अजय सेतिया / कोई सही माने या गलत, कोई उन की कार्यशैली को अच्छा मानता हो या बुरा । कोई उन्हे घमंडी कहे या बदतमीज । पर अमित शाह में एक विशेशता तो है । वह बिना थके, बिना रुके काम करते हैं । जो भी काम हाथ में लेते हैं, उसे सिरे चढाने के लिए जी-जान की बाजी लगा देते हैं । लोकसभा चुनावो में उन्होने उत्तर प्रदेश में डेरा जमा लिया था । किसी ने सोचा भी नहीं था कि यूपी से भाजपा को 73 सीटे मिल जाएंगी । सिर्फ यूपी की वजह से भाजपा को अपने बूते पर बहुमत मिल गया । फिर जब यूपी और उत्तराखंड विधानसभाओ के चुनाव हो रहे थे । तो अपन ने देखा कि वह तीन महीने वही पर टिके रहे । बाकायदा मकान किराए पर ले कर डेरा जमा लिया था । फिर वह अपने गुजरात में भी डेरा जमा कर बैठ गए थे । वही तरीका उन ने कर्नाटक में अपनाया । वहाँ भी उन ने मकान किराए पर ले लिया था । यो कर्नाटक में उन्हे सफलता नहीं मिली । तब सोशल मीडिया पर जोक भी चला था कि अमित शाह तो आउट होने के बाद खेलना शुरु करते हैं । पूर्वोतर के तीन राज्यो और गोवा में भाजपा को बहुमत नहीं मिला था । इसके बावजूद अपनी सरकारे बनवा कर अमित शाह ने अपना लोहा मनवाया हुआ था । पर इन चार राज्यो में मात खाई कांग्रेस ने भी सबक लिया हुआ था । राहुल गांधी ने दिग्विज्य सिंह जैसे आराम परस्तो को किनारे कर दिया है । कमान खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने अपने हाथ में ली । खुद सोनिया ने एचडी देवगौडा से और राहुल ने सीताराम येचुरी से बात कर मोर्चेबंदी की । गुलामनबी आज़ाद, अशोक गहलोत , अहमद पटेल को मोर्चे पर खडा किया । और इस तरह अमित शाह को चारो खाने चित्त कर दिया । सब को एकजुट करने का जो नतीजा कर्नाटक में निकला था । उसे कैराना में दोहरा कर सोनिया-राहुल ने खतरे की घंटी बजा दी है । अब अमित शाह तो क्या नरेंद्र मोदी को भी खतरा दिखने लगा है । भूले बिसरे लोग याद आने लगे हैं । सब से पहले चार साल से दुत्कारे जा रहे मिडिया को दुलारा गया । चार साल के जश्न में चार दिन तक दावते उडी । उस दिन संसद के सेंट्र्ल हाल में अफवाह थी कि अमित शाह ने मिलने गए चार पत्रकारो को तीन घंटे तक इंतजार करवाया । फिर मिलने से इंकार कर दिया और दफ्तर से खदेडने की धमकी दी । अपन कर्नाटक चुनाव से पहले तो ऐसी वारदात पर यकीन कर सकते थे । पर कर्नाटक के बाद नहीं । गहराई से पडताल की तो यह अफवाह चंडूखाने की ही निकली । तथाकथित सेक्यूलर पत्रकारो का भारत तोडो गैंग आज कल विपक्षी पार्टियो से भी ज्यादा सक्रिय है । पर सच यह है कि कर्नाटक के बाद हवा सरकी हुई है । हालांकि कई लोग भाजपा के लालकिलानुमा नए दफ्तर को मनहूस कह रहे हैं । हालांकि नए दफतर में आ कर त्रिपुरा स्पष्ट बहुमत से जीता है । पर कर्नाटक का झटका नए दफतर में आ कर ही लगा है । इस के बावजूद कार्पोरेट स्टाईल का नया दफतर अमित शाह को रास आ रहा है । वह दफतर में पहले से ज्यादा बैठने लगे हैं । और उन के स्वभाव में भी परिवर्तन आया है । वह अब ज्यादा मिलनसार हो गए हैं । रूठो को मनाने में जुट गए हैं । तीन जून को शाह ने रामविलास पासवान से मुलाकात की । जो एससीएसटी एक्ट को लेकर सुप्रीमकोर्ट के फैसले से खफा हो कर प्रेस कांफ्रेंस कर चुके थे । उन ने हाल ही में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया था । छ्ह जून बुद्धवार को मुम्बई जा कर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिले । जिन्होने लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिल कर नहीं लडने का एलान कर रखा है । अमित शाह की मुलाकात से पहले शिव सेना ने फजीहत करने में कोई कसर नहीं छोडी । शिव सेना के अखबार सामना ने छापा कि चार साल कहाँ सोए थे । लगता है कि अमित शाह मंत्रिमंडल विस्तार का कोई फार्मूला ले कर मिले थे । यहाँ तक कि राज्यसभा के उप-सभापति पद की पेशकश भी कर आए हो सकते हैं । इस पद पर इस बार कडा मुकाबला होना है । कांग्रेस भी खुद लडने की बजाए किसी सहयोगी को पेशकश कर सकती है । अमित शाह अपने मान-मनोव्वल अभियान में चडीगढ भी जाएंगे । जहाँ बादल बाप-बेटे से गुफ्तगू होगी । पंजाब में भाजपा का सूपडा साफ होने के बाद अब बादल भी तेवर दिखा रहे हैं । सब से बडा फच्चर तो नितिश कुमार ने फंसा दिया है । वह पहले वाले फार्मूले के मुताबिक बडे भाई वाला दर्जा मांग रहे हैं । उस नाते उन की मांग लोकसभा की ज्यादा सीटो पर दावे की है । इसलिए अमित शाह का अगला पडाव पटना है । जहाँ भोज राजनीति होगी । अमित शाह के भोज में नीतीश कुमार, सुशील मोदी, पासवान तथा उपेन्द्र कुशवाहा को न्योता गया है । अमित शाह अपने साथ भूपेन्द्र यादव को भी ले जा रहे हैं । मान-मनोव्वल 2019 को सामने रख कर शुरु किया है । तो नए संपर्क फ़ॉर समर्थन अभियान के तहत सुभाष कश्यप और बाबा राम देव से भी मुलाकात की । वैसे ये दोनो मोदी के समर्थक ही हैं । मुम्बई में थे , तो कोई सिर्फ उद्ध्व को मिलने नहीं गए थे । वहाँ लता मंगेशकर और माधुरी दीक्षित को भी मिले । हेमा मालिनी अब बूढी पड गई है । तो शायद इस बार माधुरी को प्रचार में उतारने के लिए मनाने की कोशिश है । हालांकि अपन को नहीं लगता वह मानेगी । पर बुधवार को जब अमित शाह लता मंगेशकर और माधुरी को मिल रहे थे । तो सोशल मीडिया में उन की तुलना राहुल गांधी से हो रही थी । जो ठीक उसी समय मंदसौर में किसाने के जख्मो पर मरहम लगा रहे थे । यह बदले मिजाज का मीडिया है ।
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