विपक्ष से ज्यादा तो भाजपा का वर्कर खुश है 

Publsihed: 14.Mar.2018, 20:47

अजय सेतिया / उत्तर प्रदेश से लोकसभा की दो सीटों के चुनाव नतीजों ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चौंकाया होगा | अलवर और अजमेर की हार का ठीकरा वसुंधरा राजे के सिर फोड़ दिया गया था | इसी लिए वसुंधरा राजे के घौर विरोधी किरोड़ी लाल मीना को राज्यसभा का टिकट दिया गया | उन्हें बदलने की अफवाहें भी फैलाई जा रही हैं | क्या अब योगी आदित्य नाथ को भी मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की अफवाहें उडाई जाएँगी | वह तो खुद अपनी लोकसभा सीट हारे हैं , क्या उप-मुख्यमंत्री मौर्य को भी हटाया जाएगा | इस से पहले मध्य प्रदेश की झाबुआ और पजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट भी भाजपा हारी थी |  ये सारी वो सीटें है जो भाजपा 2014 के लोकसभा के आम चुनावों में जीती थी | तो क्या वसुंधरा राजे, योगी आदित्य नाथ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिव राज सिंह चौहान को भी हटाया जाना चाहिए और केंद्र में मंत्री पंजाब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष विजय सांपला को भी हटाया जाना चाहिए | या फिर उप चुनावों में लोकसभा सीटों के हारने की जिम्मेदारी केन्द्रीय नेतृत्व को लेनी चाहिए | 

बिहार की अररिया लोकसभा सीट का नतीजा सर्वविदित था | नीतीश कुमार से राजद का गठबंधन टूटने के बाद भले ही लालू यादव जेल में हों , पर बिहार की राजनीति में उनका दबदबा बढ़ा है | वैसे भी अररिया की सीट पहले भी राजद के पास ही थी | मोहम्मद तस्लीमुद्दीन राजद के सांसद थे, उन का बेटा सरफराज आलम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का विधायक था | अपने पिता  की मौत के बाद सरफराज आलम ने जदयू और विधायकी दोनों छोड़ दी और लालू यादव की पार्टी राजद के उम्मीन्द्वार बन कर लोकसभा का उपचुनाव लड़ा | लालू यादव के जेल में होने के बावजूद भाजपा और जदयू मिल कर सरफराज आलम को नहीं हरा पाए | इस से यह नतीजा निकाला जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भारी पड़ेंगे | लेकिन उत्तर प्रदेश में तो जनता का आक्रोश ही भाजपा पर भारी पडेगा | जो लोग यह सोचते हैं कि बसपा सप्  के इक्कठा होने पर भाजपा हारी है, वे गलतफहमी में हैं | 2014 में इन दोनों सीटों पर बसपा और सपा के वोट मिला कर 37 फीसदी और 39 फीसदी थे जबकि भाजपा के वोट 52 फीसदी थे | इस का मतलब है कि जनता का मोदी सरकार से मौह भंग हुआ है | मौह भंग की यह गिरावट 1978 की याद दिलाती है | जब 1977 में सूपड़ा साफ़ होने के बाद आजमगढ़ के उपचुनाव में कांग्रेस की जोरदार वापसी हुई थी | 

भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व त्रिपुरा की जीत से लबालब है | जब कि हिन्दी बेल्ट में उस की अपनी जमीन खिसक रही है | पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं | जबकि इतनी ही सीटें सिर्फ राजस्थान अकेले में है |  हिन्दी बेल्ट के चार बड़े राज्यों उत्तरप्रदेश ( उत्तराखंड भी ), बिहार ( झारखंड भी ), मध्यप्रदेश ( छतीसगढ़ भी ) राजस्थान और उस के साथ लगते गुजरात को भी जोड़ लें तो इन आठ राज्यों की 230 सीटों में से भाजपा को 194 सीटें मिलीं थी | हिमाचल प्रदेश , हरियाणा , जम्मू कश्मीर और पंजाब की 33  सीटों में से भाजपा की 16 और सीटें हिन्दी बेल्ट की हैं | बाकी देश भर की 280 सीटों में से भाजपा को सिर्फ  64 सीटें मिली थी | इन 64 सीटों में से 21 महाराष्ट्र और 17 कर्नाटक की थी | यानी कुल मिला कर देश भर में कांग्रेस के खिलाफ माहौल होने के बावजूद भाजपा का मूल वोटर हिन्दी बेल्ट के आठ राज्यों में है | पर अब भाजपा नेतृत्व पूर्वोत्तर और दक्षिण में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है | जबकि अपने मूल प्रभाव वाली  250 सीटों वाली  हिन्दी बेल्ट में अपना प्रभाव समेट रहा है , लेकिन 25 लोकसभा सीटों वाले पूर्वोत्तर की जीत पर इत्तरा रहा है |

औरंगजेब एक जुझारू योद्धा था | वह नए नए क्षेत्रों को निशाना बना कर युद्ध करता था उस ने विभीन्न रियासतों पर हमला कर के उन के क्षेत्रों को जीता | उस का युद्ध कौशल गजब का था , कहने वाले उसे चाणक्य या चाणक्य नीति भी कह सकते हैं | वह दक्षिण के दुरुस्थ मदुरै तक पहुँच गया था , जो मौजूदा तमिलनाडू का हिस्सा है | लेकिन तब तक वह दिल्ली हार गया था |  दिल्ली हारने का मतलब है राजसत्ता का चला जाना | इतिहास गवाह है कि उस के बाद औरंगजेब के साथ क्या हुआ |  इस लिए बुद्धिमान अपनी इच्छाएँ बढाने से पहले उस पर अपना नियन्त्रण बना कर रखता है, जो उस के पास है |  भाजपा काडर अपने नेतृत्व से बेहद खफा है , वह इस जीत से कतई निराश या हताश नहीं है, अलबत्ता वह बेहद खुश है | वह इसे भाजपा नेतृत्व की हार और अपनी जीत मानता है | मोदी सरकार ने भाजपा काडर की जम कर उपेक्षा की , कांग्रेस सरकार में जिन सरकारी पदों पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं को बिठाया जाता था , मोदी सरकार ने उस सब पदों पर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट भर दिए हैं | भाजपा हलकों में यह बात अक्सर सुनी जा सकती है कि मोदी ने राजनीतिक नेतृत्व को समाप्त कर दिया है,सरकार ब्यूरोक्रेट्स चला रहे हैं | 

भाजपा का ज्यादातर काडर और वोटर मध्यम वर्ग का है , वह इस बात से बेहद निराश है कि मध्यम वर्ग का वोट लेकर बनी सरकार मध्यम वर्ग पर कुठाराघात कर रही है | मोदी सरकार गाँवों- गरीबो और पिछड़ी जातियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है और अपने वोट बैंक को नाराज कर रही है | जबकि पिछड़े वर्गों ने फूलपुर , अररिया और अलवर में मोदी को अपना रंग दिखा दिया है | भाजपा का काडर खुश है कि सरकार को उन की उपेक्षा का फल मिलना शुरू हो गया है | भाजपा का मध्यम वर्ग का वोटर भी खुश है कि पहले नोट बंदी और बाद में जीएसटी ला कर जो उन का धंधा चौपट किया गया है , भाजपा को अब उस का फल मिलना शुरू हो गया है | राजस्थान, मध्यप्रदेश,छतीसगढ़ के चुनावों से पहले तो आने वाले पांच महीनों में अगला इम्तिहान कर्नाटक के बाद खाली हुई दिल्ली विधानसभा की 22 सीटों पर होगा | लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों ने संकेत दे दिया है कि जनता मोदी सरकार से ज्यादा नाराज है , जो महंगी  स्कूली शिक्षा और महंगे ईलाज और बेरोजगारी जैसी मूल समस्याओं से निजात दिलाने में पूरी तरह नाकाम रही है | 

मोदी सरकार ने इस उम्मींद के साथ आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द करवाई है कि दिल्ली की जनता का अरविन्द केजरीवाल से मौह भंग हो गया होगा | हालांकि यूपीए प्रथम के समय जब सोनिया गांधी और सोमनाथ चेटर्जी जैसे लोगों पर लाभ के पदों की तलवार लटकी थी तो संसद से तुरंत क़ानून पास करवा कर पिछली तारीख से लागू करवाया गया था | हालांकि सोनिया गांधी ने खुद इस्तीफा दे कर दुबारा चुनाव लड़ा था | पर केजरीवाल से ज्यादा मुह भंग तो दिल्ली की जनता का मोदी सरकार से हुआ है | दिल्ली देश के उस सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है जहां जीएसटी के कारण सब से ज्यादा धंधा चौपट हुआ है और नोट बंदी के कारण सब से ज्यादा फेक्ट्रियां और कारोबार बंद हुए हैं | अब उन्ही पर सब से ज्यादा सीलिंग की मार पड रही है और जिन का धंधा चौपट हुआ है, वह मध्यम वर्ग भाजपा का ही वोट बैंक है, जो उस से खफा है , जबकि अरविन्द केजरीवाल का गरीब-गुरबा वोट बैंक सुरक्षित है |

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