भारत की तटस्थता क्या सही है ?

Publsihed: 11.Mar.2022, 07:45

अजय सेतिया / अमेरिका से रक्षा साझेदारी के बावजूद रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद आज हम अचानक रूस के साथ खड़े हुए क्यों दिखाई दे रहे हैं | हालांकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने जब यूक्रेन पर हमले का आदेश जारी किया था ,तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के पहले ऐसे अंतर्राष्ट्रीय नेता थे , जिन्होंने पुतिन को फोन कर के युद्ध रोकने की अपील की थी | लेकिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस की निंदा वाले प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया | इस के पीछे इतिहासिक कारण है , जो आप को जानना बहुत जरूरी है , यह जानकारियाँ उन लोगों को भी सोचने पर मजबूर करेंगी , जो संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के साथ खड़े नहीं होने के लिए मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं | भारत ने ठीक किया या गलत , इस पर बहस चल रही है | भारत का एक वर्ग चाहता है कि ऐसे समय में भारत को यूक्रेन के साथ खड़े होना चाहिए , जब रूस ने बिना किसी ख़ास वजह उस पर हमला किया है | लेकिन मजेदार बात यह है कि मोदी सरकार का परंपरागत स्थाई आलोचक वामपंथी टोला चुप्पी साधे हुए है , उस की तरफ से मोदी सरकार की आलोचना नहीं हो रही , क्योंकि इस बार वे हमलावर रूस के साथ हैं , क्योंकि रूस एक कम्युनिस्ट देश है | जिस तरह वे भारत पर हमला करने वाले चीन के साथ खड़े होते हैं , उसी तरह वे अब हमलावर रूस के साथ खड़े हैं | यह बिलकुल वैसा ही है , जैसे भारत के कट्टरपंथी मुसलमान युद्ध और खेल के समय पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई देते हैं |

लेकिन भारत की कूटनीति हमेशा अपने हित अहित देख कर बनती रही है , दुनिया का रूख देख कर नही , और इस कूटनीति को मोदी सरकार ने भी बेहतर तरीके से कायम रखा है | यूक्रेन के मामले में भी भारत ने खुद को सामने रख कर कूटनीति अपनाई है | इस कूटनीति के कारण ही भारत अब बड़ी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है | संयुक्त राष्ट्र में तटस्थ रहने के बावजूद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर के युद्ध समाप्ति के लिए भारत से मदद माँगी है | रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र में अपनाई गई भारत की कूटनीति की तारीफ़ की है | अमेरिका के राष्ट्रपति जोई बिडेन ने भी कहा है कि अमेरिका भारत से बात करेगा | भारत ने युद्ध पर नाराजगी के बावजूद न रूस के खिलाफ वोट किया , न अमेरिका का साथ दिया | इस का कारण यह है कि इस समय रूस के साथ हमारी दोस्ती ज्यादा महत्वपूर्ण है , वह इसलिए क्योंकि रूस और चीन की दोस्ती फिर से बढ़ रही है , अगर इस समय हम रूस के साथ खड़े नहीं हुए तो आने वाले समय में रूस की चीन के साथ दोस्ती हमारे लिए घातक साबित हो सकती है | युद्ध के हालात में अमेरिका हमारे साथ कभी भी खड़ा नहीं रहा है | रूस भी 1947, 1962 और 1965 में हमारे साथ नहीं खड़ा था , लेकिन 1971 में अगर रूस हमारे साथ खड़ा नहीं होता , तो अमेरिका और ब्रिटेन समुद्र के रास्ते भारत पर हमला करने आ चुके थे |

आज हमारे लिए उस घटना को याद करना जरूरी है , क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन भी आज उस तरह यूक्रेन का साथ नहीं दे रहे , जैसे 1971 में इन दोनों देशों ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया था | पच्चास साल पहले 1971 में अमेरिका ने भारत को धमकी दी थी कि वह पाकिस्तान से युद्ध बंद करे , नहीं तो अमेरिका उसे सबक सिखा देगा | पाकिस्तान की हार जब निश्चित लग रही थी , तब अमेरिका ने भारत को सबक सिखाने के लिए परमाणु संचालित विमानवाहक युद्ध पोत को बंगाल की खाडी में रवाना कर दिया था | अमेरिका की सातवी फ्लीट का 75 हजार टन का यह युद्धपोत 1970 के दशक में 70 से अधिक लड़ाकू विमानों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु-संचालित विमानवाहक पोत था | जबकि भारतीय नौसेना के बेड़े में उस समय सिर्फ 20 हल्के लड़ाकू विमानों की क्षमता वाला 20,000 टन का विमानवाहक पोत विक्रांत ही था | हालांकि जाहिरा तौर पर कहा यह गया था कि यू.एस.एस एंटरप्राइज को पूर्वी पाकिस्तान (जो अब  बांग्लादेश है ) में अमेरिकी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए भेजा जा रहा है | लेकिन अनौपचारिक रूप से यह भारतीय सेना को धमकाने  और पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति को रोकना था | उस समय चिंतित भारत ने सोवियत संघ को मदद मांगने वाला एक संदेश भेजा था | इस संदेश के साथ ही हमारे तार रूस से जुड़ गए थे | रूस ने तुरंत भारत को खबर दी कि ब्रिटिश नौसैनिक विमान वाहक एच.एम.एस ईगल के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह भी अरब सागर की ओर भारत के जल क्षेत्र में आ रहे थे | ब्रिटिश और अमेरिकियों ने भारत को डराने के लिए एक समन्वित हमले की योजना बनाई थी | रणनीति यह थी कि अरब सागर में ब्रिटिश जहाज भारत के पश्चिमी तट को निशाना बनाएंगे, जबकि अमेरिकी युद्धपोत चटगांव के रास्ते पर खड़ा होगा | भारतीय नौसेना ब्रिटिश और अमेरिकी जहाजों के बीच फंस जाएगी |

दुनिया के दो प्रमुख लोकतंत्र अमेरिका और ब्रिटेन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लिए खतरा बन रहे थे | तब भारत ने रूस से मदद माँगी थी , और रूस ने यू.एस.एस एंटरप्राइज को ब्लॉक करने के लिए 16 सोवियत नौसैनिक इकाइयों और छह परमाणु पनडुब्बियों को भेजा था | भारतीय नौसेना के पूर्वी कमान के प्रमुख एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी पुस्तक 'नो वे बट सरेंडर'  में लिखा है कि उन्हें डर था कि रूसी पनडूबियों  से पहले अमेरिकी चटगांव पहुंच जाएंगे | 2 दिसंबर 1971 को, यूएसएस एंटरप्राइज की रहनुमाई में यूएस 7वीं फ्लीट की टास्क फोर्स बंगाल की खाड़ी में पहुंच गई थी , उधर ब्रिटिश बेड़ा अरब सागर में आ रहा था | दुनिया ने अपनी सांस रोक रखी थी | लेकिन, अमेरिकियों को पता नहीं था कि सोवियत पनडुब्बियां उन से आगे निकल चुकी थीं |  जैसे ही यू.एस.एस एंटरप्राइज पूर्वी पाकिस्तान की ओर आगे बढ़ने लगा , सोवियत पनडुब्बियां बिना किसी चेतावनी के भारत और अमेरिकी नौसैनिक बल के बीच में आ कर खडी हो गई | अमेरिकी हैरान रह गए | एडमिरल गॉर्डन ने 7वें अमेरिकी फ्लीट कमांडर से कहा: "सर, हमें बहुत देर हो चुकी है | सोवियत यहां पहुंच चुके हैं |" नतीजतन अमेरिकी और ब्रिटिश दोनों बेड़े पीछे हट गए | आज, अधिकांश भारतीय बंगाल की खाड़ी में दो महाशक्तियों के बीच इस विशाल नौसैनिक शतरंज की लड़ाई को भूल गए हैं |

जिन लोगों को इस इतिहास की जानकारी नहीं , वे गलत और ठीक पर बहस कर रहे हैं | कुछ लोगों का कहना है कि अगर भविष्य में 
कभी चीन ने भारत पर हमला किया तो हमें अमेरिका सहित पश्चिमी दुनिया से भी ऐसा ही व्यवहार मिल सकता है | लेकिन वे भूल 
जाते हैं कि भारत-चीन और यूक्रेन-रूस के बीच एक बड़ा अंतर है | सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका और रूस से गारंटी के 
आधार पर यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियार नष्ट कर लिए थे | यह यूक्रेन की बड़ी भूल थी | यूक्रेन अपने परमाणु हथियार रखटा तो 
पुतिन किसी भी हालत में आक्रमण नहीं करते | भारत सैन्य ताकत में चीन से कमजोर हो सकता है , लेकिन भारत भी एक परमाणु 
हथियार वाला देश है | इसलिए शी जिनपिंग बहुत साहसी नहीं हो सकते , वह जानते हैं कि परमाणु मुठभेड़ में चीन का ज्यादा नुक्सान 
होगा | इस लिए चीन कभी भी भारत पर उस तरह का हमला नहीं कर सकता , जैसा रूस ने यूक्रेन पर किया है | 

 

 


 

 

 

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