नीतीश न "खुशामद" करेंगे, न "गुलाम" बनेंगे 

Publsihed: 04.Jul.2017, 08:33

नीतीश कुमार को समझना सचमुच मुश्किल है | वह एक कदम आगे,तो दो कदम पीछे चलते हैं | एक पल वह कांग्रेस की खिल्ली उड़ाते हैं, दुसरे ही पल कहते हैं कांग्रेस बड़ी पार्टी है | क्या राहुल गांधी के नेतृत्व को ले कर लुक्का-छिपी हो रही है | कांग्रेस राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी का विकल्प मानती है | यह नीतीश कुमार के गले नहीं उतरता | सोमवार को नीतीश कुमार ने इसे ही इशारों में कहा | पटना में हुई प्रेसकांफ्रेंस में वह बोले- " हमने राहुल गांधी से कहा था कि कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है |  पहल करें, एजेंडा तय करें | वैकल्पिक राजनीति वक्त की मांग है |  सिर्फ एकता की बात करने से काम नहीं चलता | राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ गठबंधन बनाने से कुछ नहीं होगा | अहम मुद्दे पीछे नहीं छूटने चाहिए | राष्ट्रपति पद पर बिना वजह के टकराव में किसानों का मुद्दा छूट गया |"  दो बातें साफ़ होती हैं | पहली - गठबंधन ,नेता-नेतृत्व नहीं, वैकल्पिक एजेंडा तय करो | दूसरी - राहुल गांधी का नेतृत्व कोई मायने नहीं रखता | नीतीश ने रविवार को कही बातों को ही सोमवार को आगे बढाया |  | उनने कहा था-"कोई गलतफहमी में न रहे कि वे किसी के पिछलग्गू हैं |  वे सहयोगी हैं और सहयोगी की तरह रहेंगे |" नीतीश कुमार ने यह बात गुलामनबी आज़ाद के जवाब में कही थी | कांग्रेस यह समझती थी कि नीतीश कुमार उसकी हिस्सेदारी वाले महागठबंधन  के कारण मुख्यमंत्री है | वह बार बार कह रही थी कि लालू के विरोध के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें सीएम बनवाया | इस लिए नीतीश ने कांग्रेस को औकात दिखा दी | साथ में ठीकरा गुलामनबी आज़ाद के सर फोड़ दिया | राजनीतिक गलियारों में खबर है कि कोविंद का नाम नीतीश ने ही सुझाया था | जिस दिन जगन्नमोहन  रेड्डी एनडीए का समर्थन कर गए थे | नीतीश ने उसी दिन बयान दिया कि एनडीए के साथ मिल कर साझा उम्मीन्दवार तय होना चाहिए | सोनिया ने लेफ्ट के चक्कर में आ कर गौर नहीं किया | तब नीतीश ने खुद मोदी से बातचीत की पहल की | और वः कोविंद का नाम तय कराने में सफल रहे | सोनिया गांधी ने 22 जून की बैठक बुलाई हुई थी | असल में नीतीश मीटिंग में जाने वाले थे | वह वहां कोविंद का समर्थन करने की दलील पेश करते | गुलामनबी ने 21 जून को ही बोल दिया कि बैठक में कोविंद का विरोध होगा | उस के तुरंत बाद नीतीश ने कोविंद का समर्थन कर दिया | अब नीतीश कुमार ने खुलासा किया है- जब कोविंद का विरोध तय था , तो बैठक में जा कर क्या करना था | सोनिया की बैठक में जहां मीरा कुमार का नाम तय हुआ | वहां यह भी तय हुआ कि नीतीश कुमार से बात होगी | गुलामनबी पटना गए थे नीतीश से बात करने | पर बातचीत करने की बजाए मीडिया में नीतीश को बुरा भला कह दिया | बोले  -"नीतीश एक विचारधारा नहीं, बल्कि कई विचार धारा के नेता हैं |" कांग्रेस और वामपंथियों ने मिल कर पहले दलित बनाम दलित बनाया | अब चुनाव को विचारधारा की लड़ाई बनाने की कोशिश कर रहे हैं | गुलामनबी ने जब नीतीश को कई विचारधारा का नेता कह कर अपमानित करना चाहा | तो नीतीश कुमार पहले से भी ज्यादा चिढ गए | इसी लिए उनने कहा-"कोई गलतफहमी में न रहे कि वे किसी के पिछलग्गू हैं |  वे सहयोगी हैं और सहयोगी की तरह रहेंगे |" गुलामनबी को खरी खरी सुनाते हुए उनने कहा -" कांग्रेस सिद्धांतहीन पार्टी है | पहले गांधी के सिधान्तों को तिलांजली दी, फिर नेहरु के सिधान्तों को तिलांजली दी | " जीएसटी के सम्बन्ध में भी उनने कांग्रेस को खरी खरी सुनाई- " इस पर यूपीए के समय से काम हो रहा था | हम पहले से ही उसकी हिमायत करते रहे हैं | एक ही तरह के टैक्स से इस व्यवस्था को चलाना ठीक होगा | इससे टैक्स चोरों पर लगाम लगेगी | हम इसके पक्ष में हैं |" फिर चलते चलते उनने यह भी कह दिया कि खुशामद करना उनकी फितरत में शामिल नहीं है | नीतीश के तेवर से स्पष्ट है कि वह कांग्रेस और लालू की लल्लो-चप्पो नहीं करेंगे | भले ही सरकार खतरे में पड़े | अब यह तो किसी से छिपी बात नहीं कि खुशामद की बीमारी कांग्रेस के डीएनए में है | एनडीए के डीएनए में नहीं | एनडीए में तो वह महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं  | एनडीए तो नीतीश को लपकने के लिए तैयार ही बैठा है | भाजपा के नेता बार-बार कर रहे हैं कि नीतीश-कांग्रेस का गठजोड़ बेमेल है | एक ने इमरजेंसी लगाई, एक ने झेली | नीतीश के कड़े स्टैंड से स्पष्ट है कि उनकी कांग्रेस और राजद से दूरी बढी है | नीतीश कुमार के भड़कने की एक वजह और भी है | उन्हें शक है कि उनकी भाजपा से नजदीकी बढ़ने की खबरें कांग्रेस प्लांट कर रही है | 

 

 

 

 

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