अजय सेतिया / नाबालिग लडकी से बलात्कार के अपराधी ( आरोपी नहीं, अपराधी ) भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दस महीने तक गिरफ्तार न कर के योगी सरकार ने भाजपा को देश भर इतना बदनाम कर दिया है, कि वह कहीं मुहं छुपाने लायक नहीं रही है | काफी छीछालेदर के बाद भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पोक्सो की धारा 5 के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए हैं | इस मामले में राजनीतिज्ञों और पुलिस की मिलीभ्क्त भी साबित हो गई है | दोनों मिल कर हर रोज संसद के बनाए क़ानून को ठेंगा दिखाते हैं | संसद ने 2012 में योन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पोक्सो क़ानून पास किया था | इस क़ानून में किसी भी तरह के अपराध की सजा कम से कम तीन साल रखी गई | वह इस लिए क्योंकि सीआरपीसी के अनुसार जो अपराध तीन साल या उस से ज्यादा सजा वाला होता है, वह गैर जमानती होता है | पोक्सो का विशेष प्रावधान यह है कि जैसे ही किसी व्यक्ति के खिलाफ पोक्सो का केस दायर होता है वह अपराधी माना जाएगा | विशेष अदालत गिरफ्तार व्यक्ति को अपराधी मां कर कारवाई शुरू करेगी | आम तौर पर यह धारणा है कि कोई व्यक्ति तब तक अपराधी नही माना जा सकता, जब तक उस पर आरोप साबित न हो | लेकिन पोक्सो की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि पोक्सो की धारा 3 ,5 ,7 और 9 में केस दर्ज होते ही आरोपी अपराधी माना जाएगा , जब तक कि वह अदालत से बरी नहीं हो जाता |
उन्नाव और जम्मू कश्मीर के कठुआ की दो घटनाओं ने देश को शर्मसार किया है क्योंकि इन दोनों ही मामलों में पुलिस के साथ साथ क़ानून बनाने वाली विधायिका के सदस्यों ने भी शर्मनाक व्यवहार किया | उन्नाव मामले में तो "माननीय" सदस्य खुद अपराधी था, लेकिन पुलिस ने दस महीने तक ऍफ़आईआर में उस का नाम ही दाखिल नहीं होने दिया, क्योंकि ऍफ़आईआर दर्ज होते ही वह अपराधी हो जाता | उन्नाव के माखी गाँव का यह मामला 17 वर्ष की बालिका के साथ 4 जून 2017 को बलात्कार का है, सामान्यत : यह पोक्सो की धारा 3 का अपराध है जिस में कम से कम सात वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है | लेकिन क्योंकि अपराधी "माननीय विधायक" है इस लिए यह अपराध धारा 5 का है , जिस में कम से कम दस साल की कैद और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है | क़ानून की यह धारा प्रभावशाली पदों पर आसीन व्यक्तियों के लिए ख़ास तौर पर रखी गई है, क्योंकि क़ानून के रखवाले अगर क़ानून तोड़ते हैं तो उन को ज्यादा सजा होनी चाहिए |
ऍफ़आईआर दर्ज होते ही व्यक्ति अपराधी हो जाता है इस लिए उसी समय से वह माननीय नहीं रहता | उन्नाव के विधायक महोदय ने कम से कम दस साल की सजा वाला अपराध किया है , अत: विधानसभा के स्पीकर को भी उन की सदस्यता निलम्बित कर देनी पड़ेगी | इसी लिए उत्तरप्रदेश की सरकार, प्रशासन और पुलिस "माननीय विधायक" पर ऍफ़आईआर दायर करने से आना कानी कर रही थी | पर अब होगा क्या ? अब जब कि दस महीने बाद पोक्सो के अंतर्गत माननीय विधायक के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज हो गई है , और उन की गिरफ्तारी भी हो गई , तो उन सभी पुलिस अधिकारियों को भी पोक्सो की धारा 21 में नामजद किया जाना चाहिए , जिन्होंने बलात्कार के बाद लिखित शिकायत की ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की थी | धारा 21 कहती है कि अगर किसी को किशोर के साथ योन अपराध होने की जानकारी होती है और वह पुलिस को नहीं बताता, या अपराध को रिकार्ड ( पुलिस द्वारा ) नहीं किया जाता , तो उस पर पोक्सो की धारा 21 लगेगी , जिस में छह महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं |
1931 के बाद फिर डोगरा -मुस्लिम आमने सामने
उन्नाव की तरह कठुआ जिले के हीरानगर कस्बे के रसाना गाँव की आठ साल की बच्ची के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और फिर उस की हत्या भी मानव समाज को शर्मसार कर देने वाली है | मृतक आसिफा अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय से ताल्लुक रखती है | यह सीधा सीधा योन अपराध , योन विभत्सता , बलात्कार और हत्या का मामला है, लेकिन उसे साम्पदायिक और राजनीतिक रंग दे दिया गया है | आठ साल की बच्ची के साथ अगर बलात्कार हुआ है , तो इस से घिनौनी घटना और क्या हो सकती है | अगर बलात्कार की घटना मंदिर में हुई , तो सचमुच हिन्दुओं के लिए डूब मरने वाली घटना है | पर जम्मू के हिन्दुओं का कहना है कि बच्ची की लाश का जब पोस्टमार्टम किया गया था, तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में बलात्कार का कहीं कोई जिक्र नहीं था | उन का मानना है कि यह मुख्यमंत्री की साजिश का हिस्सा है | हिन्दुओं का कहना है कि मंदिर में न तो बलात्कार हुआ और न ही हत्या हुई | अब सच यह है जम्मू कश्मीर की पुलिस साम्प्रदायिक आधार पर दो हिस्सों में बंट गई है | सरकार भी साम्प्रदायिक आधार पर दो हिस्सों में बंट गई है और विधानसभा के माननीय सदस्य भी दो हिस्सों में बंट गए हैं | जम्मू और कश्मीर राज्य भी दो हिस्सों में बंट गया है | सूत्र बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री इस मुद्दे को आधार बना कर भाजपा से सम्बन्ध तोड़ कर इस्तीफा देने वाली है | महबूबा ने भाजपा को इतना बदनाम कर दिया है कि वह मुहं छुपाने लायक नहीं बची है |
शुरू में जम्मू कश्मीर की पुलिस ने भी यूपी पुलिस की तरह आनाकानी वाला रवैया अख्तियार किया, जब उस ने बच्ची के गुम होने की ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की थी | जबकि बीबीए बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीमकोर्ट ने आदेश पारित किया हुआ है कि गुमशुदा बच्चे की ऍफ़आईआर तुरंत दायर की जानी चाहिए | तीन महीने पहले जब से गुमशुदगी के सात दिन बाद से बच्ची की लाश मिली है, घटनाएं आए दिन नया मोड़ ले रही हैं | अब घटना का सच मुस्लिम हिन्दू आधार पर अलग अलग है | यह भी खबर है कि बच्ची को गौद लिया गया था और उस के नाम कुछ जायदाद थी | पहले स्थानीय पुलिस ने जांच की थी, फिर क्राइम ब्रांच की टीम गठित की गई , फिर इस टीम को भंग कर दिया गया और तीसरी टीम गठित की गई, इस तीसरी टीम में जम्मू का एक भी पुलिस अफसर नहीं है , सारे अफसर कश्मीर के हैं | इस टीम का एक अफसर खुद बलात्कार और हत्या के मामले में जेल में रह चुका है | क्राइम ब्रांच की अदालत में दायर चार्जशीट में आरोप है कि अपराध मंदिर में हुआ और उस में हिन्दू समुदाय के अपराधी शामिल थे, जिन में दो हिन्दू पुलिसकर्मी (एसपीओ ) भी थे |
करीब सौ साल तक जम्मू कश्मीर पर जम्मू के डोगरों का राज रहने बाद अब 1950 से जम्मू कश्मीर पर कश्मीरी मुसलमानों की हकूमत है | जम्मू क्षेत्र के लोगों को लगा कि उन्हें झूठा फ़साने , उन्हें और उन के धर्म को बदनाम करने के लिए कश्मीर की क्राइम ब्रांच को केस सौंपा गया है | आख़िरी डोगरा शासन के समय 21 जून 1931 में एक मुस्लिम युवक अब्दुल कादिर ने एक जनसभा में जोशीला भाषण देते हुए कहा था कि महाराजा हरिसिंह के शासन से इस्लाम खतरे में है | अब 78 साल बाद जम्मू के डोगरे भी वैसा ही जोशीला भाषण दे रहे हैं और कह रहे हैं कि महबूबा के शासन से हिंदुत्व खतरे में है | इस लिए उन्होंने धार्मिक सवाल बना लिया और पुलिस पर आरोप लगा रहे हैं कि वह विद्वेष में निरपराधियों को फंसा रही है | क्योंकि अब उस का मकसद अपराधियों को सजा दिलाना नहीं , बल्कि हिन्दुओं को कटघरे में खड़ा करना है | जम्मू की बार एसोसिएशन का कहना है कि पुलिस ने जिन्हें गिरफ्तार किया है उन से अपराध कबूल करवाने के लिए उन पर अमानवीय अत्याचार किए गए है | उन के नाखून और नसें काट कर अपराध कबूल करवा गया | जब उन्हें अदालत में 161 में बयान दर्ज करवाने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने खुद यह बात मजिस्ट्रेट के सामने कही है | इस लिए बार एसोसिएशन सीबीअई जांच की मांग कर रही है |
( लेखक -"पोक्सो" नामक पुस्तिका के लेखक और उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं )
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