संसद और सुप्रीमकोर्ट का टकराव

Publsihed: 06.Sep.2018, 21:13

अजय सेतिया / बृहस्पतिवार को तीन बड़ी घटनाएं हुई | तीनों का ताल्लुक विधायिका और न्यायपालिका से है |  यह बहस कई बार खडी होती है कि दोनों में सर्वोच्च कौन है | विद्वान लोग बीच बीच में उतर कर कहते है कि दोनों अपनी अपनी जगह पर सर्वोच्च हैं | पर सुप्रीमकोर्ट कई बार संसद के बनाए अच्छे कानूनों को नकारती रही है | तो संसद भी कई बार सुप्रीमकोर्ट के अच्छी फैसलों को बहुमत की धौंस से बदलती रही है | नरसिंह राव के जमाने में सुप्रीमकोर्ट काफी हावी हो गई थी | तब जजों की नियुक्ति की कोल्जियम प्रणाली से होने लगी | सुप्रीमकोर्ट के पांच जजों ने देश भर के जजों की नियुक्ति अपने हाथ में ले ली | जिस से राजनीति का भाई-भतीजावाद न्यायपालिका में भी आ गया | कांग्रेस और भाजपा में कोल्जियम प्रणाली को बदलने पर आम सहमती थी | इस लिए 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का क़ानून पास हुआ | पर सुप्रीमकोर्ट ने इस क़ानून को रद्द करते हुए कहा कि जजों की नियुक्ति हम खुद करेंगे | इस तरह दोनों की खुद को सर्वोच्च बताने की होड़ लगी है |

खैर बृहस्पतिवार की तीन घटनाओं में पहली घटना तेलंगाना विधानसभा वक्त से पहले भंग होने की है | जिस की उम्मींद अपन को पहले से थी | तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी. राव को लग रहा था कि इस बार तेलंगाना के चुनाव लोकसभा के साथ हुए तो वह घाटे में रहेंगे | इसलिए वह अलग चुनाव करवाना चाहते हैं | उन की रणनीति नवम्बर दिसम्बर में चार राज्यों के साथ ही तेलंगाना के चुनाव करवाने की है | उन ने दिल्ली आ कर नरेंद्र मोदी से बात की थी | पर मोदी ने अपने मन की बात नहीं बताई | जबकि अपना अंदेशा है कि चार राज्यों के चुनाव भी लोकसभा के साथ फरवरी से अप्रेल के बीच होंगे | मोदी लोकसभा चुनावो से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में चुनाव का जोखिम भी नहीं लेंगे | अगर तीनों राज्यों में से दो भी हार गए, तो लोकसभा चुनावों में भाजपा विरोधी हवा चल निकलेगी | वैसे केसीआर का दावा है कि आयोग ने नवम्बर में चुनाव का वादा किया है | पर यह तभी सम्भव है अगर चार राज्यों के चनाव नवम्बर में हुए |

बृहस्पतिवार की दूसरी बड़ी घटना एससी एसटी एक्ट के खिलाफ देशव्यापी सफल बंद की हुई | चुनाव वाले राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेश में सब से ज्यादा असर दिखा | पहले अपन समझ लें कि स्वर्ण वर्ग में गुस्सा क्यों भड़का हुआ है | अपन एससीएसटी एक्ट बनने से बात शुरू करते हैं | 15 अगस्त 1987 को लालकिले से राजीव गांधी ने दलितों आदिवासियों की सुरक्षा के लिए क़ानून बनाने की बात कही थी | लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 1989 में उन ने एससी-एसटी एक्ट पास करवाया | इस में इन दोनों वर्गों से भेदभाव करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान था | एफआईआर को दर्ज करना लाजिमी था , बिना जांच तुरंत गिरफ्तारी का भी प्रावधान था और अग्रीम जमानत सम्भव नहीं थी | इस क़ानून का सवर्णों के खिलाफ जम कर इस्तेमाल हुआ | कोर्ट खुद इस नतीजे पर पहुंची कि 90 फीसदी केस फर्जी दायर हुए, गिरफ्तारियां भी बेगुनाहों की हुई | इस लिए सुप्रीमकोर्ट ने सुधारात्मक कदम उठाए | जांच से पहले एफ़आईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगाई | हाँ डीएसपी स्तर का अधिकारी शिकायत की जांच 7 दिन के भीतर करेगा | इस के अलावा सरकारी कर्मचारी अग्रीम जमानत भी ले सकेंगे | मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट कर क़ानून को फिर पहले जैसा ही कडा बना दिया | जिस में 90 फीसदी दुरूपयोग होने के पुख्ता सबूत थे |

मोदी सरकार के इस क़ानून से सवर्णों में बेहद नाराजगी है | उसी नाराजगी की इजहार बृहस्पतिवार को मोदी के खिलाफ सडकों पर था | भाजपा के एक बड़े नेता की कही दो बातों का जिक्र जरुरी है | पहली बात- मोदी भाजपा का वोट बैंक बदलना चाहते हैं | दलित आदिवासी वोटरों को लुभाना ही इस क़ानून का मकसद है | पर न माया मिलेगी, न राम | दूसरी टिप्पणी मोदी की राजीव गांधी से तुलना करने वाली है | उन ने कहा जो गलती राजीव गांधी ने शाहबानों को गुजारा भत्ते का फैसला बदल कर की थी , वही गलती एससएसटी एक्ट पर मोदी ने की है | राजीव गांधी ने संसद में बहुमत का बेजा फायदा उठा कर इन्साफ को रोका था | नरेंद्र मोदी ने भी संसद में बहुमत का फायदा उठा कर सुप्रीमकोर्ट से मिले इन्साफ को रोका है और इसे दूसरी अगस्त क्रान्ति बता रहे हैं |

बृहस्पतिवार की तीसरी घटना होमो-सेक्सुअलेटी पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले की है | सुप्रीमकोर्ट ने होमो सेक्सुअलेटी को अपराध की श्रेणी से बाहर निकाल दिया है | यानि पार्कों और सडकों पर होमो सेक्सुअल भौंडा प्रदर्शन करें तो पुलिस उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी | वे सडकों, पार्कों में बैठ कर आपस में चूमा-चाटी करें तो कोई रोक-टोक नहीं सकेगा | आईपीसी की धारा 377 होमो-सेक्सुअलेटी को अपराध मानती थी | इस लिए सांस्कृतिक विरासत वाला भारत देश सार्वजनिक तौर पर अभद्रता के प्रदर्शन से बचा हुआ था | होमो-सेक्सुअलेटी को सिख, मुस्लिम, ईसाई और हिन्दू कोई भी समाज इजाजत नहीं देता | देश में कुल 82 करोड़ वोटर है, इन में से एक-सवा फीसदी यानी एक करोड़ वोटर भी होमो-सेक्सुअल नहीं होंगे | तो वोटबैंक की चिंता करने वाले मोदी सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ संसद में क़ानून बनवाएंगे ? यह तो 81 करोड़ वोटरों की भावना का सवाल है |

आपकी प्रतिक्रिया