फर्जी स्टिंग आपरेशन पर जमानत

Publsihed: 07.Jul.2018, 18:20

 

अजय सेतिया / अपन विजुअल मीडिया में काम कर चुके हैं | पर जिन्दगी का ज्यादातर हिस्सा प्रिंट मीडिया में गुजरा | वह भी राजनीतिक रिपोर्टिंग करते हुए | प्रिंट मीडिया में काम करने की बात ही कुछ और थी | ढाई बजे भाजपा दफ्तर में जाते थे , वहां से कांग्रेस दफ्तर , फिर सीपीएम के दफ्तर | सब निपटा कर शाम को बड़े नेताओं की दहलीज पर | नेता भी तब चाय पकौड़ों के साथ अन्तरंग बातें करते थे | राजनीतिक दलों का आफ दि रिकार्ड बहुत कुछ मिलता था | दलों के भीतर की टांग खिंचाई से लेकर उठापटक की रणनीति तक सब कुछ | यह उन दिनों की बात है जब भाजपा में गोबिन्दाचार्य और प्रमोद महाजन हुआ करते थे | भाजपा दफ्तर के बगल में 9 अशोका रोड पर अरुण जेटली की महफ़िल सजा करती थी | जहां भांति-भांति की चाय का स्वाद मिला | कांग्रेस में चंदूलाल चंद्राकर और वीएन गाडगिल का आफ रिकार्ड हुआ करता था | चंद्राकर का हर जवाब आँख के इशारे से मिलता था | तो गाडगिल वह सवाल सुनते ही नहीं थे, जिस का जवाब न देना हो | सीता राम केसरी , अर्जुन सिंह और विजय भास्कर रेड्डी जैसे दिग्गज भी अपने घरों पर आफ रिकार्ड बात किया करते थे | वह ज़माना था , जब सीपीएम में हरकिशन सिंह सुरजीत असम्भव को सम्भव बनाने की राजनीति करते थे |

तब नेता में मुहं में माईक घुसा कर बोलने को नहीं कहा जाता था | जब से विजुअल मीडिया आया है, सब कुछ बदल गया है | विजुअल मीडिया ने राजनीतिज्ञों को कटघरे में खड़ा करने की पत्रकारिता शुरू की है | खुद को जज और राजनीतिज्ञों को अभियुक्त समझने की प्रवृति पनप गई है | विजुअल मीडिया घमंड के घोड़े पर सवार है | जैसे लोकतंत्र का चौथा खम्भा नहीं, चारों खम्भे वही हो | अपन विजुअल मीडिया की उस पहली धींगामुश्ती के चश्मदीद गवाह हैं | जब आजतक चेनल के आशुतोष ने धींगामुश्ती के लिए कांसीराम से थप्पड़ खाया था | जी हाँ , आम आदमी पार्टी वाले आशुतोष ही | उत्तर प्रदेश का राजनीतिक घटनाक्रम जोरों पर था | कांसीराम पर सब की निगाह टिकी थी | हम सब पत्रकार कासी राम के घर के बाहर खड़े थे | अंदर कासीराम की मायावती से गुफ्तगू चल रही थी | इन्तजार था कि वह बाहर आ कर मीडिया से बात करेंगे | घमंड के घोड़े पर सवार आशुतोष ने कासीराम के घर के दरवाजे को पिटना शुरू कर दिया | गुस्से से तमतमाए कासीराम बाहर निकले और सामने खड़े आशुतोष को दे तडातड | भगदड़ मची और सारे पत्रकार भागने लगे | आजतक चेनल ने उस दिन अच्छा खासा तमाशा किया था | पर अपन प्रिंट मीडिया वाले सारे चश्मदीद जानते हैं कि गलती किस की थी | थप्पड़ खाकर बाद में आशुतोष ने कासीराम से समझौता कर लिया था |

अपन को यह घटना आज दो कारणों से याद आई है | एक तो उसी आशुतोष को फर्जी स्टिंग आपरेशन के मामले में शुक्रवार को कोर्ट में खड़ा रहना पडा | गाजियाबाद की एसीजेएम-3 की कोर्ट के जज ने दिन भर खड़ा रखा और शाम को जमानत दी | यह फर्जी स्टिंग आपरेशन दस साल गाजियाबाद के एक सरकारी डाक्टर का हुआ था | जिसे तब राजदीप सरदेसाई ने सीएनएन पर और आशुतोष ने सम्पादक ने नाते आईबीएन 7 पर दिखाया था | राजदीप सरदेसाई को भी शुक्रवार को दिन भर अदालत में खड़ा रहना पडा | फर्जी स्टिंग से डाक्टर अजय अग्रवाल की मानहानि और छवि धूमिल करने का आरोप है | डा. अजय अग्रवाल तब गाजियाबाद के सीएमओ थे | वैसे याद दिलाते जाएं इन दोनों ने तब सांसदों की खरीद फरोख्त का एक असली स्टिंग आपरेशन कर के भी नहीं दिखाया था |

दूसरा इस लिए याद आया कि शनिवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की विजुअल मीडिया वालों से खटखट हो गई | चौबीस-पच्चीस साल के पत्रकार भी चुने हुए मुख्यमंत्री को अपने मताहत समझें तो खटखट स्वाभाविक है | विजुअल मीडिया वालों ने शनिवार को उस खटखट का प्रसारण कर दिया जो खट्टर से हुई थी | खट्टर पत्रकारों से कह रहे हैं कि उन्हें सवाल पूछने का हक है, वे सवाल पूछें | पर पत्रकार उन्हें नसीहत दे रहे थे | खट्टर का कहना था कि उन्हें पत्रकारों से ज्यादा जानकारी है | पर पत्रकार घमंड के घोड़े पर सवार थे , तो खट्टर ने गुस्से में आ कर कहा-“बोलने की तमीज सीखो |” वैसे इस तमीज की सचमुच जरुरत है | अपन रोज शाम को अंगरेजी चेनलों पर बहस में सम्पादक एंकर के मुहं से सब को शटअप कहते सुनते हैं | यहाँ तक कि औकात तक बताने में परहेज नहीं करते |  

 

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