सुप्रीमकोर्ट जिलाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराए

Publsihed: 07.Aug.2018, 22:38

अजय सेतिया / अखिलेश यादव ने देवरिया शेल्टर होम कांड पर कहा है, " जो भी बेटियों के साथ हुआ, उससे दिल दहलता है... उन दोषियों की, जो शेल्टर होम का लाइसेंस रद्द होने के बाद भी उसकी मदद करने के लिए भागदौड़ कर रहे थे, पोल खुलनी चाहिए... जिलाधिकारी को बदल देने से कुछ नहीं होगा, इससे न्याय नहीं मिलेगा..." अपना तो मानना है कि जब तक जिलाधिकारी सस्पेंड होने शुरू नहीं होंगे तब तक कुछ बदलाव नहीं होगा | उत्तर भारत में मुजफ्फरपुर के बाद देवरिया में बच्चों के देह व्यापार का भंडा फूटा है | तो इसी हफ्ते आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले में भी देह व्यापार के लिए बच्चियों की ट्रेफिकिंग का भंडा फूटा है | हैदराबाद से 62 किलोमीटर दूर यादद्री में 15 बालिकाएं मुक्त करवाई गई हैं | मुजफ्फरपुर और देवरिया में जिलाधिकारियों की आपराधिक लापरवाही सामने आई है | जब अपन लापरवाही कह रहे होते हैं तो अपन उसे बेगुनाह मान रहे होते हैं | पर हर जगह वे बेगुनाह नहीं होते | कई जगह वह लापरवाही जानबूझ कर की जाती है |

बच्चियों के यौन शोषण में अफसरों और राजनीतिज्ञों की मिलीभगत सामने आने वाली है | बिहार की मंत्री मंजू यादव को बचाए जाने की बात समझ से परे है | वह समाज कल्याण मंत्री हैं, शैल्टर होम की मान्यता और अनुदान उन्हीं का विभाग देता है | यौन शोषण में उन के पति का नाम उछल रहा है | उन्हें तो नैतिक आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था | क्या मंत्री के पति का शैल्टर होम पर कार्रवाई न करने का जिलाधिकारी पर दबाव था | मुजफ्फरनगर और देवरिया में जिलाधिकारियों की लापरवाही जानबूझ कर की गई है | वे खुद या उन के आला अफसर यौन अपराध में शामिल हो सकते हैं | इसलिए यह आपराधिक मामला है | मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की | आयोग की अध्यक्ष ने आठ महीने पहले उसे बंद कर बच्चों को शिफ्ट करने को कहा था | जिलाधिकारी को कई रिमाईन्डर भी भेजे थे | देवरिया के जिलाधिकारी ने भी महिला एंव बाल कल्याण विभाग के निर्देशों पर अमल नहीं किया | विभाग ने 27 जुलाई को निर्देश दिया था कि गैरकानूनी चल रहे शैल्टर होम को तुरंत बंद किया जाए | क्यों नहीं मुजफ्फरपुर और देवरिया के जिलाधिकारियों पर ऍफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए |

मंगलवार को सुप्रीमकोर्ट ने इन दोनों मामलों में खुद आगे बढ़ कर संज्ञान लिया है | शायद इस से कुछ अच्छा निकले , जिलाधिकारियों के लिए नए दिशा निर्देश तय हों | सुप्रीम कोर्ट ने पहला रास्ता मंगलवार को दिखा ही दिया | हालांकि कठुआ मामले में सुप्रीमकोर्ट पहले से वह रास्ता दिखा चुका था | जब उस ने बच्ची का नाम बताने और फोटो दिखाने पर न्यूज चेनलों को कटघरे में खड़ा किया था | उस समय वामपंथी भारत तोड़ो गैंग ने हिन्दू धर्म के खिलाफ एक अभियान चलाया था | जिस के लिए उन्होंने बच्ची के नाम और फोटो का सोशल मीडिया पर जमकर इस्तेमाल किया | अब वही काम मुज़फ़्फ़रपुर के एक आरोपी की पत्नी ने किया है | जब उस ने यौन हिंसा की शिकार बच्चियों का नाम सोशल मीडिया पर डाल दिया | सुप्रीमकोर्ट ने आरोपी की उस पत्नी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया है | पोक्सो के बाद जेजे एक्ट में भी बच्चे बच्चियों का नाम और पहचान उजागर करने पर सजा का प्रावधान है | सोशल मीडिया पर आम आदमी तो छोडिए अखबार और न्यूज चेनेल भी अनपढ़ बने हुए हैं | जिसका राजनीतिक दल और समाज विरोधी तत्व साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए फायदा उठाते हैं | सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से रास्ता खुलेगा |

पर अपनी ज्यादा चिंता कुकरमुत्तों की तरह उगे शैल्टर होमों को लेकर है | जो यौन अपराधों के अड्डे बन गए हैं | वे सभी समाज कल्याण विभाग और महिला व बाल कल्याण विभागों की मिलीभगत से चल रहे हैं | जेजे एक्ट में लिखा था कि सभी बाल गृहों को नए सिरे से रजिस्टर्ड करवाना होगा | जो तय मानकों पर खरे नहीं उतरेंगे , उन्हें रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा | ईसाई मिशनरियों ने तो अपने किसी होम को रजिस्टर्ड ही नहीं करवाया | राज्य सरकारों को उन्हें बंद करना चाहिए था | पर रांची की घटना ने साबित किया कि राज्य सरकारें और जिलाधिकारी लम्बी तान कर सोए हैं | मुजफ्फरपुर और देवरिया ने साबित किया है कि अधिकारियों ने कुछ ले देकर आश्रय गृह फिर से रजिस्टर्ड कर दिए | इन शैल्टर होमों पर निगरानी करने के लिए चार तरह की निगरानी कमेटिया बननी थीं | अगर वे बन गई हैं , तो रांची, मुजफ्फरपुर, देवरिया जैसे काण्ड कैसे सामने आ रहे हैं |

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