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Indian Politics based articles

कांग्रेस के करिश्माई नेतृत्व का अंत

Publsihed: 10.May.2008, 20:40

राजनीति में हर छोटी बात का महत्व होता है। यह अनुभव से ही आता है। गुजरात विधानसभा के चुनावों में सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर ही तो कहा था। इस छोटी सी बात से गुजरात में कांग्रेस की लुटिया डूब गई। चुनाव जब शुरू हुआ था तो कांग्रेस का ग्राफ चढ़ा हुआ था और दिल्ली के सारे सेक्युलर ठेकेदार ताल ठोककर कह रहे थे कि इस बार मोदी नप जाएंगे। चुनावी सर्वेक्षण भी कुछ इसी तरह के आ रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे चुनावी बुखार चढ़ा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मौत के सौदागर जैसी छोटी-छोटी गलतियां करती चली गई और आखिर में कांग्रेस बुरी तरह लुढ़क गई। सोनिया गांधी को तो अपनी गलती का अहसास हो गया होगा, लेकिन उनके इर्द-गिर्द चापलूसों का जो जमावड़ा खड़ा हो गया है उसने वक्त रहते गलती सुधारने नहीं दी।

लूट मची है लूट, लूट सके तो लूट

Publsihed: 26.Apr.2008, 20:46
टी.आर. बालू ने तो बिना राग-द्वेष के मंत्री पद की जिम्मेदारी निभाने की शपथ का उल्लंघन किया ही है। टी.आर. बालू के परिवार की बंद पड़ी और फर्जी कंपनियों को कौड़ियों के भाव सीएनजी दिलवाने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिलचस्पी से सार्वजनिक जीवन में शुचिता का सवाल खड़ा होता है।

''मैं टी.आर. बालू ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं कि कानून द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रध्दा व निष्ठा बनाए रखूंगा। मैं भारत की एकता और अखंडता अक्षुण बनाए रखूंगा। मैं केंद्र में मंत्री के नाते अपने अंत:करण और पूरी निष्ठा से अपने कर्तव्यों का निवर्हन करूंगा। संविधान और कानून के मुताबिक बिना किसी डर, पक्षपात, राग या द्वेष सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करूंगा।'' यह शपथ टी.आर. बालू ने केंद्र में मंत्री बनते समय ली थी। यही शपथ बालू से ठीक पहले मनमोहन सिंह ने भी ली थी। लेकिन पिछले चार साल से टी.आर. बालू लगातार अपनी पारिवारिक कंपनियों को कोड़ियों के भाव सीएनजी उपलब्ध करवाने की कोशिश में जुटे हुए हैं और केंद्र सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं।

चाटुकारिता तो कांग्रेस की राजनीति का गहना

Publsihed: 19.Apr.2008, 20:46

सोनिया गांधी इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि कांग्रेस में चाटुकारिता नहीं। कांग्रेस की राजनीति चाटुकारिता आधारित है इसीलिए तो पार्टी में परिवारवाद चल रहा है।

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को पार्टी जितनी तवज्जो दे रही है इतनी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नहीं मिल रही। अब तक तो कांग्रेस के पोस्टर बैनरों पर सोनिया गांधी के साथ कहीं कभी कभी मनमोहन सिंह का फोटो दिखाई भी दे जाता था। लेकिन राहुल गांधी को पार्टी महासचिव बनाए जाने के बाद मनमोहन सिंह एकदम गायब हो गए हैं। कांग्रेस में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बाद दूसरा स्थान राहुल ने हासिल कर लिया है और मनमोहन तीसरे स्थान पर चले गए हैं। तीसरे स्तर के नेता को पार्टी में जितना महत्व मिलना चाहिए, उतना ही मिल रहा है।

आरक्षण पर अभी खत्म नहीं हुआ टकराव

Publsihed: 12.Apr.2008, 21:28
सीमित अंकों की छूट, क्रीमी लेयर, पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सों में प्रवेश पर विधायिका और न्याय पालिका में टकराव के आसार कांग्रेस को ऊंची जातियों के मध्यम वर्ग की नाराजगी का डर सताने लगा।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ी जातियों को उच्च शिक्षा में आरक्षण के लिए किए गए 93वे संविधान संशोधन को उचित ठहराकर कांग्रेस की अर्जुन सिंह खेमे को ताकत दी है। दूसरी तरफ संविधान संशोधन के समय पूरी तरह भ्रांति में रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ज्ञान आयोग के जरिए देश की प्रतिभाओं को उभारने की मुहिम को धक्का लगा है। यह कहना कि कांग्रेस में पिछड़ी जातियों को शिक्षा में आरक्षण को लेकर एकमत था, ठीक नहीं होगा। पिछड़ा वर्ग कांग्रेस का वोट बैंक नहीं है, अलबत्ता अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक जरूर कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं।

कंधार और 'माई कंट्री माई लाईफ'

Publsihed: 30.Mar.2008, 05:25

लाल कृष्ण आडवाणी की किताब 'माई कंट्री माई लाइफ' राजनीतिक लड़ाई का केंद्र बिंदु बन गई है। आडवाणी के परंपरागत विरोधी बिना किताब को पढ़े, उनके खिलाफ धड़ाधड़ लिख और बोल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि किताब में कोई त्रुटियां नहीं हैं, हालांकि किताब लिखते समय आडवाणी और उनके सलाहकारों ने तथ्यों की अच्छी तरह जांच-पड़ताल की, फिर भी कई गलतियां रह गई हैं। जैसे एक जगह 1974 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का जिक्र किया, जबकि उन्हें जनसंघ लिखना चाहिए था क्योंकि उस समय जनसंघ थी, भाजपा नहीं। एक और बड़ी चूक हुई है, जिसे आडवाणी के विरोधी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य है, जो उस समय भी अखबारों में छपा था कि विमान जब दुबई में उतरा, तो भारत सरकार ने अमेरिका से मदद मांगी थी। लेकिन आडवाणी की ओर से लिखते समय तत्कालीन राजदूत का नाम गलत लिखा गया। उस समय भारत में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड सेलस्टे थे, न कि रोबर्ट ब्लैकविल।

अंधा बांटे रेवड़ियां, मुड-मुड अपनो को दे

Publsihed: 03.Feb.2008, 07:01


यूपीए सरकार ने पिछले छह सालों की तरह इस बार भी किसी को भारत रत्न नहीं देकर खुद को भंवर जाल से तो निकाल लिया, लेकिन भारत रत्न सम्मान खुद भंवर जाल में फंस गया। परंपरा के मुताबिक विपक्ष के नेता लाल कृष्ण आडवाणी का यह अधिकार था कि वह अपनी तरफ से प्रधानमंत्री को किसी का नाम सुझाते। यह अलग बात है कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी का नाम पेश किया, इसमें इतनी बुराई इसलिए नहीं है, क्योंकि कांग्रेस सरकारें अपने ही प्रधानमंत्री और नेता को भारत रत्न और दूसरे नागरिक सम्मान देती रही है। बुराई यह थी कि आडवाणी ने प्रधानमंत्री को भेजी गई सलाह प्रेस को लीक कर दी। कम से कम ऐसी परंपरा पहले नहीं थी।

अंदरूनी लोकतंत्र से ही उपजेगा जनाधार

Publsihed: 18.Jan.2008, 20:51

अगर इस साल लोकसभा चुनाव नहीं भी हुए, तो भी आम चुनावों में अब सिर्फ सवा साल बाकी रह गया है। राजग ने छह साल केंद्र में सरकार चलाई, लेकिन आखिरी दिनों में भारतीय जनता पार्टी की इतनी बुरी हालत नहीं हुई थी, जितनी इस समय कांग्रेस की दिखाई देने लगी है। दिसंबर 2003 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव जीतने से भारतीय जनता पार्टी इतनी उत्साहित थी कि लोकसभा चुनाव वक्त से पहले करवा दिए। लोकसभा चुनावों में भाजपा से आठ सीटें ज्यादा जीतने से कांग्रेस इतनी उत्साहित थी कि उसे जनादेश मान बैठी।

रोटी, कपड़ा, मकान और नैनो

Publsihed: 11.Jan.2008, 20:41

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की सरकार ने आम आदमी के हित में कितने काम किए, इसका हिसाब-किताब तो अगले चुनावों में ही पता चलेगा। वैसे एक वर्ग का मानना है कि पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात ने अपना फैसला सुना दिया है। इस बड़े तबके के हिसाब से मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी आम आदमी की बात करके सत्ता तक तो पहुंचे पर आम आदमी को कोई फायदा नहीं हुआ। दूसरी तरफ आजादी से पहले के भारत के दो बड़े औद्योगिक घरानों बिड़ला और टाटा ने अचानक आम आदमी की फिक्र करना शुरू कर दिया है।

भाजपा का अश्वमेघ घोड़ा कहीं रास्ते में न रुके

Publsihed: 03.Jan.2008, 20:40

गुजरात-हिमाचल में जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी में नया उत्साह आ गया है। लोकसभा चुनावों में हार के बाद से पार्टी में मुर्दनी छाई हुई थी। इस बीच पार्टी में कई प्रयोग हुए लेकिन कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं भरा जा सका था। भाजपा को निराशा के चक्रव्यूह में फसाने का काम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विवादास्पद फैसलों से हुआ था। उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार के बाद संघ ने भाजपा पर अपनी नीतियां-निर्देश थोपने की गलती कबूल की और लाल कृष्ण आडवाणी का विरोध छोड़ दिया। आडवाणी को प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करके अगले लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला इसी समीक्षा से निकला। स्वाभाविक तौर पर संघ परिवार के बदले रुख से भाजपा में नए सिरे से उथल-पुथल शुरू हो चुकी है।

मोदी को मुद्दा बना खुद हारी कांग्रेस

Publsihed: 23.Dec.2007, 09:09

गुजरात के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा उसी दिन भारी हो गया था, जिस दिन कांग्रेस नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत विरोध पर उतर आई थी। चौदहवीं लोकसभा के चुनावNarendra Modi में कांग्रेस ने मोदी को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया था, तो गुजरात में कांग्रेस की स्थिति में सुधार हुआ था। अलबत्ता विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेस 91 क्षेत्रों में जीती थी, जबकि भाजपा 89 क्षेत्रों में। इसका मतलब यह हुआ कि करीब साढ़े तीन साल पहले नरेंद्र मोदी का प्रभाव घटना शुरू हो गया था, लेकिन कांग्रेस ने हालात का फायदा उठाकर खुद को मजबूत करने की बजाए कमजोर कर लिया।

चुनाव नतीजों से पहले ही यह चर्चा शुरू हो गई कि गुजरात में न तो भाजपा जीतेगी, न हारेगी। जीतेंगे तो नरेंद्र मोदी, हारेंगे तो नरेंद्र मोदी।