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Comments by Ajay Setia on Current Political Happenings

नियंत्रण रेखा को बार्डर बनाना बेहतर हल

Publsihed: 19.Aug.2006, 20:40

दो साल सात महीने पहले जनवरी 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के नाते इस्लामाबाद में हुए सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे, तो दिल्ली से गई प्रेस टीम में मैं भी मौजूद था। करीब हफ्ते भर के पाकिस्तान दौरे के समय मेरे कई भ्रम टूटे थे। मैं इस नतीजे पर पहुंचा था कि पाकिस्तान का आवाम भारत के साथ न सिर्फ दोस्ताना संबंध रखने का इच्छुक है अलबत्ता ले-देकर कश्मीर समस्या को हमेशा के लिए हल करने का भी पक्षधर है। लेकिन पाकिस्तान की समस्या यह है कि थोड़ी-छोड़ी देर बाद लोकतंत्र खत्म हो जाता है और सैनिक शासन पाक के गले पड़ जाता है। उन दिनों मेरी वहां के पत्रकार हमीद मीर से लंबी बातचीत हुई थी,

वोल्कर रपट और मित्रोखिन दस्तावेज

Publsihed: 12.Aug.2006, 20:40

देश में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के किस्से सामने आए, लेकिन राजनीतिज्ञों को सजा नहीं मिली। अगर सजा मिली तो सिर्फ इतनी कि जब बवाल खड़ा हुआ तो कुर्सी खिसक गई, इसके अलावा कुछ नहीं हुआ। मेरा मानना है कि वोल्कर तेल घोटाले के मामले में भी ऐसा ही होगा। वोल्कर तेल घोटाला कुछ-कुछ मित्रोखिन दस्तावेजों जैसा ही है। इतिहास बताता है कि सोवियत संघ किस तरह दुनिया भर में अपने राजनीतिक समर्थकों को घूस दिया करता था। मित्रोखिन दस्तावेजों में इन्हीं बातों का खुलासा किया गया था। मित्रोखिन दस्तावेजों के मुताबिक भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां और कांग्रेस पार्टी के अलावा कुछ ऐसे बड़े नेता भी शामिल थे, जिन्हें सोवियत संघ से पैसा आता था।

भ्रष्टाचार और लोकतंत्र

Publsihed: 05.Aug.2006, 20:35

राजनीतिक भ्रष्टाचार देश को कोढ़ की तरह खाए जा रहा है। कितनी ही बार राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ। कई सुखरामों, जयललिताओं, मायावतियों के शयन कक्षों और बाथरूमों मे नोटों की प्लास्टिक के बैगों में भरी गड्डियां मिल चुकीं। कई लालू यादवों, ओम प्रकाश चौटालाओं के आमदनी से ज्यादा जायदाद के सबूत मिल चुके। लेकिन कभी किसी बड़े राजनीतिज्ञ को सजा होते नहीं दिखी। सबसे पहले जब किसी नेता का कोई घोटाला सामने आता है तो उस नेता की पार्टी और नेता खुद आरोपों को बेबुनियाद, बेसिरपैर के, झूठे कहकर खारिज करने की कोशिश करते हैं।

एटमी करार का मकसद?

Publsihed: 29.Jul.2006, 20:35

परमाणु ऊर्जा के बिना भी देश चल रहा था। अमेरिका ने इंदिरा गांधी के जमाने में परमाणु परीक्षण के बाद तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र को ईंधन की सप्लाई बंद करवा दी, तब भी देश चल रहा था। वाजपेयी ने इन प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए देश को पूरी तरह परमाणु संपन्न देश बनाने के लिए आखिरी परमाणु परीक्षण कर डाला। लेकिन यूपीए सरकार आने के बाद परमाणु ऊर्जा की इतनी जरूरत क्यों आन पड़ी जो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बिना वैज्ञानिकों की सलाह लिए अमेरिका की ऐसी-ऐसी शर्तें मान लीं, जो नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी ने भी कभी नहीं मानी थी।

सरकार से खफा देश की तीन सर्वोच्च शक्तियां

Publsihed: 22.Jul.2006, 20:35

आजादी के इतिहास में यह पहला मौका आया है जब देश की तीन सर्वोच्च शक्तियां मौजूदा परिस्थितियों से बेहद खफा हैं। राष्ट्रपति एपीजे अबदुल कलाम इस वजह से बेहद खफा बताए जाते हैं कि जब उन्होंने लाभ के पद संबंधी 36 सांसदों की छानबीन का काम चुनाव आयोग को भेज दिया था, तो न्याय प्रक्रिया में बाधा डालते हुए यूपीए सरकार ने सोनिया गांधी और सोमनाथ चटर्जी समेत उन 36 सांसदों की सदस्यता बचाने के लिए कानून में फेरबदल करने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और बाकी जज भी इस बात के लिए खफा हैं कि अदालत जो भी अच्छा फैसला करती है उसे मौजूदा यूपीए सरकार या तो लागू नहीं करती या फैसले को नेस्तनाबूद करने के लिए कानून में संशोधन कर देती है।

ब्रेकिंग न्यूज

Publsihed: 15.Jul.2006, 20:40

भारत का विजुअल मीडिया बार-बार इमेच्योर साबित होता है। ब्रेकिंग न्यूज की होड़ में सारी मर्यादाएं ताक पर रखी जा रही हैं और ऐसी खबरें प्रसारित की जा रही हैं, जो इतने बड़े पैमाने पर प्रसारित होने लायक ही नहीं होती। विजुअल मीडिया ने हाल ही में क्राइम न्यूज को बड़े पैमाने पर प्रसारित करना शुरू किया है, जिससे मुझे वह जमाना याद आता है, जब धर्मयुग, रविवार, दिनमान, सारिका छपा करती थी। उन्हीं दिनों में अपराध जगत की मनोहर कहानियां, सत्य कथाएं, सच्ची कहानियां आदि छपा करती थी। आज इन निजी चैनलों को देखकर मुझे उनमें से कोई भी धर्मयुग, रविवार या सारिका नहीं लगता।

वी पी सिंह की सचाई

Publsihed: 08.Jul.2006, 20:40

वीपी सिंह से इंटरव्यू के आधार पर लिखी गई रामबहादुर राय की किताब मार्केट में नहीं आई। मार्केट में आने से पहले ही किताब के परखचे उड़ गए। इसलिए किताब की भूमिका को उसके लेखक वरिष्ठ पत्रकार आदरणीय प्रभाष जोशी ने जनसता में छाप दिया है, ताकि लोग कम से कम भूमिका तो पढ़ सकें। दो टुकड़ों में छपी इस भूमिका में मांडा के राजा वीपी सिंह को राजनीति में साधु के तौर पर परिभाषित किया गया है। हालांकि पूरी किताब किसी के पढ़ने में नहीं आई, क्योंकि वह मार्केट में आई ही नहीं। टुकड़ों-टुकड़ों में जहां-जहां छपी, उसे ही पढ़ पाए हैं।