मोदी के तारनहार बन कर उभरे नीतीश कुमार

Publsihed: 09.Aug.2018, 14:05

अजय सेतिया / राज्यसभा में भाजपा के सांसद कांग्रेस से करीब करीब डेढ़ गुना हो गए हैं | इस के बावजूद एनडीए अभी राज्यसभा में अपना बिल पास करवाने की हैसियत में नहीं आया | एनडीए विरोधी दलों का बहुमत बना हुआ है | जिसे कांग्रेस अपने हक में इस्तेमाल कर भाजपा को लाचार साबित करती रही है | राज्यसभा ने पिछड़ा जाति आयोग बिल संशोधित कर के भेज दिया था | जिसे लोकसभा से दुबारा पास करवा कर राज्यसभा में फिर लाया गया | पर राज्यसभा के उप सभापति पद के चुनाव में कांग्रेस रणनीति में मात खा गई | नरेंद्र मोदी राज्यसभा में बहुमत नहीं होने से घबराए हुए थे | खबर तो यह आ रही थी कि उप सभापति का चुनाव ही नहीं करवाया जाएगा | सभापति का पैनल ही काम करता रहेगा | वैसे भी सख्त हेडमास्टर के चलते उपसभापति की ज्यादा भूमिका नहीं रहने वाली | पर समझदार लोगों ने समझाया कि यह अलोकतांत्रिक कदम महंगा पडेगा | विपक्ष मोदी को अलोकतांत्रिक ठहराने में इसे सबूत के तौर पर पेश करेगा |

मोदी के पास एक ही रास्ता था , वह था विरोधी दलों में सेंध लगाना | अब जबकि देश की राजनीति दो ध्रुवों में बंटनी शुरू हो चुकी है | मोदी के मुकाबले सभी गैर एनडीए दलों का महागठबंधन बनाने की कवायद चल रही है | ऐसे में विपक्ष में सेंध भाजपा तो नहीं लगा सकती थी | इस लिए उपसभापति का पद ऐसे सहयोगी को देने की रणनीति बनी , जो विपक्ष में सेंध लगा सके | अपन को याद है 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था | तब उन्होंने तटस्थ बैठे चंद्रबाबू नायडू को लोकसभा स्पीकर पद का आफर भेजा था | जिसे कबूल कर के चंद्रबाबू नायडू ने बालयोगी को स्पीकर बनवाया था | बालयोगी पहली बार लोकसभा में चुन कर आए थे | इस तरह तटस्थ बैठे चंद्रबाबू नायडू एनडीए में शामिल हो गए | बाद में एनडीए के संयोजक भी बने | वाजपेयी का सन्देश साफ़ था , जब आप मुश्किल में हों तो समझौता करना सीखो |

वाजपेयी का दिखाया रास्ता मोदी का तारनहार बना | अब उन के सामने तीन रास्ते थे – पहला यह कि शिवसेना को उपसभापति पद का आफर किया जाए | शिवसेना ने 2007 में मराठी के नाम पर कांग्रेस उम्मीन्दवार प्रतिभा पाटिल को वोट दिया था | अब मराठी के नाम पर क्या शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी के वोट ले पाएगी | उद्धव ठाकरे से यही बात करने अमित शाह मुम्बई गए थे | पर उद्दव ठाकरे ने अविश्वास प्रस्ताव में साथ नहीं देकर अपने तेवर बरकरार रखे | अब अकाली दल को आफर किया गया | अकाली दल ने नरेश गुजराल को उम्मीन्द्वार बनाना तय भी कर लिया था | पर अकाली किसी अन्य दल में सेंध मारने में विफल दिखाई पड रहे थे | ऐसे में तीसरा विकल्प युनाईटेड जनता दल का था | नीतीश कुमार उसी तरह भविष्य की राजनीति में सहायक हो सकते हैं , जैसे 1998 में चंद्रबाबू नायडू साबित हुए थे | इस तरह पहली बार सांसद बने पत्रकार हरिवंश नारायण सिंह एनडीए के उम्मीन्द्वार हो गए |

मोदी के पासा पलटने पर अकाली दल नाराज भी हुआ | नरेश गुजराल विपक्षी दलों के साथ मिल कर कांग्रेस के उम्मीन्द्वार बीके हरी प्रशाद को जीताने की रणनीति बनाते देखे गए | अब नीतीश का काम बढ़ गया था | उन्हें बीजू जनता दल , टीआरएस , वाईआरएस के साथ अकाली दल और शिवसेना को भी साधना था | नीतीश बाबू इस में कामयाब रहे | बीजेडी और टीआरएस के वोटों का जुगाड़ भी हुआ और शिवसेना , अकाली दल ने भी एनडीए को वोट दिया | उन्होंने राजशेखर रेड्डी , महबूबा मुफ्ती और केजरीवाल तक को साधा | वाईएसआर कांग्रेस, पीडीपी और आम आदमी पार्टी ने वोटिंग का बहिष्कार किया | जिस से जदयू के उम्मीन्द्वार की जीत पक्की हो गई | इस तरह मुकाबला 105 के मुकाबले 125 पर छूटा |

परदे के पीछे से बिस्तर पर पड़े अरुण जेटली भी काम कर रहे थे | इस लिए संकट की इस घड़ी में वह भी सदन में वोट डालने पहुंचे | हरिवंश नारायण को बधाई देते समय जब मोदी ने अरुण जेटली को भी बधाई दी , तो बात साफ़ हुई | जेटली 16 अगस्त से फिर वित्तमंत्री का चार्ज ले लेंगे | मोदी ने हरिवंश को बधाई देते समय उन की जन्मभूमि बलिया के चंद्रशेखर को भी याद किया | तो वह ऐसे ही नहीं याद किया | चंद्रशेखर के बेटे को साधने के लिए किया होगा , जो सपा सांसद के नाते फिलहाल विपक्षी खेमे में बैठे थे | लब्बोलुवाब यह कि राज्यसभा चुनाव में मोदी के तारनहार नीतीश कुमार बने हैं | जो भविष्य की राजनीति में भी उनके तारनहार हो सकते हैं | वाजपेयी ने जिस तरह चंद्रबाबू नायडू को इस्तेमाल किया था | क्या मोदी की रणनीति अब नितीश कुमार को उसी तरह इस्तेमाल करने की बन रही है | क्या नीतीश टूटते हुए एनडीए के भी तारनहार बनेगे | उन्होंने जोड़तोड़ की अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है | क्या एनडीए संयोजक बनाए जा सकते हैं नीतीश | 

 

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