या तो मंत्रियों की गिरफ्तारी रुके, या बर्खास्तगी हो

Publsihed: 25.Feb.2022, 20:59

अजय सेतिया / शरद पवार के अत्यंत करीबी और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक की गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं | नवाब मलिक ने 1993 के बम धमाकों के आरोपी मोहम्मद तौकीर की करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव खरीदी थी | मोहम्मद तौकीर टाडा में जेल में बंद था , टाडा के आरोपियों की जमीन सरकार अपने कब्जे में ले लेती है | लेकिन बड़ा सवाल यह है कि राज्य सरकार ने टाडा में बंद मोहम्मद तौकीर की जमीन कब्जे में क्यों नहीं ली थी | उस के लिए कौन अधिकारी जिम्मेदार थे , उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई | जब खरीद फरोख्त हो रही थी , केन्द्रीयएजेंसियों और उस समय की राज्य सरकार ने तब क्यों कार्रवाई नहीं की | 

लेकिन अब जो अहम सवाल विचारणीय है , वह यह है कि गिरफ्तारी के बाद भी सवैधानिक पद पर बने रहना क्या भारतीय संविधान की सब से बड़ी कमजोरी साबित नहीं हो रहा | संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल दो ऐसे संवैधानिक पद हैं जिन पर आसीन व्यक्ति को सिविल या आपराधिक मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता | केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को सिविल मामलों में गिरफ्तारी से तो छूट हासिल है, लेकिन आपराधिक मामलों में नहीं | केंद्रीय मंत्रियों एवं सांसदों पर सिविल मामलों में कोई आरोप लगे तो संसद सत्र से 40 दिन पहले, संसद सत्र के दौरान और सत्र खत्म होने के 40 दिन बाद तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकती | संसद की रूल बुक में ऐसा कुछ नहीं है कि आपराधिक मामलों में उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकती | पिछले साल उद्धव ठाकरे सरकार ने केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे को आपराधिक मामला दर्ज कर के गिरफ्तार करवा दिया था |

अब सवाल उठ रहा है कि क्या संवैधानिक पद पर रहते हुए किसी की गिरफ्तारी होनी चाहिए | क्या राज्य सरकारों के मंत्रियों की गिरफ्तारी से पहले राज्यपाल से अनुमति लेने का प्रावाधान नहीं किया जाना चाहिए | केन्द्रीय मंत्रियों की गिरफ्तारी से पहले क्या राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं ली जानी चाहिए | क्योंकि वे ही उन्हें नियुक्त करते हैं और संविधान की शपथ दिलाते हैं | क्या किसी भी मंत्री को इस्तीफे या बर्खास्तगी से पहले गिरफ्तार किया जाना चाहिए | नवाब मलिक बाकायदा गिरफ्तार हैं , लेकिन मंत्री भी बने हुए है | इस से भारतीय संविधान और लोकतंत्र की मर्यादाओं पर कुछ गंभीर सवाल खड़े होते हैं | अगर मंत्री खुद इस्तीफा नहीं देता है और मुख्यमंत्री भी उन्हें बर्खास्त नहीं करते हैं , तो क्या संविधान के पास अन्य कोई विकल्प है कि उन्हें पद से हटाया जाए | एक ही विकल्प है और वह है राज्यपाल उन्हें बर्खास्त कर दे , लेकिन राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं कर रहे हैं | 

पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल के मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फरिहाद हकीम को सीबीआई ने नारड स्टिंग में गिरफ्तार किया था | राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने तब ट्वीट किया था कि वह "खतरनाक स्थिति से चिंतित हैं |" उन्होंने मुख्यमंत्री सुश्री बनर्जी से संवैधानिक मानदंडों और कानून के शासन का पालन करने का आग्रह किया था | लेकिन ममता बेनर्जी ने दोनों को मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए फिर भी नहीं कहा , न बर्खास्तगी की सिफारिश की | जबकि 2015 में जब दिल्ली के विधि मंत्री जितेन्द्र सिंह तोमर को फर्जी डिग्री मामले में गिरफ्तार किया गया था , तो जितेन्द्र सिंह ने तुरंत इस्तीफा दे दिया था | उस से पहले जब हुबली में राष्ट्रीय ध्वज के पुराने मामले में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ वारंट जारी हुआ था , तो भाजपा ने उन से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ले लिया था | 1997 में जब लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले में चार्जशीट हुई , तो उन्होंने खुद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था | जबकि तब तक वह अपनी खुद की पार्टी आरजेडी बना चुके थे और उस के अध्यक्ष थे , उन पर इस्तीफे का कोई दबाव नहीं था | 

 

पिछले साल अगस्त में महाराष्ट्र सरकार ने केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे को इस लिए गिरफ्तार कर लिया था , क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ एक टिप्पणी कर दी थी | नारायण राणे से पहले 2001 में दो केन्द्रीय मंत्रियोंमुरासोली मारन और टी.आर. बालू को चेन्नई पुलिस ने आधी रात को पकड़ लिया था | हालांकि पुलिस पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि को गिरफ्तार करने गई थी , ये दोनों केन्द्रीय मंत्री भी वहां मौजूद थे | जब इन दोनों ने विरोध किया तो इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया | वाजपेयी सरकार ने तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता को तब राज्य को 355 के तहत नोटिस जारी करने की धमकी दी थी , जो 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति राज लगाने का पहला कदम होता है |

केंद्र सरकार की धमकी ने काम किया , राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के दखल से दोनों मंत्रियों को रिहा कर दिया | लेकिन तब राज्यपाल फातिमा बीबी की बली चढ़ गई थी , क्योंकि केंद्र ने राज्य सरकार पर कार्रवाई शुरू करने के लिए राज्यपाल से रिपोर्ट माँगी थी , राज्यपाल की रिपोर्ट इतनी ढीली थी कि एक तरह से राज्य सरकार का ही पक्ष ले रही थी | वाजपेयी सरकार ने फातिमा बीबी को तुरंत पद से हटा दिया था | लेकिन नारायण राणे की गिरफ्तारी एक मामूली से बयान पर हुई थी , फिर भी केंद्र सरकार ने उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की | अब राज्य के मंत्री की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र राज्यपाल ने भी कोई कार्रवाई अभी तक नहीं की है | 

 

 

 

आपकी प्रतिक्रिया