राफेल में कोर्टबाजी और आशंकाओं का अम्बार

Publsihed: 05.Sep.2018, 16:49

अजय सेतिया / अपन शुरू से लिखते रहे हैं कि राफेल सौदा नरेंद्र मोदी के गले पड गया है | दुनिया भर की हथियार बेचने वाली कम्पनियों में मार-धाड़ का टकराव होता है | बोफोर्स तोप सौदे के समय भी मुकाबले में पिछड़ी कम्पनियों ने विपक्ष को दलाली के सबूत दिए थे | अब मुकाबले में पिटी कोई कम्पनी ही राहुल गांधी को मोदी पर दागने की तोपें उपलब्ध करवा रही होगी | जिस कारण राहुल गांधी ने बार बार सवाल उठा कर मोदी सरकार को रक्षात्मक बना दिया है | राजनीतिक हमले तो अपनी जगह है, अब राफेल का मामला दूसरी बार सुप्रीमकोर्ट भी पहुंचा है | यों सब से पहले 2015 में भाजपा के ही सुब्र्ह्मन्यम स्वामी ने सौदा होने पर कोर्ट जाने की धमकी दी थी | पर सौदा हो जाने के बाद वह सौदे की वकालत करने लगे हैं | पहले कांग्रेस के नेता तहसीन पूनावाला मार्च 2018 में कीमतें जगजाहिर करने की मांग ले कर सुप्रीमकोर्ट गए थे | अब सुप्रीमकोर्ट के एक वकील एम.एल शर्मा कोर्ट गए हैं | जिनने भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए सौदा रद्द करने और एफ़आईआर दर्ज करने की मांग रखी है | अब गंभीरता यह है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा सुनवाई के लिए मान गए हैं |  

आओ अपन एक बार फिर राफेल फाईटर एयरक्राफ्ट खरीदने का इतिहास जान लें | इंडियन एयर फ़ोर्स ने कारगिल के बाद मध्यम रेंज के फाईटर एयरक्राफ्ट की मांग की थी | वाजपेयी, मनमोहन सरकारों ने प्रक्रिया में 14 साल बर्बाद किए | यों मनमोहन सरकार ने 2007 में खरीदारी की प्रक्रिया शुरू की थी | दिसम्बर 2012 में फ्रांस का राफेल एयरक्राफ्ट खरीदना तय हो गया था | 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) खरीदने तय किए गए | अठारह तैयार एयरक्राफ्ट खरीदे जाने थे 108 एचएएल यानि हिन्दुस्तान  एयरनोटिक्स लिमिटेड को तैयार करने थे | मनमोहन सरकार चाहती थी कि एचएएल के तैयार एयरक्राफ्ट की गारंटी भी फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन कम्पनी दे | पर वह किसी तरह की गारंटी देने को तैयार नहीं हुई | जिस पर खुद रक्षामंत्री ए.के.एंटनी ने सौदा रद्द करने का एलान किया | अब वही कांग्रेस पूछ रही है कि फाईटर एयरक्राफ्ट बनाने का काम एचएएल को क्यों नहीं दिया गया | अनिल अम्बानी को क्यों दिया गया | जबकि यह सच नहीं है | मोदी सरकार के सौदे में अम्बानी को एयरक्राफ्ट बनाने का कोई काम नहीं दिया गया |

मोदी सरकार ने तो सिर्फ 36 एयरक्राफ्ट का सौदा किया है | जो सितम्बर 2019 में हथियारों से लैस बने बनाए आने हैं | इस सौदे में जीवन भर रखरखाव, टेक्लालोजी ट्रांसफर और हथियार भी शामिल हैं | जो मनमोहन सरकार के सौदे में शामिल नहीं थे | रखरखाव एचएएल को करना था, जिस पर डसॉल्ट एविएशन सहमत ही नहीं थी | मोदी सरकार ने नए सिरे से बात शुरू की तो डसॉल्ट एविएशन ने जनवरी 2015 में लोडेड 36 एयरक्राफ्ट के 8.6 बिलियन यूरो मांगे थे | पर मोदी सरकार की तकडी बारगेनिंग से सौदा 7.878 बिलियन यूरो में पट गया | यूपीए सरकार के समय नहीं हुए सौदे के मुकाबले कीमत कुछ ज्यादा दिखती है | पर जैसा कि अरुण जेटली ने कहा वास्तव में कीमत कम है | यूपीए का सौदा रद्द होने का एक कारण यह भी था कि असल कीमत एयरक्राफ्ट की डिलीवरी के समय तय होनी थी | सौदा 2012 में हुआ था | पर जब डिलीवरी होनी थी उस समय की बढी हुई महंगाई और बड़ी हुई कीमत देनी पड़नी थी | कीमत का केल्कुलेष्ण कन्फ्यूज करने वाला था | इस लिए राहुल गांधी का कीमत सम्बन्धी दावा सौ फीसदी गलत और झूठा है |

सवाल है कि जब सौदा 126 का नहीं 36 विमान का हुआ है | तो अनिल अम्बानी का क्या काम होगा | तो मोदी सरकार ने सौदे में यह शर्त रखी है कि डसॉल्ट एविएशन को 7.878 बिलियन यूरो में से 3 बिलियन यूरो का भारत से सामान खरीदना होगा | डसॉल्ट एविएशन ने अनिल अम्बानी की कम्पनी को सामान खरीदने के लिए अपना नुमाईन्दा बनाया है | कांग्रेस कह रही है कि एचएएल की जगह बिना अनुभव के अम्बानी को फाईटर एयरक्राफ्ट बनाने का काम दे दिया | झूठ पर आधारित प्रोपोगंडा ही सही, पर राहुल गांधी की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि उन ने सवालों का अम्बार लगा दिया है | यह रणनीति 2004 में चुनाव जीतने के अनुभव पर आधारित है | तब उन की मां सोनिया गांधी ने ऐसा ही प्रोपोगंडा केस्केट खरीदारी पर भी किया था | अपन पहले भी लिख चुके है कि निर्मला सीतारमण विपक्ष के आरोपों का भंडाफोड़ करने में नाकाम रही है | इस लिए आपरेशन के बाद आराम फरमा रहे अरुण जेटली को बचाव में उतारा गया था | मोदी खुद इन बारीकियों को समझाने की बजाए राहुल गांधी पर तीखे तीर चलाते रहते हैं | राहुल का बचपना अपनी जगह है | पर जो आशंकाएं बन कर मोदी के गले पड़ गई हैं | आम जनता के मन में घर कर गई हैं, वे  आशंकाए मोदी को बहुत महंगी पड़ेंगी |

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