अजय सेतिया/ अगले महीने 8 नवम्बर को मौजूदा चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित रिटायर हो जायेंगे | चीफ जस्टिस के तौर पर उन्हें सिर्फ ढाई महीना काम करने का मौक़ा मिला| परंपरा यह है कि सरकार एक महीना पहले कोल्जिय्म से रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस के उत्तराधिकारी का नाम पूछती है| 8 अक्टूबर के आसपास सरकार कोलिजिय्म से आधिकारिक तौर पर पूछेगी| परंपरा के अनुसार कोलिजिय्म वरिष्ठतम न्यायधीश जस्टिस d.y चन्द्रचूढ़ का नाम भेजेगा| उन के नाम की सिफारिश से पहले ही हिंदूवादी संगठनों ने उन्हें चीफ जस्टिस बनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जाहिर करना शुरू कर दिया है| हाल ही के उन के एक फैसले पर सोशल मीडिया में उन के खिलाफ जोरदार मुहीम चल रही है, जिस में उन पर व्यक्तिगत कटाक्ष भी किए जा रहे हैं | इसी बीच सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से अपील की जा रही है कि वे जस्टिस चन्द्र्चूद की चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्ति को रोकें| हालांकि 1998 के सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के पास उन्हे ही चीफ जस्टिस बनाने के सिवा कोई चारा नहीं है| इस फैसले में सीनियर मोस्ट जस्टिस को चीफ जस्टिस बनाने की बात थी| जजों की नियुक्तियों के लिए भी सुप्रीमकोर्ट ने पांच जजों का कोलिजिय्म बना रखा है, नियुक्तियों में भाई भतीजावाद के अनेकों उदाहरण सामने आ चुके हैं|
इस लिए 2014 में मोदी सरकार ने हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए संसद से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का बिल पास करवाया था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने इस क़ानून को यह कहते ही रद्द कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप होगा| मोदी सरकार की और से पास किए गए बिल का प्रारूप मनमोहन सरकार के समय बना था , इसलिए कांग्रेस ने संसद में इस बिल का समर्थन किया था, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस ने भी यूटर्न ले लिया, तो सरकार ने बिल को दुबारा संसद में पेश नहीं किया| सरकार चाहती तो संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला कर बिल को दुबारा पास करवाती, लेकिन मोदी सरकार ने न्यायपालिका से टकराव लेना उचित नहीं समझा|
उस के बाद अब यह पहला मौक़ा है कि चीफ जस्टिस की नियुक्ति पर देश में विरोध की स्थिति बन रही है| भावी मुख्यन्यायधीश के पुराने कुछ फैसलों को विवादास्पद बता कर सोशल मीडिया पर उन की नियुक्ति का विरोध हो रहा है| सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि देश के मुख्य न्यायाधीश का पद ऐसे व्यक्ति को कदापि नहीं मिलना चाहिए जो देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर हर फैसले में कुठाराघात करता रहा हो| प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी गई चिठ्ठियों में सुझाव दिया गया है कि सरकार मौजूदा चीफ जस्टिस यू यू ललित का कार्यकाल 2 वर्ष के लिए बढ़ा दे| जस्टिस चंद्रचूड़ के कुछ फैसलों का उदाहरण देते हुए राष्ट्रपति से अपील की जा रही है कि वे जस्टिस चन्द्रचूड को चीफ जस्टिस बनने से रोकें|
जस्टिस चन्द्रचूड के कुछ विवादास्पद फैसलों के कुछ उदाहरण मैं यहाँ दे रहा हूँ|
केस -1 इसी साल कश्मीरी पंडितों पर कश्मीर में हुए जुल्मों की जांच के लिए आयोग गठित करने की मांग वाली याचिका जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 32 साल बाद क्या सबूत मिलेंगे| इतना ही नहीं , बल्कि जस्टिस चन्द्र्चूड ने याचिकाकर्ता कश्मीरी पंडित से कहा कि उस ने पब्लिसिटी के लिए याचिका दाखिल की है|
केस 2 - जस्टिस चंद्रचूड़ ने 29 अगस्त, 2018 को यह कहते हुए अर्बन नक्सलियों की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी कि Dissent is the safety Valve of Democracy और ज्यादा दबाव बनाया गया तो प्रेशर कूकर फट जायेगा - ये शब्द उन्होंने तब कहे जब कोर्ट को बताया गया था कि आरोपी प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश कर रहे थे|
केस 3 - जस्टिस चंद्रचूड़ उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने सबरीमाला मंदिर की 800 साल पुरानी सनातन परंपरा को तोड़ कर हर महिला को मंदिर में जाने की अनुमति दे दी, महिलाओं को पहले से मन्दिर जाने की अनुमति थी, सिर्फ कुछ ख़ास परिस्थियों में मन्दिर जाने पर रोक थी| कम्युनिस्ट याचिकाकर्ताओं महिला की सनातन धर्म में कोई आस्था नहीं थी| मंदिर मे महिलाओं के प्रवेश की 800 साल पुरानी परंपरा बिना आपत्ति के चल रही थी | इस तरह चंद्रचूड़ ने सबरीमाला मंदिर को मलिन किया और सनातन धर्म पर कुठाराघात किया|
केस 4 - देश की सुरक्षा करने वाली सेना और सेना प्रमुख को 12 नवम्बर, 2021 को जस्टिस चंद्रचूड़ ने सिर्फ इस लिए अवमानना का केस चलाने की धमकी दे दी थी, क्योंकि 11 महिलाओं को Permanent Commission देने में देरी हुई थी|
केस 5 : नागरिकता विरोधी क़ानून के खिलाफ दंगा करने वालों को जस्टिस चंद्रचूड़ ने सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के तय किये गए नियमों का पालन नहीं किया – जिन्हें छोड़ा गया वे सिर्फ दंगाई नहीं थे , बल्कि देश के खिलाफ आतंक फैलाने वाले लोग थे और चंद्रचूड़ ने दंगाइयों का समर्थन करते हुए “एक काम करने वाली योगी सरकार” पर चाबुक चलाने का काम किया|
केस 6 - अभी 1 अक्टूबर के फैसले में हर महिला को गर्भपात की अनुमति दे दी , और यहाँ तक कह दिया कि गर्भपात के लिए महिला की स्वीकृति काफी है, उसके पति से पूछने की कोई जरूरत नहीं है | इस तरह यह हिन्दू परिवारों को तोड़ने की हरकत है, जहां सब कुछ बड़े बुजुर्गों की सहमती से होने की परंपरा रही है| उन के इस फैसले पर सोशल मीडिया में लोग खुल कर उनकी आलोचना कर रहे हैं|
सोशल मीडिया इन छह बड़े फैसलों के अलावा भी कुछ विवादास्पद फैसलों का जिक्र किया जा रहा है| मेरा उद्देश्य जस्टिस चन्द्रचूड के खिलाफ कोई अभियान चलाना नहीं है| हो सकता है कि न्यायपालिका के भीतर से ही उन के खिलाफ कोई अभियान शुरू हुआ हो| मेरा उद्देश्य सोशल मीडिया पर उठाई जा रही आपत्तियों को आप के सामने लाना है|
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