जेजे एक्ट बच्चों को सरंक्षण देने में फेल

Publsihed: 06.Aug.2018, 19:38

अजय सेतिया / टाटा इंस्टीच्यूट आफ सोशल साईंस ने एक बार फिर अपनी प्रतिबद्धता साबित की है | उसी ने बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चियों के यौन शोषण का भंडा फोड़ा | मुजफ्फरनगर के इस शैल्टर होम में 33 बच्चियों का लगातार यौन शोषण हो रहा था | कई बच्चियों को रात में कार पर बाहर ले जाया जाता था | सुबह वे सुबकती हुई वापस लौटती थी | तो क्या उन बच्चियों को राजनीतिक नेताओं और अफसरों की हवस का शिकार बनाया जाता था | सीबीआई की रिपोर्ट कितनी तह तक जाएगी , यह वक्त ही बताएगा | टिस की पूरी रिपोर्ट भी अभी जगजाहिर नहीं हुई | पर इस रिपोर्ट में सिर्फ मुज्फ्फरनगर नहीं ,बिहार के कम से कम 15 बाल गृहों में बच्चियों के यौन शोषण का खुलासा है | बिहार सरकार उस रिपोर्ट पर अभी भी कुंडली मार कर बैठी है | वह अपनी मंत्री को बचाने में सारा जोर लगाए हुए है | शायद इसी लिए टाटा इंस्टीच्यूट की रिपोर्ट दबाए बैठी है | कहीं ऐसा न हो कि टाटा इंस्टीच्यूट की रिपोर्ट मंत्री तो क्या , नीतीश की कुर्सी ही न उड़ा ले जाए | इसी लिए नीतीश डरे हुए हैं | जिन बाकी 15 बाल गृहों का भंडा फूटना बाकी है , उनमें कुछ का पता चला है | वे है अररिया, मोतीहारी, मुंगेर , गया, मधेपुरा , कैमूर और भोजपुर के बाल गृह |

तो क्या चाईल्ड होम की निगरानी करने वाली सारी कमेटियां फेल हो गई | जेजेएक्ट की धारा 54 में जिला और राज्य स्तर की कमेटियां बनाने का प्रावधान है | जिला बाल कल्याण समितियों को भी इन बाल गृहों की निगरानी की जिम्मेदारी है | राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भी निरिक्षण की जिम्मेदारी दी गई है | अपना शुरू से मानना रहा है कि ब्यूरोक्रेसी किसी संस्था को काम नहीं करने देती | मुजफ्फरनगर के मामले में भी यही हुआ है | बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष हरपाल कौर का खुलासा चौंकाने वाला है | हरपाल कौर ने खुद पिछले साल नवम्बर में मुजफ्फरनगर के इस शैल्टर होम का निरिक्षण किया था | सेवा संकल्प और विकास समिति बृजेश ठाकुर की जेबी संस्था है | यह शैल्टर होम बृजेश ठाकुर के घर से ही चल रहा था | जेजे एक्ट की नियमावली की धारा 29 में शैल्टर होम की भौतिक संरचना का जिक्र है | बृजेश ठाकुर के घर से चल रहा यह शैल्टर होम इन शर्तों को पूरा नहीं करता था | सवाल यह है कि जब यह जेजे एक्ट के प्रावधानों को पूरा नहीं करता था | तो समाज कल्याण विभाग ने इसे मान्यता कैसे दी | मान्यता तो छोडिए सरकारी अनुदान भी दिया जा रहा था,जो केंद्र सरकार से वसूला जाता है |

टिस की रिपोर्ट मार्च 2018 में आई , जिस पर अफसर तीन महीने कुंडली मारे बैठे रहे | टिस की रिपोर्ट से भी चार महीने पहले हरपाल कौर ने जिला प्रशासन को रिपोर्ट दे दी थी | यहाँ तक कि समाज कल्याण विभाग को भी रिपोर्ट भेजी थी ,जिस ने जेजे एक्ट का उलंघन कर मान्यता दी थी | हरपाल कौर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि यह शैल्टर होम नियम विरुद्ध है | यह घर में चल रहा है, इसे तुरंत यहाँ से शिफ्ट किया जाए | आयोग ने जिला प्रशासन को रिमाइंडर भी भेजे | पर समाज कल्याण विभाग और जिला प्रशासन कुंडली मारे बैठा रहा | हालांकि कुछ बच्चिया हरपाल कौर के सामने रोई थीं , पर किसी ने मुहं नहीं खोला था | टिस की रिपोर्ट आने तक हरपाल कौर को भी आभास नहीं था कि बच्चियों का यौन शोषण हो रहा था | पर मासिक निगरानी का काम जिला बाल कल्याण समिति का था | जेजे एक्ट के छटे चैप्टर में बच्चों के बाल गृहों में भेजे जाने की प्रक्रिया तय है | किसी बाल गृह में कोई भी बच्चा बिना समिति से आदेश प्राप्त किए नहीं रखा जा सकता | जहां बच्चा भेजा गया हो, वहां हर महीने जा कर बच्चों से बात करना बाल कल्याण समिति की ड्यूटी है | बाल कल्याण समिति ने यह ड्यूटी नहीं निभाई | असल में बिहार में जेजे एक्ट का सारा ढांचा ढह गया है| सिर्फ बाल संरक्षण आयोग ही सही काम करता दिखाई देता है | पर यह हालत सिर्फ बिहार की नहीं है | सभी राज्यों की यही हालत है | समाज कल्याण विभाग और बाल कल्याण विभाग भ्रष्टाचार के अड्डे बने हैं | जिलाधीश निक्कमें साबित हो रहे है ।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      

 

 

 

 

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