क़ानून संसद का नहीं पुलिस का चलता है 

Publsihed: 15.Apr.2018, 22:52

अजय सेतिया \संसद ने 2012 में योन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पोक्सो क़ानून पास किया था | इस क़ानून में किसी भी तरह के अपराध की सजा कम से कम तीन साल रखी गई | वह इस लिए क्योंकि सीआरपीसी के अनुसार जो अपराध तीन साल या उस से ज्यादा सजा वाला होता है, वह गैर जमानती होता है | पोक्सो का विशेष प्रावधान यह है कि जैसे ही किसी व्यक्ति के खिलाफ पोक्सो का केस दायर होता है वह अपराधी माना जाएगा | आम तौर पर यह धारणा है कि कोई व्यक्ति तब तक अपराधी नही माना जा सकता, जब तक उस पर आरोप साबित न हो | लेकिन पोक्सो की धारा 29 में यह प्रावधान किया गया है कि पोक्सो की धारा 3 ,5 ,7 और 9 में केस दर्ज होते ही आरोपी अपराधी माना जाएगा , जब तक कि वह अदालत से बरी नहीं हो जाता | 

उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू कश्मीर के कठुआ की दो घटनाओं ने देश को शर्मसार किया है क्योंकि इन दोनों ही मामलों में पुलिस के साथ साथ क़ानून बनाने वाली विधायिका के सदस्यों ने भी शर्मनाक व्यवहार किया है | दोनों ही मामलों में विधायिका के "माननीय" सदस्यों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अवैध रूप से दखल दिया | एक मामले में तो "माननीय" सदस्य खुद अपराधी था, लेकिन पुलिस ने दस महीने तक ऍफ़आईआर में उस का नाम ही दाखिल नहीं होने दिया, क्योंकि ऍफ़आईआर दर्ज होते ही वह अपराधी हो जाता | उन्नाव के माखी गाँव का यह मामला 17 वर्ष की बालिका के साथ बलात्कार का है, सामान्यत : यह पोक्सो की धारा 3 का अपराध है जिस में कम से कम सात वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है | लेकिन क्योंकि अपराधी "माननीय विधायक" है इस लिए यह अपराध धारा 5 का है , जिस में कम से कम दस साल की कैद और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है | 

क़ानून की धारा 5 और 9 ऐसे "माननीय" सदस्यों के लिए रखी गई है, जो समाज में इज्जत और जिम्मेदारी का स्थान रखते हैं और ऐसे जिम्मेदार पदों पर रहते हुए कुकर्म करते हैं | संसद ने ऐसे "माननीय" सदस्यों के लिए ज्यादा सजा वाली विशेष धाराएं बनाई हैं | क्योंकि ऍफ़आईआर दर्ज होते ही व्यक्ति अपराधी हो जाता है इस लिए उसी समय से वह माननीय नहीं रहता | उन्नाव के विधायक महोदय ने कम से कम दस साल की सजा वाला अपराध किया है , उन्हें पोक्सो की धारा 5 में गिरफ्तार किया गया है ,अत: विधानसभा के स्पीकर को भी उन की सदस्यता निलम्बित कर देनी पड़ेगी | इसी लिए उत्तरप्रदेश की सरकार, प्रशासन और पुलिस "माननीय विधायक" पर ऍफ़आईआर दायर करने से आना कानी कर रही थी | पर अब होगा क्या ? अब जब कि दस महीने बाद पोक्सो के अंतर्गत माननीय विधायक के खिलाफ ऍफ़आईआर दर्ज हो गई है , तो उन सभी पुलिस अधिकारियों को भी पोक्सो की धारा 21 में नामजद किया जाना चाहिए , जिन्होंने बलात्कार के बाद लिखित शिकायत की ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की थी | धारा 21 कहती है कि अगर किसी को किशोर के साथ योन अपराध होने की जानकारी होती है और वह पुलिस को नहीं बताता, या अपराध को रिकार्ड ( पुलिस द्वारा ) नहीं किया जाता , तो उस पर पोक्सो की धारा 21 लगेगी , जिस में छह महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं | 

कठुआ की घटना उन्नाव से भी ज्यादा शर्मनाक है | जिले के हीरानगर कस्बे के रसाना गाँव की आठ साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर उस की हत्या मानव समाज को शर्मसार कर देने वाली है | यह सीधा सीधा योन  अपराध , योन विभत्सता  , बलात्कार और हत्या का मामला है, लेकिन उसे साम्पदायिक और राजनीतिक रंग दे दिया गया | अपराधियों को बचाने के लिए दो ग्रुप बन गए हैं , जो एक दूसरे पर अपराधियों को बचाने का आरोप लगा रहे हैं | जम्मू कश्मीर की पुलिस ने भी यूपी पुलिस की तरह आनाकानी वाला रवैया अख्तियार किया, जब उस ने बच्ची के गुम होने की ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की | जबकि बीबीए बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीमकोर्ट ने आदेश पारित किया हुआ है कि गुमशुदा बच्चे की ऍफ़आईआर तुरंत दायर की जानी चाहिए | सात दिन बाद जब से बच्ची की लाश मिली है जम्मू कश्मीर की पुलिस भी साम्प्रदायिक आधार पर दो हिस्सों में बंट गई है, सरकार भी साम्प्रदायिक आधार पर दो हिस्सों में बंट गई है और विधानसभा के माननीय सदस्य भी दो हिस्सों में बंट गए हैं | जम्मू और कश्मीर राज्य भी दो हिस्सों में बंट गया है | राजनीति ने जम्मू कश्मीर राज्य के दोनों बड़े सम्प्रदायों हिन्दुओं और मुसलमानों को एक दूसरे के सामने ला कर खडा कर दिया है | 

मृतक आसिफा अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय से ताल्लुक रखती है | आरोप है कि अपराध मंदिर में हुआ और उस में हिन्दू समुदाय के अपराधी शामिल थे, जिन में दो पुलिसकर्मी (एसपीओ ) भी थे |  मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जांच का काम जम्मू की बजाए कश्मीर की क्राईम ब्रांच के अफसरों पर सौंप दिया , जिन्होंने उसे साम्प्रदायिक मुद्दा बना दिया | करीब सौ साल तक जम्मू के डोगरों का राज रहने बाद अब 1950 से जम्मू कश्मीर पर कश्मीरी मुसलमानों की हकूमत है | जम्मू क्षेत्र के लोगों को लगा कि उन्हें झूठा फ़साने , उन्हें और उन के धर्म को बदनाम करने के लिए कश्मीर की क्राइम ब्रांच को केस सौंपा गया है | इस लिए उन्होंने धार्मिक सवाल बना लिया और पुलिस पर आरोप लगा रहे हैं कि वह विद्वेष में निरपराधियों को फंसा कर केस कमजोर कर रही है, क्योंकि अब उस का मकसद अपराधियों को सजा दिलाना नहीं , बल्कि हिन्दुओं को कटघरे में खड़ा करना है | पर ये आरोप लगाने वाले असली अपराधियों भी सामने नहीं ला रहे | इतना ही नहीं अफ़सोस यह है कि जम्मू कश्मीर पुलिस पर आरोप लगाने वाले जम्मू के लोग हिन्दू धर्म का ईस्तेमाल कर रहे हैं और मौजूदा गिरफ्तार अपराधियों ( पोक्सो में गिरफ्तार आरोपी नहीं होते ) के पक्ष में भारत के झंडे फहरा रहे हैं और भारत माता ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे है | भारत माता के लिए इस से ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है |  
( लेखक -"पोक्सो" नामक पुस्तिका के लेखक और उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं )

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