क्या भारत का विजुअल मीडिया अनार्की फैलाता है 

Publsihed: 08.Apr.2017, 14:46

करीब एक दशक पहले शरद यादव ने संसद को सावधान किया कथा | सोमनाथ चटर्जी तब लोकसभा स्पीकर थे | एक चेनल के एडिटर-एंकर की ओर से रोज रात 9 बजे सांसदों को गालियाँ दी जा रही थीं | शरद यादव ने संसद को आगाह किया था-" इसे रोकना होगा, वह रोज रात नों बजे सांसदों का अपमान करता है |"  पर सोमनाथ चटर्जी ने इस पर गौर नहीं किया |  वह अनार्की फैलाने वाली कौम से ताल्लुक रखते थे | पर बाद में चटर्जी ने सांसदों को खरीदने वाली कांग्रेस सरकार बचाई | अनार्की फैलाने वाली कौम ने उन्हें निकाल बाहर किया | वह सोमनाथ चटर्जी का लोकसभा में आख़िरी कार्यकाल हो गया | पर वह अपनी अनार्की की विचारधारा विजुअल मीडिया को ट्रांसफर कर गए | एक चैनल से शुरू हुई बीमारी अब कई सारे चैनलों में फ़ैल चुकी है | विजुअल मीडिया की ओर से संसदीय प्रणाली पर हमला अब रोजमर्रा की बात हो गई | शिवसेना सांसद रविन्द्र गायकवाड की ताज़ा घटना को देखो | यह लोकतंत्र को कमजोर करने वाली विजुअल मीडिया की ताज़ा दादागिरी है |  15 दिन तक जनता के सामने एकतरफा बात राखी गई | ताकि जनता उस की बताई बातों को ही सच मान ले | अपने चुने हुए सांसदों से नफ़रत करने लगे | मीडिया के कुछ लोग चुने हुए नुमाईन्दों को गुंडा कहना अपनी बहादुरी समझने लगे हैं | जबकि कानूनन जिस पर गुंडा एक्ट न लगा हो, उसे गुंडा नहीं कह सकते | विजुअल मीडिया पर कही गई बातों को ही तथ्य मां लेना गलत है | सोमनाथ चटर्जी ने एक चैनल पर दिखाए एक प्रायोजित स्टिंग आपरेशन पर 10 सांसद बर्खास्त करवा दिए थे | सुमित्रा महाजन ने विजुअल मीडिया की दादागिरी से डर कर संसद की कंटीन से सब्सिडी ख़त्म करा दी थी | जबकि उस का असर संसद के स्टाफ पर पडा , सांसदों पर नहीं | हर बड़ा संस्थान अपने कर्मचारियों के लिए सब्सिडी की कंटीन चलाता है | अखबारों की सामूहिक बिल्डिंग आईएनएस में भी सब्सिडी की कंटीन है | प्रेस क्लब में भी बाज़ार के भाव महंगी दारू नहीं मिलती | पर विजुअल मीडिया ने शोर मचा कर संसद के स्टाफ की सब्सिडी बंद करवा दी | सांसद तो वहां खाना न पहले खाते थे, न अब खाते हैं | पर अब गायकवाड के मामले में पहली बार विजुअल मीडिया को मात खानी पडी | तो गुरूवार को विजुअल मीडिया रुदालियों की भूमिका में था | न तो सुमित्रा महाजन विजुअल मीडिया के दबाव में आई ,न मोदी सरकार | पन्द्रह दिन से रविन्द्र गायकवाड को देश का सब से बड़ा गुंडा घोषित किया जा रहा था |  रविन्द्र गायकवाड सांसद के नाते पुणे से दिल्ली आए थे | वह सांसद के नाते ड्यूटी पर थे | उन्होंने शिकायत पुस्तिका माँगी थी | यह उन का अधिकार था | यह हर किसी का अधिकार है | अलबत्ता उन से बदसलूकी हुई | पर एयर इंडिया की नौकरशाही ने विजुअल मीडिया से मिलीभगत कर उल्टी कहानी बना दी |  कहानी एग्जीक्यूटिव क्लास टिकट की बना दी |  एयर इंडिया ने उन्हें एग्जीक्यूटिव क्लास का टिकट दिया था | जबकि विमान में एग्जीक्यूटिव क्लास थी ही नहीं | यह कोई पहली बार नहीं हुआ था | दिल्ली पुणे की उस फ्लाईट में कभी एग्जीक्यूटिव क्लास नहीं दी जाती | फिर एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट कैसे दी जा रही थी |  अगर विमान में एग्जीक्यूटिव क्लास  नहीं थी | तो टिकट रद्द कर के दूसरी क्लास की क्यों नहीं दी गई | एग्जीक्यूटिव क्लास की टिकट पर दूसरी सीट कैसे अलाट हुई | यही वह अहम् सवाल था-जो रविन्द्र गायकवाड ने पूछा था | यह उन का अधिकार था | अलबतता हर किसी का अधिकार है |  क्या विजुअल मीडिया को यह सवाल एयर इंडिया से नहीं पूछना था | पर एयर इंडिया के अधिकारी  गायकवाड से कह रहे थे -"आप सांसद हैं, आप को ऐसे नहीं करना चाहिए |" विजुअल मीडिया जिस मनेजर सुकुमार  को 15 दिन तक एयर इंडिया का कर्मचारी बता रहा था | वह एयर इंडिया का कर्मचारी है ही नहीं | वह आऊट सोर्स का कर्मचारी है | सरकारी एयर इंडिया को क्या अधिकार था कि वह सांसद को यात्रा न करने दे | दूसरी विमान कम्पनियों को क्या अधिकार था कि वह सांसद की हवाई यात्रा पर बैन लगाए | ये प्राईवेट कम्पनियां विजया माल्य को तो चोरी छिपे देश से भागाती हैं | और सांसद शिकायत पुस्तिका मांगे, तो उस पर बैन लगाती हैं |  यह सांसद के विशेषधिकार का हनन है | अच्छा किया कि सरकार ने कदम उठा कर बैन हटाने का आदेश दिया |  गायकवाड ने गलती की है, क़ानून कार्रवाई करेगा | ऍफ़आईआर के मुताबिक़ कार्रवाई होगी | पर पुलिस की एफआईआर भी चौंकाने वाली है | मामूली झड़प को ह्त्या की कोशिश बना दिया | कार्रवाई तो उस पुलिस वाले पर भी होनी चाहिए, जिस ने ब्यूरोक्रेसी से मिलीभगत कर 308 का केस बनाया | नौकरशाही खुद को देश का मालिक समझती है | वह नौकरशाही जिले की हो, सचिवालय की हो, या एयर इंडिया की | जबकि लोकतंत्र में चुने हुए नुमाईंदे बॉस होते हैं | मीडिया का रोल लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला होना चाहिए | पर मीडिया की ब्यूरोक्रेसी, नौकरशाही से सांठगाठ हो गई है | वह सांसदों के विशेषाधिकारों को नहीं मानती | वह विजुअल मीडिया में सांसदों को गुंडा कहने लगी है | यह पत्रकारिता का घमंड है, जो लोकतन्त्र के लिए चुनौती बनता जा रहा है | यह नया विजुअल चौथा खम्भा लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है | देश में अनार्की फैलाने की कोशिश कर रहा है |  प्रिंट मीडिया आज भी मर्यादित है, आज भी सयंमित भाषा का इस्तेमाल करता है | आज भी बलेंस बना कर चलता है | एक पक्षीय रिपोर्टिंग नहीं होती | क्या वक्त आ गया है, जब विजुअल मीडिया की भाषा तय की जाए | जब विजुअल मीडिया को प्रेस कौंसिल के दायरे में लाया जाए | बेलगाम चौथा खम्भा लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक होगा | 

 

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