अजय सेतिया / देश की राजधानी नई दिल्ली में दूरदर्शन की स्थापना 1959 में हुई थी , जबकि उस के नियमित दैनिक प्रसारण की शुरुआत 1965 में आल इंडिया रेडियों के एक अंग के रूप में हुई | राष्ट्रीय प्रसारण 1982 से शुरू हुआ | दूरदर्शन और बीबीसी पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे प्रणब राय ने 1988 में एनडीटीवी नाम से कम्पनी बनाई और दूरदर्शन से पहले “द वर्ल्ड दिस वीक” और बाद में “न्यूज टू नाईट” के नाम से रात्रि न्यूज का स्लाट खरीद लिया | 1992 में सुभाष चन्द्रा ने “जी टीवी प्राईवेट न्यूज चेनेल” शुरू किया , जो स्टार न्यूज के लिए काम कर रहा था | जब स्टार टीवी को एक अमेरिकी कंपनी ने खरीद लिया तो एनडीटीवी ने स्टार के साथ करार कर के उन्हें न्यूज देना शुरू किया |
1995 में जीटीवी अपना पहला भारतीय निजी टीवी न्यूज चेनेल ले कर आया | तभी 1995 में ही इंडिया टूडे ने दूरदर्शन का रात्रि 10.20 का स्लाट ले कर “आज तक” नाम से खबरों का प्रसारण शुरू किया | 1999 में इंडिया टूडे ने “आज तक” नाम से अपना प्राईवेट न्यूज चेनेल शुरू कर दिया , उस के चार वर्ष बाद 2003 में प्रणब राय ने भी एनडीटीवी नाम से हिन्दी और अंगरेजी के दो प्राईवेट न्यूज चेनेल शुरू किए | इस तरह अपन देखते हैं कि 1995 से 2003 तक चार प्राईवेट न्यूज चेनेल प्रसारण शुरू कर चुके थे , लेकिन केंद्र सरकार ने उन पर नियन्त्रण के लिए प्रेस काऊंसिल जैसी किसी संस्था का गठन नहीं किया | यूपीए सरकार ने यह काम एनबीए ( नेशनल ब्रोडकास्टिंग एसोसिएशन ) पर ही छोड़ दिया , एनबीए ने 2008 में एनबीएसए ( नेशनल ब्रोडकास्टिंग स्टेंडडर्स अथारटी ) का गठन किया , जो किसी रिटायर्ड जस्टिस को अपना अपना अध्यक्ष नियुक्त करती है , इस समय आर. वी रविन्द्रन अध्यक्ष हैं |
यूपीए सरकार का यह गलत फैसला था , क्योंकि एनबीए एक प्राईवेट सन्गठन है और एनबीएसए के दायरे में सिर्फ एनबीए के सदस्य ही आते हैं , देश में इस समय देश में 877 न्यूज चेनेल काम कर रहे हैं , लेकिन एनबीए के सदस्य सिर्फ 70 न्यूज चेनेल हैं | जब भारत सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय चेनेल चलाने का लाईसेंस देता है तो उस पर नियन्त्रण एनबीए का क्यों होना चाहिए , और 807 चेनलों पर तो एनबीए का भी नियन्त्रण नहीं | सुदर्शन चेनेल की ओर से यूपीएससी में इंटरव्यू में ज्यादा नम्बर दे कर हाल ही के वर्षों में मुस्लिम उम्मीन्द्वारों को आईएएस अफसर बनाए जाने के खुलासा वाली खबर प्रसारित होने और यह मामला सुप्रीमकोर्ट के सामने आने के बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने एनबीए पूछा तो एनबीए ने बताया कि एनबीएसए सिर्फ अपने सदस्य चेनलों की शिकायतें सुनता है |
यानी 25 साल से केद्र सरकार ने विजुअल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई मेकेनिज्म नहीं बनाया | कई बार यह बात सामने आई , विजुअल मीडिया को भी प्रेस कौंसिल के अंतर्गत लाने की मांग उठी , लेकिन सरकारें मुहं ढक कर सोई रहीं क्योंकि न्यूज चेनलों के प्रभावशाली मालिक किसी भी मेकेनिज्म का विरोध करते रहे | आज भी सरकार इन प्रभावशाली मालिकों के दबाव में है , वरना जो काम पिछली सरकारों ने नहीं किया , वह मोदी सरकार तो कर सकती है , मोदी सरकार ने तो तीन तलाक, 370 और 35 ए की समाप्ति कर के दिखाई , जम्मू कश्मीर को दो हिस्सों में बाँट कर दिखाया , राम जन्मभूमि निर्माण शुरू करवा कर दिखाया | और वैसे भी माना जाता है कि मोदी मीडिया को न तो कोई भाव देते हैं , न मीडिया के दबाव में आते हैं |
हैरानी तो तब हुई जब अदालत विजुअल मीडिया पर किसी हद तक निगरानी की बात कह रही थी , तब मोदी सरकार को सालिसिटर जनरल ने कहा कि इंटरनेट पर न जाने क्या क्या परोसा जा रहा है , उस पर नियन्त्रण की जरूरत है | ऐसा आभास हुआ , जैसे सरकार अदालत को इंटरनेट के लिए नियम कायदा बनाने की बात कह रही हो | क्या यह हास्यस्पद नहीं कि सरकार इंटरनेट के मामले में लाचार खडी है | इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इंटरनेट विस्तृत क्षेत्र है क्योंकि कोई भी इसे कहीं से भी संचालित कर सकता है | हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बात कर रहे हैं क्योंकि ये कंपनियां भारत में स्थित हैं हम यह नहीं कह सकते कि हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सिर्फ इसलिए नियंत्रित नहीं करेंगे क्योंकि हम इंटरनेट को नियंत्रित नहीं कर सकते | यह सरकार पर तमाचा है कि उस ने अब तक विजुअल मीडिया को जवाबदेय नहीं बनाया | लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि अदालत विजुअल मीडिया पर अंकुश सुझाने के लिए प्राईवेट लोगों की पांच सदसीय कमेटी बना दे दे , यह काम संसद का है, सरकार का है , और सरकार को ही करना चाहिए | अदालत को सेंसर बनने की छूट नहीं देनी चाहिए |
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