अजय सेतिया / लगता है मोदी सरकार ने मुगलों का गुणगान करने वाले और भारतीयों के मन में हीनभावना भरने वाले झूठे इतिहास को फिर से लिखवाने का मन बना लिया है| पिछले साढे आठ साल से इस महत्वपूर्ण काम की अनदेखी हो रही थी, ऐसा लगता था कि यह काम मोदी के एजेंडे पर है ही नहीं| औरंगजेब को धूल चटाने वाले असम के आहोम शासकों के सेनापति लचित बरफुकन की 400वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने साफ़ साफ़ शब्दों में इतिहास के पुनर्लेखन को सरकार के एजेंडे पर बताया है| मोदी ने कहा कि भारत के इतिहास को दबाया गया, भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है| भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है| दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा, जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था| आजादी के बाद जरूरत थी कि हमें गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडों को बदला जाए, लेकिन ऐसा किया नहीं गया| देश के हर कोने में मां भारती के वीर बेटे-बेटियों ने कैसे आतताइयों का मुकाबला किया, अपना जीवन समर्पित कर दिया, इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया| इसी कार्यक्रम में एक दिन पहले गृहमंत्री अमित शाह ने इतिहास को फिर से सही परिपेक्ष्य में लिखवाने की बात कह कर संकेत दे दिया था कि इतिहास के पुनर्लेखन का यह महत्वपूर्ण विषय मोदी के एजेंडे पर आ गया है| और जल्द ही मुगलों का गुणगान करने वाले फर्जी इतिहासकारों के लिखे फर्जी इतिहास को 370 की तरह इतिहास के कूड़ेदान में फैंक दिया जाएगा| अमित शाह ने कहा- "मैं इतिहास का विद्यार्थी हूं, और कई बार सुनने को मिलता है कि हमारा इतिहास सलीके से प्रस्तुत नहीं किया गया, तथा उसे तोड़ा-मरोड़ा गया है... शायद यह बात सच है, लेकिन अब हमें इसे ठीक करना होगा... मै आपसे पूछता हूं - हमारे इतिहास को सही तरीके से और गौरवशाली तरीके से प्रस्तुत करने से हमें कौन रोक रहा है... आगे आइए, शोध कीजिए और इतिहास को दोबारा लिखिए... इसी तरह हम अपनी अगली पीढ़ियों को प्रेरणा दे सकते हैं...|"
आज़ादी के बाद कांग्रेस सरकारों ने इतिहास लिखवाने के लिए वामपंथियों का सहारा लिया था, जिन्होंने भारत की आयु ही घटा दी| उन्होंने भारत का जन्म 1947 से और उस से पहले रियासतों पर तुर्कों, मुगलों के हमलों से इतिहास शुरू किया, जबकि भारतवर्ष की संस्कृति लाखों साल पुरानी थी और 5000 साल का तो प्रामाणिक इतिहास मौजूद है| जहां तक प्राचीन भारतवर्ष का संबंध है तो इसकी सांस्कृतिक और राजनीतिक सीमाएं ईरान से लेकर बर्मा तक थीं| वामपंथियों के लिखे इतिहास के कारण पहले मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा था कि 1947 से पहले भारत था ही नहीं| वामपंथी इतिहासकार मुगलों से पहले के राजाओं को भारतीय इतिहास का हिस्सा ही नहीं मानते, सांस्कृतिक भारत उनकी कल्पना से ही प्रे है| वे मुगलों के युद्धों से ही भारत को देखते हैं, इसलिए इतिहास की किताबों में मुगलों का इतिहास भरा पड़ा है| रामजन्मभूमि मुकद्दमें के समय सुप्रीमकोर्ट ने वामपंथी इतिहासकारों को इतिहासकार मानने से ही इनकार कर दिया था, सुप्रीमकोर्ट ने इन्हें कहा था कि आप इतिहास नहीं कहानियाँ लिखते हो| क्योंकि वामपंथी इतिहासकार भगवान राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा रहे थे और अयोध्या को भगवान राम की जन्मस्थली मानने से ही इनकार कर रहे थे| यह एक संकेत था कि सही परिपेक्ष्य में भारत का तथ्यात्मक इतिहास लिखने की जरूरत है, जो झूठी कहानियों पर आधारित नहीं हो|
अमित शाह ने इतिहास को तथ्यात्मक और सही परिपेक्ष्य में लिखने वालों को सरकार की तरफ से पूरी मदद का वायदा भी किया है| औरंगजेब को धूल चटाने वाले असम के आहोम शासकों के सेनापति लचित बरफुकन की 400वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा कि ओरंगजेब को महान बताने वाले इतिहासकारों ने इतिहास का यह तथ्य छुपा कर रखा था| इसी तरह अंग्रेजों से हारने के बाद उन की गुलामी स्वीकार करने वाले टीपू सुलतान का भी इतिहास में महिमामण्डन किया गया, जबकि टीपू सुलतान ने जमानत के तौर पर अपने दो बच्चे अंग्रेजों को गिरवी रख दिए थे| जबकि टीपू सुलतान की महिमामण्डन करने वाला इतिहास लिखवाने वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकारें टीपू सुलतान की जयंती मनाने के लिए हमेशा से छटपटाती रही हैं| इसी तरह कांग्रेस की सरकारों ने 75 साल तक लचित बरफुकन की बहादुरी का इतिहास भी पूर्वोतर तक सीमित कर दिया था| सिर्फ पूर्वोतर के लोग ही औरंगजेब को हराने वाले लचित बरफुकन का इतिहास को जानते रहे| वाजपेयी के शासनकाल में पहली बार लचित बरफुकन को राष्ट्रीय पटल पर लाने की कोशिश की गई जब नेशनल डिफ़ेंस अकेडमी, पुणे ने 1999 से लचित बरफुकन मेडल देना शुरू किया| भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा भी लचित बरफुकन की रणनीति से ही ली गई है|
मोदी सरकार आने के बाद पूर्वोतर को जिस तरह मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास हुए हैं, उसी का नतीजा है कि लचित बरफुकन की 400वीं जयंती भारत सरकार की ओर से दिल्ली के विज्ञान भवन में मनाई गई, ताकि देश की जनता इतिहास को सही परिपेक्ष्य में समझ सके| मोदी सरकार और असम सरकार इस में कितनी गंभीर थी, इस का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि जयंती को औपचारिकता की तरह मनाने की बजाए तीन दिन तक मनाया गया, जिस में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया| 23 नवंबर को शुरू हुए कार्यक्रमों में पहले दिन असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मुगलों के पास जो भूखंड था, सिर्फ वही भूखंड ही भारत नहीं था| दक्षिण में मुगलों का अधिकार नहीं था, उत्तर पूर्व में मुगल बार-बार हारे थे| आजादी के बाद भारत के इतिहासकारों ने औरंगजेब को ऐसा हीरो बनाया कि जैसे वह कभी हारा ही नहीं और उसने पूरे देश पर राज किया| सरमा ने कहा कि दिल्ली में लचित की जयंती आयोजित करने की पहल से भारत के लोगों को यह एहसास होगा कि देश में औरंगजेब की तुलना में बेहतर राजा और सम्राट मौजूद थे| सीएम सरमा ने कहा कि भारत सिर्फ औरंगजेब, बाबर, जहांगीर या हुमायूं की कहानी नहीं है| भारत लचित बरफुकन, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह, दुर्गादास राठौर का है।
17वीं शताब्दी की बात है, मुगल पूरे हिन्दुस्तान पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहे थे| 16वीं शताब्दी के आखिर तक बंगाल की धरती पर पर मुगलिया परचम लहराने लगा था| लेकिन ऐसा नहीं है कि वे आसानी से जीतते चले गए, भारत के कई वीर योद्धाओं ने मुगलों को अपना परचम फहराने से रोका| 1663 में अहोम राजा जयध्वज सिंघा मुगलों से हार गए थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली थी| उनके बेटे चक्रध्वज ने इस का बदला लेने का फैसला किया| अगस्त 1667 में राजा चक्रध्वज ने लचित बोरफुकन को अहोम सेना का सेनापति बनाया था| कुछ महीने बाद ही बोरफुकन ने गुवाहाटी से मुगलों को मार भगाया था| इतिहास का यह सच है कि कई हिन्दू राजा अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए औरंगजेब से मिल गए थे, जैसे आमेर के राजा जयसिंह| औरंगज़ेब ने 1671 में गुवाहाटी वापस लेने के लिए, आमेर के राजा जय सिंह के बेटे राजा राम सिंह को बड़ी सेना के साथ भेजा था| इस सेना में 30,000 सैनिक; 18,000 घुड़सवार; 21 राजपूत सेनापति; 15,000 तीरंदाज; 5000 बंदूकधारी; 1000 तोपें और 40 जहाज़ शामिल थे| इसके बावजूद लचित बरफुकन ने मुग़ल शासक औरंगज़ेब को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था| असम की कहानियों, कविताओं और गीतों में उनकी बहादुरी का ज़िक्र होता है, बच्चा-बच्चा वीर लचित की कहानी जानता है| असम में लोगों को वीर लचित के नाम पर इतना भरोसा है कि कई बार हारती फुटबॉल टीम वीर लचित का नाम लेती है और टीम में नई ऊर्जा का संचार हो जाता है| इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वीर लचित और असम के लोगों का क्या रिश्ता है, लेकिन ज़्यादातर भारतीय उनका नाम तक नहीं जानते| असम की धरती मुगलों की सबसे शर्मनाक हार की गवाह है, सराईघाट के युद्ध के बाद मुगल कई सालों तक संभल नहीं पाए थे| सच यह है कि असम की धरती से ही मुगलों की जड़ें हिलने लगी थी|
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