अजय सेतिया / एक तरह से यूक्रेन पर हमले की वजह खत्म हो चुकी है | यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन किया था | रूस का सब से बड़ा डर यह था कि नाटो गठबंधन यूक्रेन को अपना हिस्सा बना रहा था , इस लिए उस ने युद्ध किया | अब नाटो ने खुद ही कह दिया है कि वह यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बना रहा, अगर यही बात नाटो पहले ही कह देता तो युद्ध टल सकता था | रूस ने युद्ध न करने की जो तीन शर्तें रखीं थीं , उन में से एक शर्त यही थी | अगर तीन में से एक शर्त मान ली जाती , तो कूटनीतिक हल शुरू हो जाता | यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने भी अब कह दिया है कि यूक्रेन की नाटो के सामने झुक कर सदस्यता लेने में कोई दिलचस्पी नहीं है | उन्होंने एबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह किसी ऐसे देश का राष्ट्रपति नहीं रहना चाहते, जो घुटनों के बल बैठकर किसी चीज की भीख मांगे | रूस को सब से बड़ा डर तो यही था कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया तो अमेरिकी फौजें उस के दरवाजे पर आ कर बैठ जाएँगी | भारत में यूक्रेन पर रूस के हमले को पसंद नहीं किया जा रहा | जैसे रूस के भीतर युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं , वैसे भारत में भी हो रहे हैं | लेकिन रूस के हमले को भारतीय मूल के एक रूसी विधायक ने तर्कसंगत ढंग से बताया है | उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश या पकिस्तान में चीन अपना सैन्य अड्डा बना ले , तो क्या भारत उसे पसंद करेगा | क्या भारत को चिंता नहीं होगी | यही चिंता रूस की थी कि उस का पडौसी मित्र देश उस के सब से बड़े दुश्मन देश को सैन्य अड्डा बनाने दे रहा था | 2014 तक यूक्रेन उस का मित्र देश ही था |
रूस का यूक्रेन के साथ अब दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि वह डोनाबास को अलग देश के तौर पर कबूल करे और उसे मान्यता दे | रूस की सीमा से लगते डोनेस्क और लोहान्स्क को रूस ने डोनाबास के रूप में अलग देश की मान्यता दी है | रूसी बहुल इन दोनों प्रान्तों में अलगाववादी आन्दोलन चल रहा था और दोनों ने खुद को अलग देश घोषित कर लिया था | 2014 में क्रीमिया प्रांत खो जाने के बाद यूक्रेन अब डोनाबास पर भी समझौता करने को तैयार है | शायद यूक्रेन भी इन रूसी अलगाववादियों से मुक्ति चाहता है , इस लिए वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि दुनिया के किसी अन्य देश ने डोनाबास को मान्यता नहीं दी है , लेकिन वह इस मुद्दे पर बात करने को तैयार हैं , लेकिन सवाल यह है कि इस इलाके के जो लोग यूक्रेन का हिस्सा बने रहना चाहते हैं , उनकी क्या स्थिति होगी | राष्ट्रपति जेलेंस्की का यह सवाल जायज है , अलबत्ता मान्यता देने से ज्यादा बड़ा सवाल है | जब भारत पाक का बंटवारा हुआ था , तब यही सवाल अनसुलझा रह गया था कि पाकिस्तान में रह गए हिन्दुओं का क्या होगा |
नाटो और अमेरिकी की बेरूखी के कारण अगर यूक्रेन रूस की सभी बातें मान लेता है , तो आने वाले समय में यूक्रेन रूस की एक कालोनी बन कर रह जाएगा | नाटो का गठन सोवियत संघ का यूरोप की तरफ हो रहा विस्तार रोकने के लिए हुआ था , यूक्रेन यूरोप का हिस्सा रहा है , एक समय में यूक्रेन पोलैंड किंगडम का हिस्सा था | अब अगर वह रूस की कालोनी बन जाता है , तो क्या अमेरिका और नाटो की हार नहीं होगी | लेकिन अमेरिकी इतिहास में सब से दब्बू और कमजोर राष्ट्रपति के तौर पर साबित हो रहे जो बाइडेन की रूस को गीदड़ भभकियों के कारण यूकेन की यह स्थिति हुई है | देश का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा , कोई इमारत ऐसी नहीं बची जिस पर बम न फैंके गए हों | लेकिन बाइडेन अभी भी बेतुकी डींगें हांक रहे हैं | जब यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की खुद अमेरिका और नाटो को गीदड़ कर रहे थे , उस समय भी बाइडेन राष्ट्रपति पुतिन को गीदड़ भभकी दे रहे थे कि यूक्रेन को युद्ध की भयानक कीमत चुकानी होगी | वह कह रहे हैं कि यूक्रेन पुतिन के लिए जीत साबित्त नहीं होगा | लेकिन अगर राष्ट्रपति जेलेंस्की डोनाबास पर समझौता करने को तैयार हैं , और नाटो की सदस्यता से भी इनकार कर रहे हैं तो यूक्रेन की हार और रूस की जीत ही तो है |
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