग को चाहिए कि टिकटों की बिक्री के आरोपों की सीबीआई से जांच करवाए। आरोप सही पाए जाने पर राजनीतिक दल की मान्यता खत्म होनी चाहिए।

परिवारवाद न तो कांग्रेस में कोई अजूबा है और न ही अन्य राजनीतिक दलों में कोई नई बात। जिस तरह वकील का बेटा बड़ा होकर वकील बनने की सोचता है और डाक्टर का बेटा डाक्टर बनने की सोचता है उसी तरह सांसदों, विधायकों के बेटे भी अपने परिवेश में राजनीति की शिक्षा-दीक्षा हासिल करते हैं, इसलिए वे भी वैसा ही सोचते हैं। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी या उनकी मां सोनिया गांधी कतई राजनीति में नहीं होते अगर राजीव गांधी राजनीति में न होते।

एक बार जो सत्ता का स्वाद चख ले

Publsihed: 06.Nov.2008, 20:47

दल-बदल की बीमारी ऐसे लोगों में ज्यादा पाई जाती है, जो सत्ता का स्वाद एक बार चख चुके होते हैं। चुनाव के मौके पर दल-बदल की बीमारी का मौसम आ जाता है। भाजपा ने टिकटों का ऐलान करने से पहले पार्टी के लिए काम करने की शपथ दिलाने का रास्ता ईजाद किया है। यह कितना कारगर होगा?

जिन छह राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, उनमें टिकट बंटवारे का काम अब करीब-करीब खत्म हो गया है। टिकट बंटवारे के बाद पार्टियों के दफ्तरों में तोड़फोड़ और बगावतों का सिलसिला भी थमने लगा है। चुनाव लड़ने की टिकट न मिलने के बाद अपनी ही पार्टी  के खिलाफ नारे लगाने, जिन नेताओं के पांव छूकर टिक

प्रज्ञा ठाकुर को कौन बनाएगा मुद्दा

Publsihed: 31.Oct.2008, 06:18

प्रज्ञा को मोहरा बनाकर कांग्रेस पूरे देश में हिंदुओं को आतंकवादी बता रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में खुद बचाव की मुद्रा में। कांग्रेस को डर है कहीं यह मुद्दा उल्टा ही न पड़ जाए।

कांग्रेस के लिए सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली बात हुई। प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी सात के अंक को अपने लिए शुभ मानते हैं, इसलिए वह समझ रहे थे कि पच्चीस नवंबर उनके लिए शुभ होगा।

सोनिया का आशीर्वाद फिर जोगी को

Publsihed: 16.Oct.2008, 20:43

विरोधियों को पछाड़ने के बाद खुद की रमण सिंह के मुकाबले चुनाव लड़ने की तैयारी। पत्नी और बेटे को भी टिकट दिलाने में जुटे। पहली ही नजर में कांग्रेस का पलड़ा भारी।

पूर्वोत्तर के मिजोरम और देश की राजधानी दिल्ली समेत पांच  हिन्दी भाषी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इनमें से सबसे पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव होगा। छत्तीसगढ़ का गठन पहली नवंबर 2000 को एनडीए शासनकाल के समय हुआ, हालांकि छत्तीसगढ़ अलग राज्य के लिए संघर्ष दो दशकों से चल रहा था। कांग्रेस ने हमेशा अलग छत्तीसगढ़ राज्य का विरोध किया, लेकिन जब राज्य का गठन हुआ, तो पहली सरकार उसी की बनी।

एंटी इनकंबेंसी तो दोनों दलों के खिलाफ

Publsihed: 10.Oct.2008, 07:19

2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इतना जोरदार झटका लगा था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दस साल तक कोई पद नहीं लेने का एलान कर दिया था। यह अलग बात है कि सोनिया गांधी ने जब उन्हें महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी तो वह ठुकरा नहीं सके। कांग्रेस आलाकमान ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें जिम्मेदारी दी तो वह भी उन्होंने मध्यप्रदेश की तरह बाखूबी निभाई। कांग्रेस आलाकमान ने शायद अभी तक 2003 की हार का सलीके से विश्लेषण नहीं किया।

(संशोधित....)चुनाव टालने की कांग्रेसी सियासत विफल

Publsihed: 03.Oct.2008, 20:39

जम्मू में हिंदुओं के विरोध में आ जाने से भयभीत कांग्रेस शुरू में विधानसभा के चुनाव टलवाने की कोशिश में जुटी थी, लेकिन चुनाव आयोग के सामने एक नहीं चली, तो जल्द चुनाव की वकालत शुरू कर दी।

यूपीए सरकार अलगाववादियों के दबाव में आकर जम्मू कश्मीर के चुनाव टालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी के तेवरों को देखकर अब केंद्र सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। केंद्र सरकार ने अब चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि चुनावों को इस साल होने वाले बाकी विधानसभाओं के चुनावों से अलग किया जाए क्योंकि जम्मू कश्मीर के लिए सुरक्षा एजेंसियों की ज्यादा जरूरत पड़ती है।

चुनाव टालने की कांग्रेसी सियासत विफल

Publsihed: 02.Oct.2008, 20:45

जम्मू में हिंदुओं के विरोध में आ जाने से भयभीत कांग्रेस शुरू में विधानसभा के चुनाव टलवाने की कोशिश में जुटी थी, लेकिन चुनाव आयोग के सामने एक नहीं चली, तो जल्द चुनाव की वकालत शुरू कर दी।

यूपीए सरकार अलगाववादियों के दबाव में आकर जम्मू कश्मीर के चुनाव टालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी के तेवरों को देखकर अब केंद्र सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। केंद्र सरकार ने अब चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि चुनावों को इस साल होने वाले बाकी विधानसभाओं के चुनावों से अलग किया जाए क्योंकि जम्मू कश्मीर के लिए सुरक्षा एजेंसियों की ज्यादा जरूरत पड़ती है।

कांग्रेस उलझी टिकटों की बंदरबांट में

Publsihed: 25.Sep.2008, 21:06

कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य और सुरेश पचौरी अपने-अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकटें दिलवाने में मशगूल। अर्जुन सिंह टिकटों की बंदरबांट से दूर रहकर तमाशा देख रहे हैं, वह अपना खेल आखिर में शुरू करेंगे। मध्यप्रदेश में भाजपा को हराना खाला जी का घर नहीं। पिछले चार विधानसभा चुनावों में भाजपा हमेशा 39 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करती रही है जबकि कांग्रेस 1990 और 2003 में 31-32 फीसदी वोटों तक लुढ़क चुकी है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में हमेशा कांटे की टक्कर रही है। लगातार कई साल तक दोनों पार्टियों में करीब दो फीसदी का वोट अंतर रहता था। जिसके वोट दो फीसदी ज्यादा हो जाते थे, वह सरकार बना लेता था।