अजय सेतिया / संसद से पारित कृषि से जुड़े तीनों विधेयकों पर इतवार के दिन राष्ट्रपति के दस्तखत हो जाने के बाद तीनों क़ानून अस्तित्व में आ गए हैं | सोमवार को तडके पंजाब से यूथ कांग्रेस के 30 वर्कर लग्जरी कारों पर इंडिया गेट पहुंचे और एक टाटा ट्रक पर लाद कर साथ लाए ट्रेक्टर को आग लगा कर इन तीनों कानूनों पर अपना विरोध जताया | इन तीनों कानूनों में से दो को बनाने का वायदा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी किया था , अगर कांग्रेस की सरकार आती और राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनते तब भी दो कानून तो बनने ही थे | वे दो वायदे थे , पहला किसानों को एपीएमसी यानी किसान मंडियों में ही अपनी उपज बेचने के बंधन से मुक्त करना और दूसरा 1955 के जमाखोरी क़ानून को रद्द कर के व्यापारियों को बेहिसाब कृषि उत्पाद खरीदने की छूट देना | कांग्रेस अब इन दोनों कानूनों का विरोध कर रही है । राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद ने राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर के संसद में पारित विधेयकों पर दस्तखत नहीं करने की गुजारिश की थी |
तीनों बिल पास हो जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए प्रतिबद्ध है | सरकार और भाजपा कह रही है कि इन प्रयासों से किसानों का फायदा होगा , लेकिन विपक्ष कह रहा है कि इन प्रयासों से किसानों का नुक्सान होगा | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह की प्रो-एक्टिव रणनीति ने अकाली दल को एनडीए से बाहर निकलने को मजबूर कर दिया | अब वह केंद्र सरकार के कानूनों को पंजाब में निष्प्रभावी बनाने के लिए अपना अलग क़ानून बनाने की तैयारी कर रहे हैं , नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ भी गैर एनडीए दलों की राज्य सरकारों ने विधानसभाओं से प्रस्ताव पास करवाए थे |कांग्रेस विरोध के लिए विरोध के रास्ते पर चल निकली है और उन के कुछ पिच्छलग्गू किसान अपना हित नहीं देख रहे |
दो नए क़ानून एक दूसरे से जुड़े हुए हैं , किसानों को एपीएमसी क़ानून से राहत दिला कर मंडियों से बाहर फसल बेचने की छूट और कांट्रेक्ट फार्मिंग | यह आशंका तो अब दूर हो गई है कि कांट्रेक्ट फसल का होगा , जमीन का नहीं | हालांकि यह आशंका अभी बनी हुई है कि बड़े-बड़े पूंजीपति किसानों से जमीन खरीदेंगे और उन्हीं से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कराएंगे | वैसे क़ानून के मुताबिक़ कारपोरेट घराने या कम्पनियां फसल बुआई से पहले ही किसानों से उस की फसल का सौदा कर लेंगे , फिर किसान को आधुनिक उपकरण , खाद और उन्नत बीज उपलब्ध करवाएंगे ताकि अच्छी और ज्यादा फसल हो | इसी के साथ जुड़ा है एपीएमसी यानी मंडी क़ानून से राहत | अगर किसान ने कांट्रेक फार्मिंग नहीं की है , तो भी वह उन कम्पनियों या व्यापारियों को जहां चाहे ले जा कर उपज बेच सकते है या मंडी में ले जा कर अपने आढती के माध्यम से भी फसल बेच सकते हैं |
लेकिन जब सरकार कहती है कि एपीएमसी क़ानून के कारण किसान मंडी के व्यापारियों के मोहताज बने हुए थे , तो किसानों को आशंका है कि सरकार धीरे धीरे मंडियों और एमएसपी को खत्म कर उन्हें कारपोरेट घरानों और बिचौलियों के हाथों औने पौने दामों पर फसल बेचने को मजबूर कर देगी और मंडियां नहीं रहेंगी तो एमएसपी का भी कोई महत्व नहीं रह जाएगा | सरकार ने एमएसपी खत्म किए जाने की आशंका को तो किसी हद तक खत्म किया है , लेकिन अगर वह साथ ही यह भी जोड़ देती कि एमएसपी से कम दाम पर खरीदने वाले व्यापारियों पर कानूनी कार्रवाई होगी , तो यह किसानों के पक्ष में क्रांतिकारी कदम होता | एमएसपी की तरह सरकार को एपीएमसी के बारे में भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि मंडियों का विकल्प हमेशा खुला रहेगा | किसानों की आशंका का एक और पहलू यह है कि कृषि पंडित इस नई व्यवस्था को अमेरिका का असफल माडल बता रहे हैं |
अब अपन एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट 1955 को खत्म करने पर बात करते हैं | नए क़ानून में व्यापारियों को जमाखोरी करने की इजाजत दे दी गई है | आशंका है कि इस से अर्थव्यवस्था पूंजीपतियों के हाथ में नियंत्रित हो जाएगी | राष्ट्रपति के दस्तखत से पहले ही अपन ने इस का जलवा देख लिया | देश में आलू की कोई कमी नहीं है , कोल्ड स्टोरेज भरे पड़े हैं, लेकिन अचानक आलू के दाम बढ़ गए हैं | किसानों से सस्ते दामों में खरीद कर अब मुनाफाखोर भारी लाभ ले रहे हैं | साथ ही भविष्य के लिए भी किसानों के शोषण की जमीन तैयार कर रहे हैं | आलू की नई उपज बाज़ार में आने पर कोल्ड स्टोरेज से भी आलू बाज़ार में उतरना शुरू हो जाएगा | ऐसे में नए आलू के दाम कमजोर हो जाएंगे और किसान को पूरा पैसा नहीं मिल पाएगा | साथ ही जमाखोर सस्ता आलू खरीद कर फिर कोल्ड स्टोरेज में स्टॉक कर लेंगे |
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