प्रदीप रंवाल्टा/ कमल दा ऐसे ही लोग आपके दीवाने नहीं हैं। फेसबुक पर आज भी लोग आपकी पोस्टों का इंतजार कर रहे हैं। इसका अंदाजा मुझे इस बात से ही कि मैंने आपकी वाल पर एक पोस्ट अपलोड की। उस पर लोगों का रिस्पांस बता रहा है कि वो आपको कितना चाहते हैं। आप सुन तो नहीं रहें होंगे.....? महसूस भी कर रहे होंगे या नहीं...?। इसका मुझे पता नहीं है, लेकिन अगर आप कहीं से देख रहे हैं तो आपको बता दूं कि आपको लोग बहुत मिस कर रहे हैं। वह इसलिए कि आज देहरादून में धाध संस्था की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया। गांधी पार्क में आपकी याद में पौधे रोपे गए। बहुत सारे फोटाग्राफर आए थे। आपसे मिलने। आप नहीं मिले, लेकिन धाध ने लोगों को आपकी तस्वीरों से मिलवा दिया। हर कोई बस आपकी फोटो निहार रहा था। हर राह चलता बुजुर्गवार हो या युवा। वही जो आपकी तस्वीरों में दिखता था, जिसकी पताका आप लहरा रहे थे। ठेठ पहाड़ की। लोग कार्यक्रम की कम आपकी बोलती तस्वीरों को अपने कैमरों और मोबाइल फोन पर उतारने की होड़ में लगे थे। कार्यक्रम भी जिंदादिली से मनाया गया। जैसे आप थे। एकदम बिंदास अंदाज में। लोग रोये भी। गीता दी बोली और फफक कर रो पड़ीं। कुछ आंखें चुपके से रो रही थीं। कुछ का दर्द जुवां पर था तो कुछ का दिलों में ही दबा रह गया। पौध रोपण में मेयर विनोद चमोली आए। पार्क में पौधे रोपे, लेकिन कमल दा की फोटो के प्रेमी गांधी पार्क के गेट पर लगी प्रदर्शनी को ही देखते रहे। निहारते रहे। उन तस्वीरों को, उनसे झलकते पहाड़ को। पहाड़ के जीवन को। उन बच्चों के दर्द को, जिनको तब्बजो नहीं मिलती। उस औरत को जो दो वक्त की रोटी के लिए पत्थर तोड़ रही है। स्कूल जाते बच्चों का उल्लास। गांवों की सुंदरता। पहाड़ का पहाड़ीपन। असली गांव। यह सब तस्वीरें बयां कर रही थी। पहाड़ की पीड़ा भी। कमल दा की एक तस्वीर ने उनकी उस खिड़की की याद दिला दी, जिस खिड़की से मैं लोगों को परिचयर करवाना चाहता हूं। जल्द कमल दा के कमरे की खिड़की से रुब-रु कराने का प्रयास रहेगा। (फेसबुक से साभार)
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