सिद्दीकी दम्पती को आनन-फानन जारी हुए पासपोर्ट, उनकी छानबीन करने वाले अधिकारी विकास मिश्रा का उसी द्रुत गति से तबादला और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के फेसबुक पेज की रेटिंग धड़ाम होना इस समय बहस का सबसे मुफ़ीद विषय है। लगे हाथ लगभग सभी इस पर हाथ साफ़ कर रहे हैं। यह मुद्दा कई दिन जून के सूर्य के समान ताप बिखेर रहा था और मैं ख़ामोश देख रहा था। ताप अब भी कुछ कम नहीं हुआ है, लेकिन लौटती हुई प्रखर किरणें कुछ सवाल छोड़ गई हैं।
घटना क्या है, पहले उसे समझें। तन्वी सेठ नामक हिन्दू महिला ने धर्मांतरण कर अनस सिद्दीकी नामक मुस्लिम व्यक्ति से निकाह किया। निकाहनामे पर उसका नाम शादिया अनस सिद्दीकी दर्ज़ है। निकाह के बाद दम्पती नोएडा में रहता है। जैसी कि सूचनाएं हैं शादिया के पास इस नाम से पहले ही एक पासपोर्ट है, जिस पर अमेरिका एच वन वीज़ा देने से इनकार कर चुका है। ज़ाहिर है कि दम्पती अमेरिका जाने को लालायित था, तो उसे यह उपाय सूझा होगा कि शादिया के निकाह पूर्व नाम से नया पासपोर्ट बनवा लिया जाए, तो उसकी समस्या हल हो सकती है। लिहाज़ा, उसने लखनऊ पासपोर्ट कार्यालय में नया आवेदन कर दिया।
अगर मैं स्वयं को पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा के स्थान पर रख कर सोचता हूं, तो पाता हूं कि यह कतई संभव नहीं है कि मुझे यह पता न हो कि केंद्र सरकार ने 2017 में ही महिला सशक्तीकरण के हवाले से पासपोर्ट कानूनों में यह संशोधन कर दिया है कि अगर विवाहित महिला चाहे, तो वह अपने विवाह पूर्व नाम से नया पासपोर्ट बनवा सकती है और पति के बजाय पिता को अभिभावक दर्शा सकती है। (इससे महिला सशक्तीकरण कैसे होगा, यह अलग विषय है, फिर भी इस पर आगे विचार करेंगे।) फिर बहस का कारण क्या रहा होगा। अगर आपने तन्वी उर्फ़ शादिया के बयान सुने हैं, तो पता होगा कि उन पर यक़ीन संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी जिम्मेदार सीट पर बैठा अधिकारी इतना मूर्ख नहीं होता कि परिणाम की चिंता किए बिना ऎसी हरकत करे। तो संदेह के कारण क्या रहे होंगे? पहला, नोएडा का निवासी युगल इस काम के लिए लखनऊ क्यों आया? दूसरा, उसके निकाह बाद नाम पर कोई कानूनी अड़चन अथवा उस नाम से बने पासपोर्ट पर कोई प्रतिबंधात्मक आदेश तो नहीं? ज़ाहिर है, अगर ऐसा है, तो वह पुराने नाम पर भी लागू होंगे।
दम्पती ने हंगामा खड़ा क्यों किया? इसका उत्तर सीधा है - वह पुराने पासपोर्ट पर अमेरिकी इनकार से चिंतित था। उसे भय था कि नया पासपोर्ट अटक गया, तो उसका स्वप्न धूल में मिल जाएगा, तो उसने भारत में सबसे कारगर उपाय अपनाया - विक्टिमहुड। उसने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए फिल्मी नायिका श्रुति सेठ का डायलॉग दोहराया - 'मेरा पति मुस्लिम है, इसलिए मुझे परेशान किया जाता है।' और काम बन गया। भारतीय मीडिया अपनी रग-रग में बसा पुराना राग गाने लगा। हड़बड़ाए अधिकारी सब कुछ भूल अपनी गर्दन बचाने के लिए दम्पती को वीवीआईपी ट्रीटमेंट देने लगे। इसी हड़कंप में मिश्रा के तबादले जैसा मूर्खतापूर्ण कदम भी उठा लिया गया।
इस सम्पूर्ण प्रकरण में 'मोदी विरोधी लॉबी' के आचरण से मेरे शुष्क होठों पर मुस्कान के फूल खिल उठे और 'भक्त' कही जाने वाली बिरादरी के कार्यकलाप ने मुझे चकित कर दिया। मुस्लिम विक्टिमहुड की मौजूदगी, सवर्ण मानसिकता और मनुवाद का घनघोर विरोध प्रदर्शित करने के सुनहली अवसर पर भी 'मोदी विरोधी लॉबी' की इस मुद्दे पर निरंतर खामोशी आपको आश्चर्य में डाल सकती है, लेकिन मुझे नहीं। मैं इस लॉबी की मूल प्रवृत्ति और शातिराना अंदाज़ बखूबी समझता हूं। उन्होंने ऐसा क्यों किया, यह आपको समझाने के लिए एक 'छद्म सेक्यूलर' मित्र का कमेंट अति श्रेष्ठ है - "याद रखें, ऐसे मुद्दों को ज्यादा हवा नहीं दें। ये 2019 के लिए 2014 जैसी ज़मीन तैयार करेंगे।" ठीक इसीलिए वे इस गरमा-गरम मौसम में योग को 'सभी मनुष्यों को समान बनाने की फासीवादी कोशिश' और 'हिंदुत्व का प्रचार' जैसी 'मूर्खतापूर्ण दलीलों' के हवाले से मोदी को गरियाने में ठंडी फुहारों सा आनंद पा रहे थे। आप उनसे इसके विपरीत आचरण की अपेक्षा करते हैं, तो एक बार पुनः विचार करें।
इस मसले में सबसे निकृष्ट भूमिका रही विदेश मंत्रालय तथा पासपोर्ट कार्यालय के कर्मचारियों की। कार्रवाई में तुग़लकी कदम उठाने की फुर्सत उन्हें थी, लेकिन किसी के पास इतना समय नहीं था कि इतने सारे ट्वीट हो रहे हैं, विदेश मंत्री की रेटिंग धड़ाधड़ नीचे जा रही है, ऐसे में कोई तो एक ट्वीट अथवा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर स्थिति स्पष्ट कर दे और उचित कार्रवाई का भरोसा दिला दे। अन्यथा यह मामला इतना आगे जाता ही नहीं। मुझे उम्मीद है कि अब इस मामले की यथोचित जांच होगी और दोषी दंडित होंगे। भारतीय मीडिया की भूमिका से सभी परिचित हैं, अतः उस पर कुछ लिखना वक्त बर्बाद करना है। हां, यह अवश्य कहूंगा कि समय इन्हें सुधारेगा।
मंगलोर निवासी प्रखर राष्ट्रवादी सामाजिक कार्यकर्ता रॉबर्ट रोज़ेरियो ने अपने पेज पर महत्वपूर्ण सवाल किया -
Well I have seen only BJP supporters openly slamming their party leaders & even Modi on various issues. But still they are called blind ‘Bhakts’!! Don’t know how or why? The rating of the FB page of Sushma Swaraj is down from 4.9 to 1.4 in a single day after the passport officer was unduly transferred & harassed and the ministry did nothing.
उनके एक फॉलोवर मोहन पी. ने वहां उपयुक्त उत्तर दिया है -
I am one of the BHAKTs who demanded from PMO India that Sushma Swaraj must be sacked. It is not a small error. TRansfer of that passport officer send a message to the entire passport office that they will be axed if they follow the rules. It ruined the morale of all government servants even working in other departments by sending loud and clear message for minority appeasement. This dents not only law enforcement but also national security. Sushma Swaraj cannot be pardoned.
दरअसल यह सवाल-जवाब और कहें कि यह समूचा मसला तथाकथित 'भक्त' लॉबी के गुण-अवगुण के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट कर गया है। इसने कई भ्रम तोड़े हैं, तो कई खामियां भी उजागर की हैं। पहले अवगुण अथवा खामियां देखें - इसमें उतावलापन बहुत ज्यादा है, जिसके कारण यह लाभ-हानि का विचार किए बिना तत्पर हो जाती है। इसमें पढ़ने-लिखने वालों की संख्या काफ़ी कम है, अतः ये अपनी अवधारणाओं के लिए अधिकांश अन्यान्य पर आश्रित हैं। इनकी स्मरण शक्ति कमजोर है, जिसके कारण इन्हें अपनी सरकार के कार्य-कलाप ही याद नहीं रहते, तो पूर्ववर्ती सरकारों के कैसे रह सकते हैं। अन्यथा इन्हें स्मरण होता कि यही मोदी सरकार 2017 में पासपोर्ट कानूनों में वह महत्वपूर्ण संशोधन कर चुकी है, जिसका फ़ायदा सिद्दीकी दम्पती ने उठाया।
मैं हरगिज़ यह नहीं कह रहा कि हिन्दुत्ववादियों की चिंता वाज़िब नहीं थी, बिलकुल थी। ऐसे दौर में जब 'हिन्दू अथवा भगवा आतंक' के फ़र्ज़ी तीर बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे हैं, जब यूपी का हिन्दू युवक धर्मान्तरित होकर भी पूर्व नाम धारण किए कश्मीर में जेहाद करते पकड़ा जा रहा है, जब आपकी एक पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्री घरेलू हिंसा का शिकार है, एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी महज नाम से धोखा खाने के बाद लम्बी प्रताड़ना का शिकार होती है, तो यह सवाल उठता ही है कि अगर मुस्लिम बन चुकी महिला अपने पूर्व हिन्दू नाम से पासपोर्ट हासिल कर विदेश में किसी आतंकी गतिविधि में पकड़ी जाती है, तब उससे हिन्दू समाज की होने वाली बदनामी के दाग़ धोने कौन आएगा? नरेंद्र मोदी जी या सुषमा स्वराज जी? हरगिज़ नहीं आएंगे, लेकिन दिग्विजय सिंह, ग़ुलाम नबी आज़ाद, मणिशंकर अय्यर, संदीप दीक्षित, संजय निरुपम आदि अवश्य सक्रिय हो जाएंगे। तब हिन्दू समाज क्या करेगा? लेकिन इस मसले से जिस तरह निपटा गया, उसने इसे मूल से भटका दिया। पासपोर्ट क़ानून में यह संशोधन महिला सशक्तीकरण के नाम पर किया गया है। अब अवसर है, सरकार स्पष्ट करे कि इससे महिला सशक्त कैसे हो रही है और जो आशंकाएं हैं, उनका निदान क्या है?
इस मामले में भक्त समुदाय का उजला पक्ष यह है कि उसने पुनः साबित किया कि एकता में ही शक्ति निहित है और यह समुदाय एकजुट है। कुछ मतभेद उभरे। कुछ ने विभिन्न उपायों से मंत्री का बचाव किया, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में यही उचित है, अन्यथा हम रोबोट नहीं हो जाएंगे? सबसे बेहतर यह कि इस समुदाय ने अपने ऊपर लगातार लगाए जाने वाले 'बीजेपी आईटी सेल से जुड़ाव' के आरोप को जड़-मूल से उखाड़ फेंका। उसने साबित कर दिया कि वर्तमान दौर की राजनीति में केवल यह एकमात्र समुदाय है, जो सच-झूठ तथा उचित-अनुचित में अंतर करते हुए अपनी ही सरकार को घेरता अथवा उसकी प्रशंसा करता है। अगर सच को सच और झूठ को झूठ कहना ग़लत है, अपराध है; तो मुझे यह स्वीकार है। अगर यही भक्ति है, तो भक्तो, शुक्र है कि आप ग़ुलाम नहीं हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं।
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