हिमालय ने अपना पुत्र खो दिया

Publsihed: 21.May.2021, 17:04
ध्रुव रौतेला । सुंदर लाल बहुगुणा का अवसान एक युग के समाप्त होने जैसा है । आज ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में प्रख्यात पर्यावरणविद पदमविभूषण वृक्ष मित्र नाम से विख्यात सुंदर लाल बहुगुणा ने 94 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली , जिसकी जानकारी उनके पुत्र वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने सोशल मीडिया के द्वारा दी । स्वतन्त्रा संग्राम सेनानी रहे देश के वरिष्ठतम गांधीवादियों में सुमार बहुगुणा को 1970 के दसक में अविभाजित उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल में शुरू किये गए चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है।
 
चिपको आंदोलन पेड़ों को बचाने की एक अनूठी विश्व व्यापी जागरूकता की मुहीम बन गया था । यहाँ मनुष्य और प्रकृति के बीच अनूठे प्रेम को दर्शाता पहाड़ की महिलाओं द्वारा वृक्षों से चिपट कर उनको बचाने की पहल का दृष्य बहुत मार्मिक था। 1927 में टिहरी गढ़वाल में जन्मे सुंदर लाल जी प्राथमिक शिक्षा के बाद  लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किया। अपने युवाकाल में ही दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने और उनकी शिक्षा दीक्षा हेतु टिहरी में ठक्कर बापा होस्टल खोलकर वह चर्चित हुए। चिपको आंदोलन के दौरान उनका नारा "  क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार .. जिन्दा रहने के आधार " बेहद लोकप्रिय हुआ और जनगीत जैसा पहाड़ों में गाया जाने लगा । बहुगुणा चाहते थे कि वनों को काटने की बजाए वृक्षरोपण पर अधिक ध्यान  दिया जाए ।
 
टिहरी बांध निर्माण के खिलाफ उन्होंने लंबा संघर्ष किया और कई जेल यात्राएं की. जिंदगी की तमाम मुश्किलों को सहते हुए वह अपने कर्तव्य पर डटे रहे और आदर्शों से डिगे नहीं और सादा जीवन जीते रहे। विश्व के अनेकों मंच में उन्होंने पर्यवरण और इसकी रक्षा में खूब भाषण दिये जो काफी सराहे भी गये । साथ ही बहुगुणा जी ने कई अखबारों के लिये भी लिखा और उनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकशित हुई जिनमें धरती की पुकार काफी प्रसिद्ध हुई। उन्होंने मेधा पाटकर के साथ जहां नर्मदा बचाओ आंदोलन में साथ दिया वही उनके साथ मिलकर एक पुस्तक भी लिखी। 74 दिनों तक लगातार राजघाट पर बांध विरोध में किया गया अंसन भी एक मिशाल बना और केंद्र सरकार को बहुगुणा जी के सामने  झुकना पड़ा।
 
1981 में सरकार ने उन्हें पदम श्री से नवाजा और 2009 में पदम विभूषण जैसे देश के उच्चतम सम्मान से विभूषित किया गया। इस बीच उन्हें 1984 में प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज अवार्ड से भी1 सम्मानित किया गया ।  हमेशा सफेद धोती कुर्ते और टोपी में दिखाई देने वाले सुंदर लाल बहुगुणा जी का आवरण और व्यवहार किसी महान संत जैसा दिखाई देता था । 94 साल की आयु में सुंदरलाल जी के जाने से हिमालय ने अपने सबसे अच्छे और सच्चे पुत्र को आज खो दिया है । उनकी पत्नी विमला देवी हमेशा एक प्रेरणा के रूप में उनके साथ हर आंदोलन में खड़ी रही विश्व भर के मंचों पर बोलने वाले बहुगुणा जी बहुत ही विनम्र थे. प्रकृति के उपासक सुंदर लाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण की रक्षा के लिए समर्पित किया. इसीलिए उन्हें वृक्षमित्र और हिमालय के रक्षक के रूप में हमेशा याद किया जायेगा।  दो दिन पहले जब सुंदर लाल बहुगुणा को  एम्स में  भर्ती  करवाए जाने की खबर आई थी तो उत्तराखंड मूल के महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम  राज्यपाल  भगत सिंह कोश्यारी जी ने  बहुन्गुना जी के सुपुत्र  राजीव बहुगुणा से फोन पर उन का हालचाल जान चिंता जाहिर की थी लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था । 

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